देहरादून: बैटल 2022 का बिगुल बजने के बाद एक समय ऐसा भी आया था कि सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी कांग्रेस को दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल की 300 यूनिट फ्री बिजली सहित अन्य चुनावी गारंटी बेचैन करने लगी थीं। पूर्व सीएम हरीश रावत भी बिजली मुफ्त देने का 200 यूनिट का फ़ॉर्मूला लेकर आ गए थे तो तत्कालीन ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत भी फ्री बिजली को लेकर बयान दे बैठे थे। राजनीतिक जानकार कर्नल और केजरीवाल की जोड़ी से करिश्मे की कहानी गढ़ने लगे थे और न्यूज चैनलों व अखबारों के चुनाव पूर्व सर्वे उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी का खाता खोलने की भविष्यवाणी करने लगे थे। लेकिन आम आदमी पार्टी में अंदर ही अंदर प्रदेश प्रभारी दिनेश मोहनिया और उनके लाए गए सह-प्रभारी राजीव चौधरी की हनक के चलते ज़बरदस्त रस्साकशी और तानाशाहीपूर्ण हालात बने हुए थे।
आम आदमी पार्टी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त के साथ THE NEWS ADDA पर खुलासा किया कि प्रभारी दिनेश मोहनिया और उनके करीबी सह-प्रभारी राजीव चौधरी दो सालों में न केवल पार्टी की लोकल लीडरशिप का गला घोटने का काम किया बल्कि उसे अपना जेबी दल भी बना डाला। चुनाव रणनीति से लेकर किसी भी मुद्दे को लेकर प्रभारी ने लोकल लीडरशिप तो इन्वॉल्व करने की बजाय सह प्रभारी के साथ मिलकर स्थानीय नेतृत्व पर फैसले थोपने का काम किया।
आम आदमी पार्टी में रह चुके एक दूसरे नेता ने कहा कि जब भी दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल या डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया प्रदेश दौरे पर आते उन्हें प्रभारी मोहनिया और सह-प्रभारी चौधरी के इशारे पर दिल्ली से लाई गई टीम घेर लेती। यहाँ तक कि केजरीवाल-सिसोदिया से क्या बातचीत करनी है और कौनसे सवाल रखने या पूछने हैं इसका स्क्रिप्ट भी प्रभारी के स्तर से तैयार करा दी जाती थी।
इसी का नतीजा रहा कि एक समय जहां कर्नल अजय कोठियाल, मेजर जखमोला, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी रविन्द्र जुगरान और पूर्व आईपीएस अनंत राम चौहान, सुवर्धन जैसे कई बड़े चेहरे आम आदमी पार्टी से जुड़ते चले गए। लेकिन प्रभारी और सह-प्रभारी की समानांतर सत्ता और अहंकार भरे व्यवहार का नतीजा रहा कि पहले एसएस कलेर अपनी खटीमा सीट तक सिमटे, फिर कर्नल भी कई मुद्दों पर प्रभारी से मतभेद को चलते गंगोत्री सीट पर सिमट कर रह गए। चौहान, सुवर्धन और जुगरान, जखमोला भी किनारे हो लिए और विधानसभा चुनाव नतीजों में बुरी गत के बाद अब बुधवार को कर्नल अजय कोठियाल और भूपेश उपाध्याय भी अलग हो गए हैं।
12 फरवरी 2020 को आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी बने दिनेश मोहनिया विधानसभा चुनाव से दो साल पहले से पार्टी का कामकाज संभाले हुए थे लेकिन पार्टी में आंतरिक कलह और गुटबाजी बढ़ती गई। बाहर से आए नेताओं को सम्मान देने की बजाय सह प्रभारी के साथ मिलकर मनमाफिक तरीके से हाँकने का नतीजा ये रहा कि जो आए वे जल्दी ही भागने लगे और भाजपा-कांग्रेस से बड़े नेताओं के आने की उम्मीदों पर पानी भी फिर गया। एक AAP नेता ने खुलासा किया कि केजरीवाल के जरूरत से ज्यादा भरोसा करने का नतीजा यह हुआ कि चुनाव में प्रभारी ने ऐसे हालात पैदा किए कि पार्टी को 23 सीटों पर (द न्यूज अड्डा के पास लिस्ट है इन सभी सीटों की) चुनाव लड़ने लायक प्रत्याशी तक नहीं मिल पाए।
नतीजों से पहले ही चुनाव में पार्टी की छवि को बट्टा न लग जाए और विरोधियों को मुद्दा न मिल जाए इसलिए इन 23 सीटों पर प्रत्याशी के नाम पर डमी उतारे गए जिनको चुनाव में झंडा-डंडा और पर्चा-ख़र्चा सब पार्टी की तरफ से देने का वादा किया गया था। यह अलग बात है कि टीम केजरीवाल को जब यह अहसास हो गया कि उत्तराखंड से 2022 की चुनावी जंग में उसके हिस्से कुछ भी नहीं आने वाला तो केन्द्रीय नेतृत्व बैग-पैक लेकर निकल गया और कई सीटों पर प्रत्याशी मदद मांगते रह गए।
जाहिर है अब जब कई नेताओं के जाने के बाद विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे रहे कर्नल अजय कोठियाल भी जा चुके हैं, तब दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल को प्रभारी दिनेश मोहनिया से भी एक बार पूछना चाहिए कि आखिर उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी के इस हालात में पहुँचने में उनका किनता योगदान रहा। देखना होगा यह सवाल पूछने के लिए केजरीवाल-सिसोदिया कितना वक्त लगाते हैं यानी कितने नेताओं के भागने का इंतजार करते हैं।