दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी और व्हिसल ब्लोवर की कथित हत्या के मामले में दायर याचिका के वापसी के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए नोटिस जारी किया है। इस याचिका में प्रमोटी आईपीएस अमित श्रीवास्तव (IPS officer Amit Srivastava, Superintendent, Vigilance Cell, Nainital) और उनके साथियों जिनमें Geetica Kweera & Apoorva Joshi और यूनियन बैंक के ऑफ़िसर्स, एक चार्टर्ड एकाउंटेंट और दरोगा श्याम सिंह पर करोड़ों के गोलमाल और व्हिसल ब्लोवर की सड़क दुर्घटना में हत्या कराने का आरोप लगाया है।
याचिकाकर्ता का आरोप है कि व्हिसल ब्लोवर मोहन सिंह ने उत्तराखंड के Promotee IPS Amit Srivastava पर
करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी, आय से अधिक सम्पत्ति और बेनामी कंपनियों के जरिए गम्भीर आर्थिक अपराध करने के आरोप लगाते 4 अगस्त 2021 को CBI डायरेक्टर और Central Vigilance Commission को शिकायत की थी लेकिन 21 अगस्त 2021 को व्हिसल ब्लोवर की हत्या कर दी जाती है और इसे सड़क दुर्घटना का नाम देकर FIR तक दर्ज नहीं की जाती है।
याचिकाकर्ता ने व्हिसल ब्लोवर की सुरक्षा ( Public Interest Disclosure and Protection of Informers: PIDPI) से लेकर Central Vigilance Commission (CVC) सहित तमाम मंचों तक Union Bank of India के mega loan fraud में हुए करोड़ों के गोलमाल की CBI जाँच की माँग की थी। इसमें IPS अमित श्रीवास्तव, और उनके डमी सहयोगियों के तौर पर गीतिका क्वीरा और अपूर्व जोशी यूनियन बैंक और सिंडिकेट बैंक के भ्रष्ट अफ़सरों, फ़र्ज़ी सप्लायर्स, ऑडिटर्स, फेब्रीकेटिड बुक्स एंड डॉक्यूमेंट्स, झूठे और जाली काग़ज़ात, टैक्स इनवॉइस, फ़र्ज़ी बिल और रिसिप्ट, चार्टेड अकाउंटेंट और उत्तराखंड पुलिस के सब इंस्पेक्टर श्याम सिंह रावत के साथ मिलीभगत कर करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी की। आरोप है कि इस तरह 31 करोड़ रुपए बिना ब्याज के इन बैंकों से लेकर अपनी बेनामी कंपनियों में डमी डायरेक्टरों, बैंक अफ़सरों की मदद से लिए और फर्जीवाड़ा कर 100 करोड़ रुपए के एक्सपोर्ट incentives सहित करोड़ों की आय से अधिक संपत्ति अर्जित की गई।
याचिका में आईपीएस अमित श्रीवास्तव पर फर्जीवाड़ा और आपराधिक कृत्य कर 125 करोड़ रुपए का चूना कॉरपोरेशन बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और सिंडिकेट बैंक को लगाया। जबकि अपनी बेनामी कंपनियों की मदद से एक्सपोर्ट बेनेफिट्स और टैक्स छूट का फर्ज़ीवाड़ा कर 150 करोड़ से अधिक का चूना लगाया है। याचिका में जाँच की आँच के डर से सबूत मिटाने के आरोप भी आईपीएस अमित श्रीवास्तव पर लगे हैं।
याचिका में कहा गया है कि बिज़नस पार्टनर के तौर पर अपूर्व जोशी और उनकी पत्नी गीतिका क्वीरा को आईपीएस अमित श्रीवास्तव ने अपनी बेनामी कंपनी M/s Sheen India Pvt. Ltd and M/s Sarveshwar Creations Pvt. Ltd. के डायरेकटर बनाए।
याचिका में गंभीर आरोप लगाया गया है कि संडे पोस्ट संपादक अपूर्व जोशी और उनकी पत्नी गीतिका क्वीरा की आईपीएस अमित श्रीवास्तव के साथ ‘पार्टनर इन क्राइम’ यानी शैल कंपनियों के ज़रिए बैंकों और भारत सरकार को चूना लगाने के आर्थिक अपराध में बराबर की सहभागिता रही है। इतना ही नहीं याचिका में जम्मू और कश्मीर के एक व्यक्ति के मर्डर में अपूर्व जोशी के इनवॉल्वमेंट का आरोप भी लगाया गया है। ज़ाहिर है याचिका में याचिकाकर्ता ने बेहद संगीन आरोप लगाए हैं और अब मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन लंबित है लिहाज़ा देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी कब तक होता है।
