
Uttarakhand News: उत्तराखंड के इतिहास में पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत के नाम रिकॉर्ड है कि वे अब तक के सबसे कम दिन यानी 115 दिन ही मुख्यमंत्री रह पाए। यह रिकॉर्ड अपने नाम करते हुए TSR 2 ने पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी के सबसे कम यानी 123 दिन के मुख्यमंत्री कार्यकाल के रिकॉर्ड को तोड़कर न्यूनतम मुख्यमंत्री कार्यकाल का अपना रिकॉर्ड स्थापित किया है। अब यह उनके नाम कितने दिन,महीने और साल रहेगा इसका जवाब तो खैर आने वाला वक्त ही देगा।
आजकल उत्तराखंड की सियासत में तीरथ दा की चर्चा इस रिकॉर्ड को लेकर नहीं बल्कि उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘उत्तराखंड तक’ को दिए एक इंटरव्यू में कही गई इंटरेस्टिंग बातों को लेकर हो रही है। उन्होंने कहा है कि उत्तराखंड से पहले यूपी के जमाने में सरकारी कामकाज को लेकर 2 फीसदी से 20 फीसदी तक कमीशन चलता था लेकिन अलग राज्य बनने के बाद कमीशन का परसेंटेज सीधे 20 फीसदी से शुरू होने लग गया।
तीरथ सिंह रावत ने दर्द बयां किया है कि कहां तो उत्तरप्रदेश से अलग हुए तो हमारे यहां कमीशन जीरो होना चाहिए था और कहां दुर्भाग्य है कि यहां कमीशन की शुरुआत ही 20 फीसदी से हुई। अब यह अलग बात है कि तीरथ सिंह रावत भाजपा की ही पहली अंतरिम सरकार में शिक्षा मंत्री रहे। फिर उनके राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले खंडूरी की अगुआई में बीजेपी 2007 में सत्ता में लौटी और मार्च 2021 में तो वह लम्हा भी आया जब खुद तीरथ सिंह रावत की सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ताजपोशी हो गई।
फिर भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के इस नासूर पर प्रहार क्यों नहीं किया। उल्टे तीरथ जी आपने तो हरीश रावत सरकार में ग्राम पंचायत विकास अधिकारी VPDO भर्ती परीक्षा में नकल माफिया के खेल और आरोपों की जद में आए UKSSSC के प्रथम अध्यक्ष रहे पूर्व पीसीसीसीएफ डॉ आरबीएस रावत को अपना प्रधान सलाहकार बनाकर चीफ सेक्रेटरी के समानांतर पॉवर सेंटर बना डाला!
कहीं ऐसा तो नहीं कि उसी आरबीएस रावत के जेल के अंदर जाने के गम ने आपको यह कहने को मजबूर किया हो कि हाय! यूपी से अलग होकर तो बीस बाइस सालों में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का दीमक उत्तराखंड को चट कर गया? आखिर यह तो गजब बात हुई कि सत्ता के शिखर पर रहकर अब कोई पूर्व मुख्यमंत्री कहे कि अब सहा नहीं जा रहा करप्शन का ये खेल। आखिर इस गन्दगी को साफ करने के लिए 115 दिन ही सही आपके पास भी तो वक्त था पहल करने के लिए, इस दलदल को साफ करने का तिनके भर का प्रयास भी करते तो आज आपके कहे को यूं खारिज न किया जा रहा होता बल्कि आपका नाम होता।
आपके ही राजनीतिक गुरु जनरल खंडूरी को याद करते हैं ना लोग! इसलिए ना कि उन्होंने इस गन्दगी को ज्यादा न सही कुछ कदम ही सही साफ करने के लिए पहलकदमी की। आप तो उससे भी चूक गए और TSR-1 के जमाने से आरबीएस रावत को आज जिन आरोपों में सलाखों के पीछे भेजा गया, वैसी विजिलेंस की रिपोर्ट धूल फांक रही थी, आप चाहते तो देखकर बच सकते थे। लेकिन अपने उन्हीं दागी रिटायर्ड अफसर की सलाह पर चलने का फैसला किया और आज करप्शन के खिलाफ राज्य बनने के बाद जीरो कमीशन की भावना पैदा नहीं हो पाई उसका रोना रो रहे हैं।
सवाल यह भी है कि राज्य बनने के 22 सालों में कांग्रेस के दस साल तो 12 साल आपकी पार्टी यानी भाजपा की सरकार के ही रहे। फिर आपकी पार्टी ने कमीशन के इस दलदल की सफाई को लेकर क्या किया और अगर कुछ भी नहीं कर पाए तो आज कटघरे में पहले आप और आपका दल खड़ा होना चाहिए ? ना कि अब जब राज पाट लूटा बैठे हैं तब आप बताएं कि साहब! भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी ने खा लिया प्रदेश को।
दरअसल, आजकल उत्तराखंड की सियासत में यह चलन इन दिनों तेज होता दिख रहा कि हर नेता दूसरे की तरफ इशारा कर दावा कर रहा कि मेरी कमीज सबसे उजली है। जबकि असलियत है कि सत्ता के इस हमाम में सब नंगे हैं और सभी इस हकीकत से वाकिफ भी हैं लेकिन दूसरे को आइना दिखाने के चक्कर में अपनी नंगई का नजारा पेश कर दे रहे!