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..तो मोदी चाहते हैं चौबीस में चुनौती राहुल गांधी ही दें !

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ADDA Analysis: एक समय दुनिया के चौथे सबसे अमीर शख्स बन बैठे गौतम अडानी के साम्राज्य को लेकर आई अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद तेज हुआ कांग्रेस और भाजपा का वार पलटवार निर्णायक भूमिका अख्तियार कर चुका है। बीजेपी राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त कराने के अपने एजेंडे में कामयाब रही है,अब राहुल गांधी दम भर रहे हैं कि चाहे वे संसद में रहें न रहें, चुनाव लड़ पाएं न लड़ पाएं जेल में रहें या बाहर, वे अडानी और मोदी के रिश्ते से ना सियासत का ध्यान हटने देंगे और ना ही जनता का।

अब कम से कम राहुल गांधी की मानें तो 2019 के एक मानहानि मुकदमे में लोकसभा से गई उनकी सदस्यता की असल वजह अडानी के बहाने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घेराबंदी ही रही है। राहुल गांधी की सदस्यता जाने से ठीक कुछ रोज पहले तृणमूल नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राहुल को मोदी की TRP बताया था। अब जिस तरह से राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होने के बाद ममता सहित पूरे विपक्ष को उनके पीछे लामबंद होना पड़ा है।

यहां तक कि AAP नेता और दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने जिस आक्रामक अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलकर राहुल गांधी की पैरोकारी की ही उसने बीजेपी रणनितकारों को झटका दिया ही होगा, कांग्रेस नेताओं की भी चौकाया जरूर है। क्योंकि यह कांग्रेस ही थी जो दिल्ली के कथित शराब घोटाले में केजरीवाल के करीबी मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद बाकी विपक्षी नेताओं के मुकाबले चुप्पी साधे थी या फिर कांग्रेस की दिल्ली यूनिट के नेता ED, CBI से मुख्यमंत्री पर भी एक्शन की मांग करते दिख रहे थे।

लेकिन दिल्ली विधानसभा में जिस अंदाज में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सबसे तीखा हमला बोलते हुए उनको आजाद भारत का सबसे भ्रष्ट और सबसे कम पढ़ा लिखा करार दिया, वैसा हमला शायद ही कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने भी बोला हो! केजरीवाल ने इस अकेले राहुल गांधी की नहीं बल्कि पूरे विपक्ष और 130 करोड़ देशवासियों की लड़ाई बता दिया।

सवाल है कि क्या विपक्ष को राहुल गांधी की मानहानि मुकदमे के बहाने गई संसद सदस्यता के अक्स में अपना भविष्य नजर आ रहा है ? या फिर विपक्ष को अहसास हो गया है की अगर मोदी सत्ता से टकराना है तो कांग्रेस के अम्रेला तले न केवल आना होगा बल्कि 2024 की लड़ाई भी राहुल गांधी को आगे करके ही लड़नी होगी। भले अखिलेश यादव और ममता बनर्जी तीसरे मोर्चे की तान छेड़ रहे हों लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे जैसे लोकसभा की लड़ाई पास आती जाएगी और CBI से लेकर ED जैसी तमाम केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर समूचा विपक्ष होगा तब ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव से लेकर के० चंद्रशेखर राव और शरद पवार जैसे तमाम क्षत्रपों के लिए राहुल गांधी और कांग्रेस से इतर बीजेपी से लड़ना कठिन हो जाएगा।

इसे यह नहीं समझ जाए कि या तो समूचा विपक्ष राहुल गांधी के पीछे खड़ा नजर आए या फिर कम से कम यह हो कि जब जीत की हैट्रिक के लिए मोदी-शाह बीजेपी का रथ लेकर निकलें तो निशाने पर राहुल गांधी ही नजर आएं! तो क्या पूरी पटकथा खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह कुछ इसी अंदाज में लिख रहे ?

आखिर ममता ने जिस राहुल को मोदी की TRP बताया, वह 2014 और 2019 के नतीजों से तो परिलक्षित भी हुआ। लेकिन क्या अब चौबीस में भी चुनौती के लिहाज से राहुल ही मोदी को सबसे मुफीद निशाना नजर आ रहे हैं ? कहीं मोदी शाह साढ़े 3000 किलोमीटर की “भारत जोड़ो यात्रा” कर राजनीति में संघर्ष की जमीन पर अपना लड़ैया तेवर दिखा चुके राहुल को हल्के में लेने की भूल तो नहीं कर रहे हैं?