नोट: सुप्रीम कोर्ट से लेकर तमाम हाईकोर्ट से विधिक गतिविधियों की रिपोर्टिंग कर रही लाइव लॉ ने इस केस पर ये रिपोर्ट प्रसारित की है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को याचिकाकर्ता के मामले को वापस लेने के अनुरोध की अनुमति देने से इनकार करते हुए, एक रिट याचिका में नोटिस जारी किया, जिसमें उत्तराखंड के एक आईपीएस अधिकारी द्वारा कथित रूप से किए गए करोड़ रुपये के बैंक घोटाले और एक व्हिसल ब्लोअर की कथित हत्या की जांच की मांग की गई थी।
सीजेआई एनवी रमना, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने “आपने इस तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं” यह टिप्पणी तब की जब याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए याचिका वापस लेने की मांग की थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने नोटिस जारी करते हुए पूछा,
“आपने उन लोगों को क्यों नहीं जोड़ा जिनके खिलाफ आपने एक पार्टी के रूप में आरोप लगाए हैं?”
एडवोकेट राज किशोर चौधरी के माध्यम से दायर वर्तमान याचिका में समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करने वाले बड़े पैमाने पर निर्यात / आयात लाभ घोटाले से जुड़े करोड़ों रुपये की बैंकिंग धोखाधड़ी और व्हिसल ब्लोअर की हत्या
से संबंधित अपराधों की जांच करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है, जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता पहले ही क्रूर हो चुका है।याचिकाकर्ता के अनुसार, मोहन सिंह ने पिछले साल अगस्त में सीबीआई और केंद्रीय सतर्कता आयोग दोनों से शिकायत की थी और उत्तराखंड पुलिस के एक अधिकारी के बड़े पैमाने पर आर्थिक अपराधों, आय से अधिक संपत्ति और बेनामी कंपनियों की जांच की मांग की थी।
हालांकि, सिंह की हत्या कर दी गई थी और इसे ‘दुर्घटना’ बताते हुए कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई थी।
यूपी निवासी याचिकाकर्ता निशांत रोहल ने तर्क दिया है कि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का एक बड़ा लोन धोखाधड़ी अधिकारी और उसके सहयोगियों द्वारा आपराधिक साजिश, जालसाजी, धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और आपराधिक कदाचार के माध्यम से किया गया।
याचिकाकर्ता ने धोखाधड़ी की जांच के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के पास एक जनहित प्रकटीकरण और मुखबिरों का संरक्षण (PIDPI) शिकायत दर्ज कराई।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि पीआईडीपीआई प्रस्ताव के तहत व्हिसल ब्लोअर शिकायतें दर्ज करने के बाद, अधिकारी ने बड़े पैमाने पर घोटाले के अन्य लाभार्थियों के साथ सांठगांठ करके उक्त बेनामी कंपनियों का दिवालियापन और दिवालियापन शुरू कर दिया है।
इसलिए याचिकाकर्ता ने पुलिस अधिकारी और उनके सहयोगियों के खिलाफ सीवीसी से उनके और अन्य सभी व्हिसल ब्लोअर द्वारा दायर शिकायत पर की गई कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने के निर्देश मांगें हैं।
मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) के गठन के लिए और निर्देश माँगे गए हैं।
याचिकाकर्ता ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई)/दिल्ली पुलिस को निर्देश देने की मांग की है, जिसकी वर्तमान बैंक धोखाधड़ी के मामलों की जांच करने के लिए एक विशेष शाखा है।
याचिका में शांतिपुर राजमार्ग पर 21.08.2021 को मारे गए व्हिसल ब्लोअर मोहन सिंह की कथित हत्या के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने की भी मांग की गई है।
याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ताओं और गवाहों की पहचान की सुरक्षा के लिए निर्देश देने की भी मांग की है।
केस शीर्षक: निशांत रोहल बनाम भारत संघ और अन्य, WP (Crl) 101/2022
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