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ADDA ANALYSIS क़िस्सा कांग्रेस के दो पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों का: भाजपा में अलग-थलग रहे यशपाल आर्य कांग्रेस में घर वापसी करते ही बने ट्रबल शूटर, रामनगर रण में फंसी कांग्रेस को क्राइसिस से निकालने में सूत्रधार बने आर्य, कांग्रेस की मुख्यधारा से मुक्त होते गए किशोर का पार्टी पर ‘बोझ’ बनते-बनते कमल कुनबे में शामिल हो जाना

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  • रामनगर रण के बहाने गंभीर सियासी संकट में कांग्रेस के तारणहार बने यशपाल आर्य
  • रामनगर में हरदा वर्सेस रणजीत रण से कुमाऊं में कांग्रेस के संभावित नुकसान की हकीकत से प्रभारी देवेन्द्र यादव के जरिए हाईकमान को रुबरू कराया
  • निर्दलीय ताल ठोक रहे हरिश्चन्द्र दुर्गापाल, हरेन्द्र वोरा और महेश शर्मा के साथ बनाए रखा संवाद
  • पूर्व पीसीसी चीफ किशोर उपाध्याय कांग्रेस की मुख्यधारा से पार्टी के लिए ‘बोझ’ बनते गए
  • भाजपा टिहरी से टिकट देगी पर क्या सियासी कद भी हासिल होगा?

देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस के दो पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को लेकर खबर है। 2017 का चुनाव लड़ाने वाले तत्कालीन पीसीसी चीफ किशोर उपाध्याय आज भाजपा का दामन थाम रहे हैं लिहाजा पहले ही कांग्रेस ने उनको छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। दूसरी खबर यह है कि लोकसभा चुनाव 2009 और विधानसभा चुनाव 2012 में पीसीसी चीफ रहते कांग्रेस की कामयाबी का हिस्सा रहे यशपाल आर्य भाजपा में पांच साल मंत्रीपद तक महदूद रहे लेकिन अब घर वापसी के बाद पंजे के अहम पराक्रमी बनकर उभरे हैं। आर्य आज इसलिए चर्चा में है क्योंकि रामनगर में जिस तरह से पूर्व सीएम व कांग्रेस के कैंपेन कमांडर हरीश रावत और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत के बीच ही जंग के हालात से हल्कान हाईकमान को राहत का फ़ॉर्मूला तैयार करने में यशपाल की अहम भूमिका रही।

पहले बात किशोर की ही करते हैं। किशोर उपाध्याय आर्य के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष बने और हरदा के करीबी भी रहे। लेकिन फिर हरदा के साथ जंग के हालात बने और टिहरी से सहसपुर और फिर भी वापस टिहरी का पहाड़ चढ़ने के क्रम में भी दोनों में तलवारबाज़ी जारी रही। फिर विपक्षी नेताओं से खुले और गुपचुप मुलाक़ातों ने किशोर को कांग्रेसी राजनीति में ‘बोझ’ की स्थिति में पहुँचा दिया। कांग्रेसी कॉरिडोर्स में चर्चा यह होने लगी थी कि किशोर कब कांग्रेस छोड़कर जाएंगे ताकि दिनोश धैने जैसे मजबूत चेहरे को टिहरी में चांस दिया जा सके। जाहिर है किशोर की सोच भी कांग्रेस में उनके खिलाफ बनते नैरेटिव को लेकर परिपक्व हो रही थी और भाजपा के रंग में रंगने की खबर इसका प्रमाण बनकर आई है।लेकिन जिस पार्टी की सूबे में सूबेदारी की उसी पार्टी ने उनको भाजपा का हो जाने से पहले ही छह साल के लिए निकाल बाहर किया, यह कांग्रेस में किशोर राजनीति के पतन की दास्तां कह देता है।

अब बात कांग्रेस के एक दूसरे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य की। आर्य कांग्रेसी डीएनए के नेता रहे लेकिन 2017 में हरदा-किशोर जुगलबंदी में कॉपरेटिव राजनीति में सक्रिय बेटे को टिकट नहीं दिला पाए तो रास्ता भाजपा का पकड़ा। लेकिन पांच साल में ही अहसास हो गया कि भाजपा का सियासी मिज़ाज उनसे ठीक उलट है और सत्ता आए या विपक्ष में रहना पड़े लेकिन राजनीति कांग्रेस की ही करनी होगी। आर्य ने कांग्रेस में आते ही भाजपाई तर्ज पर अपनी सीट तक ही सिमटकर रहने की बजाय सात साल तक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के अपने तजुर्बे का कमाल दिखाना शुरू कर दिया। कांग्रेसी राजनीति के जानकार मानते हैं कि हरदा के साथ आर्य टिकट बँटवारे से लेकर तमाम पेचीदा मसलों के समाधान में साझेदारी कर रहे हैं।

रामनगर रण सुलझाने में अहम सेतु बने आर्य

कांग्रेस ने अपनी दूसरी सूची में रामनगर से हरीश रावत को टिकट दिया था जिसके बाद रणजीत रावत ने सल्ट शिफ्ट होने की बजाय रामनगर में ही बगावत का झंडा बुलंद करने का मैसेज देकर पार्टी हाईकमान के पसीने छुड़ा दिए थे। हालात की गंभीरता और अगर हरदा वर्सेस रणजीत जंग हुई तो इससे नैनीताल से लेकर कुमाऊं में होने वाले नुकसान से न केवल प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को अवगत कराया बल्कि समाधान का सम्मानजनक फ़ॉर्मूला क्या हो इसमें भी अपनी भूमिका निभाई। यशपाल आर्य ने न केवल हरदा से लगातार बातचीत कर उनको आश्वस्त किया कि कांग्रेस और उनकी बड़ी चुनावी लड़ाई एक सीट को लेकर नहीं फंसनी चाहिए बल्कि समाधान के रास्ते पर दौड़ना ही श्रेयस्कर होगा।


आर्य ने ही लालकुआं में हरदा के लिए सुरक्षित सियासी जमीन बनाने के लिए निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिश्चन्द्र दुर्गापाल को मान-मनौव्वल के बाद राज़ी किया बल्कि दूसरे बागी हरेन्द्र वोरा को भी संभाला। आर्य ने दोनों नेताओं के घर जाकर दोनों की न केवल हरदा से बात कराई बल्कि दोनों से कांग्रेस कैंपेन कमांडर रावत को लालकुआं से चुनाव लड़ने का न्यौता भी दिलवाया। वहीं कालाढूंगी में महेश शर्मा को बगावत से रोके रखा और फिर हरदा की बातचीत से महेश शर्मा को आश्वस्ति भी मिल गई।


उधर देवेन्द्र यादव और प्रीतम सिंह ने गुस्साए रणजीत रावत को भी शांत कराकर रामनगर से अगर हरदा हट रहे तो उनको भी हटने पर राज़ी कर लिया।

जब समाधान के फॉर्मूले की नींव तैयार हो गई उसी के बाद हरदा-प्रीतम-गोदियाल देहरादून के होटल में बैठे और फॉर्मूले का प्रस्ताव बनकर दिल्ली दरबार पहुँचा और देर रात्रि लिस्ट भी आ गई जिसमें सिर्फ किशोर की टिहरी सीट को होल्ड कर दिया गया।

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The News Adda

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