तबादला एक्ट का तोड़ निकालने को मंत्री हो रहे लामबंद
Dehradun News: Transfer Act के खिलाफ लामबंद होते धामी सरकार के मंत्री! कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य की अपने विभागीय सचिव और खाद्य आयुक्त सचिन कुर्वे के साथ तबादलों को लेकर तलवारें तनी हुई हैं। मंत्री रेखा आर्य ने सचिव कुर्वे द्वारा 6 DSO के तबादलों से पहले विभागीय मंत्री का अनुमोदन न लेने पर तबादलों को ट्रांसफर एक्ट का उल्लंघन बताकर निरस्त करने का फरमान जारी किया, तो तेजतर्रार आईएएस कुर्वे ने भी नियमों का हवाला देकर मंत्री की मनमानी के सामने सरेंडर करने से इनकार कर दिया। इसके बाद से ट्रांसफर एक्ट पर सरकार वर्सेस शासन की जंग छिड़ चुकी है।
ज़ाहिर है मंत्री रेखा आर्य वर्सेस सचिव सचिन कुर्वे जंग से धामी सरकार की खूब किरकिरी हो रही है और पार्टी संगठन में भी इस मुद्दे की गूंज सुनाई दी है। सब इस विवाद में वन मंत्री सुबोध उनियाल ने अफसरशाही को लक्ष्मण रेखा न लांघने की सलाह दी है। साथ ही अफसरों को मीडिया में बयानबाजी से बचने की सलाह भी दी है।
उधर अब मंत्रियों ने तबादला एक्ट की काट निकालने को पसीना बहाना शुरू कर दिया है। एक तो उत्तराखंड में पहले से ही ट्रांसफर एक्ट को कभी ढंग से लागू नहीं किया गया, अब अपनी हनक कम होते देख मंत्रियों को यह नागवार गुजर रहा है। शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत चंडीगढ़ जाकर हरियाणा की खट्टर सरकार की ट्रांसफर नीति की तारीफों के पुल बांधकर आए हैं लेकिन स्वास्थ्य मंत्री के नाते डॉ धनदा को राज्य के ट्रांसफर एक्ट का तोड़ चाहिए। डॉ धनदा चाहते हैं कि स्वास्थ्य सेवाएं आवश्यक सेवाओं में शुमार हैं लिहाजा इस विभाग में डॉक्टरों से लेकर पैरामेडिकल स्टाफ के तबादले आवश्यकता के हिसाब से करने होते हैं। अब जल्द इसका प्रस्ताव धामी कैबिनट में आ सकता है।
पहले ही प्रदेश के अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के टीचर्स को एक्ट से बाहर रखने की सिफारिश मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी कर चुकी है। अब इसी रास्ते स्वास्थ्य विभाग नज़र आ रहा। फॉरेस्ट और टेक्निकल एडुकेशन मिनिस्टर सुबोध उनियाल भी चाहते हैं कि अधिकारियों-कर्मचारियों के तबादले कार्यक्षमता के अनुसार हों।
यानी 2017 में अमल में आये ट्रांसफर एक्ट को लेकर भले भाजपा चुनावों और दूसरे मौकों पर डंका पीटे लेकिन धामी सरकार के मंत्रियों को ही यह एक्ट रास नहीं आ रहा जिसके अभी सख्ती और शिद्दत से लागू करने की गुंजाइश शेष हैं।
एक तो तबादला उद्योग रोकने को ट्रांसफर एक्ट पूरी शिद्दत से अमल में लाया नहीं जा सका है, ऊपर से ट्रांसफर एक्ट के दायरे को सीमित करने की वकालत खुद मंत्री ही करने लग गए हैं। सवाल है कि क्या तबादला उद्योग बंद होने की सबसे पहले बेचैनी मंत्रियों को ही होने लगी? या फिर तबादला एक्ट को ढाल बनाकर शासन में बैठे अफसर ही सरकार यानी मंत्रियों को मुंह ताकने को मजबूर कर दे रहे?
वैसे क्या विभागों में अफसर खुद तबादला एक्ट के जरिए ट्रांसफर कर रहे या फिर जब विभागीय मंत्रियों की भी पूछ नहीं हो रही तो क्या सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) से डायरेक्शन मिल रहा? ज़ाहिर है ट्रांसफर एक्ट के बहाने मंत्रियों वर्सेस अफसरों की मोर्चेबंदी पर सवाल बहुत उठ रहे। लेकिन अभी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मुद्दे पर खामोशी की चादर ही ओढ़ रखी है। मुख्यमंत्री की चुप्पी टूटेगी तो संभव है कि इस विवाद का पटाक्षेप भी हो जाएगा।