संसद सदस्यता जाने के बाद से जिस अंदाज में राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी को अडानी मुद्दे पर घेर रहे हैं वह साफ संदेश दे रहा कि भले बीजेपी राहुल गांधी के मोदियों पर आए मानहानि संबंधी बयान को ओबीसी का अपमान करार दे इस सियासी कहानी का पूरा नैरेटिव बदलने की कोशिश कर रही हो, लेकिन राहुल गांधी ने शनिवार को फिर अडानी की सेल कंपनियों में 20 हजार करोड़ के निवेश का आका कौन पूछकर मैसेज साफ कर दिया कि ना वे अडानी से हटने वाले हैं और न प्रधानमंत्री मोदी पर हमला रोकने वाले हैं।

यही वजह है कि राहुल गांधी ने अपना एजेंडा साफ कर दिया कि में संसद सदस्यता रद्द होने का मुद्दा कानूनी टीम देखेगी, वायनाड में उपचुनाव हुआ तो प्रियंका गांधी या कौन लड़ेगा यह पार्टी तय करेगी लेकिन उनका फोकस सिर्फ और सिर्फ अडानी और अडानी के प्रधानमंत्री मोदी से क्या रिश्ता है, इस पर होगा।

दरअसल, राहुल गांधी इसलिए भी फ्रंटफुट पर बैटिंग कर रहे क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर मुख्यमंत्रियों सहित पूरी पार्टी उनके पीछे आ खड़ी हुई है। इससे यह भी साफ होता है कि राहुल गांधी संसद में रहें या सड़क पर पार्टी पर उनकी पकड़ ढीली नहीं पड़ने वाली है। उल्टे भारत जोड़ो यात्रा पार्ट टू के तौर पर उनकी पश्चिम से पूर्व की यात्रा का आगाज होने के बाद विपक्षी चेहरे के तौर पर पार्टी और पार्टी के बाहर राहुल गांधी की छवि और चमक सकती है। एक कांग्रेसी ने ठीक ही कहा कि राहुल गांधी संसद में हैं या नहीं यह उतना मायने नहीं रखता क्योंकि राहुल, गांधी हैं और खुद उन्होंने शनिवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में माफी के सवाल पर “सावरकर नहीं गांधी” हूं का जवाब देकर पार्टी के लिए लाइन और नैरेटिव तय कर दिया है।

सवाल है कि क्या जिस आक्रामक या एंग्री यंग मैन इमेज के सहारे राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला बोल रहे, कमजोर और गुटीय सुराखों से बेजार कांग्रेस अपने नेता के इस गुस्से को धरातल पर आम जनता के जेहन में उतार पाएगी? क्योंकि मोदी शाह जब राहुल गांधी को चौबीस की चुनौती के लिहाज से आजमाने का मन बनाते हैं तो उनको नजर यही आता है कि राहुल गांधी भले आक्रामक होकर अडानी से लेकर दूसरे मुद्दों को धार देते रहें जमीन पर घायल अवस्था में आईसीयू में नजर आता कांग्रेस संगठन इसे जमीन तक ले जाते भौथरा कर डालेगा। उसके मुक़ाबले 2014 से ही मोदी एरा बीजेपी के आर्किटेक्ट शाह ने सत्ताधारी संगठन को जिस अंदाज में इलेक्शन मशीन बना दिया है, वह “चौकीदार चोर है” के शोर और “राफेल रण” में भी कमल खिला देती है।

लेकिन क्या यह राहुल गांधी को जरा ज्यादा ही हल्के में लेने का जोखिम तो नहीं ले बैठे हैं मोदी शाह? आखिर केसीआर की BRS से लेकर सपा, AAP और TMC जैसे दलों का राहुल की सदस्यता समाप्त होने के मुद्दे पर आया समर्थन कुछ दीर्घकाल के लिए होता चला गया तो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है।

वैसे भी करप्शन के आरोपों के बीच कर्नाटक में बीजेपी सरकार बचाने की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रही है और रैली मंच पर पीएम मोदी का पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा के अभिवादन का अंदाज और गृह मंत्री अमित शाह का उनके आवास पर भोज इशारा करता है कि कर्नाटक का सियासी कुरुक्षेत्र जीतने को पार्टी नेतृत्व एक बार फिर रिटायर होते लिंगायत नेता पर निर्भर नजर आ रहा है।

जबकि महाराष्ट्र में एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव गुट का धड़ा, महा विकास अघाड़ी के रूप के बीजेपी के लिए सियासी संकट की अलार्म बजा रहा है। हाल के उपचुनाव नतीजे भी इसकी तस्दीक कर गए हैं। उधर बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू यादव की आरजेडी का पुनर्मिलन भी अच्छे संकेत नहीं दे रहा है। ऐसे में राहुल गांधी के समर्थन में विपक्षी नेताओं का दिखना बीजेपी के लिए संभलने का संकेत तो नहीं?


हालांकि राहुल की संसद सदस्यता रद्द करने के बाद आज कांग्रेस “डरो मत” कैंपेन के जरिए देशभर में प्रदर्शन कर रही है। उधर राहुल गांधी ने अपने ट्विटर हैंडल पर अपने परिचय में खुद को Disqualified MP लिख दिया है। यानी चौबीस जैसे जैसे करीब आता जाएगा मोदी vs राहुल जंग और तीखी होती जाएगी। देखना दिलचस्प होगा इस सियासी दंगल में विपक्षी कितनी देर तो कांग्रेस की जाजम पर बने रहते हैं और ग्रैंड ओल्ड पार्टी के नेता-कार्यकर्ता सड़क पर !

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The News Adda

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