Uttarakhand News: किसी भी सरकार के लिए इससे बड़ी फजीहत और क्या होगी कि वह कोई ट्रांसफर का फैसला ले और फिर राज्य का हाईकोर्ट उसके फैसले को पलटते हुए अधिकारी की ज्वाइनिंग का ऐसा आदेश सुनाए कि सरकार से जवाब देते ना बने! सीनियर IFS अफसर राजीव भरतरी प्रकरण में जैसी झाड़ हाईकोर्ट की राज्य सरकार को पड़ी है,वह इसी का ताजा उदाहरण है।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस वाली बेंच सरकार को अल्टीमेटम दे कि फलां अधिकारी को चौबीस घंटे के भीतर इतने बजे तक ज्वाइनिंग दे दी जाए! लेकिन यह कल्पना उत्तराखंड ब्यूरोक्रेसी के टॉप बॉसेज के भरोसे बैठे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उनकी सरकार के साथ हकीकत में घटित हो गई है।
सोमवार को उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की बेंच ने राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरके को आदेश दिया कि चार अप्रैल यानी मंगलवार सुबह 10 बजे प्रमुख वन संरक्षक यानी PCCF का चार्ज सीनियर आईएएस अफसर राजीव भरतरी को सौंप दिया जाए। अब इससे बड़ी फटकार या हाई कोर्ट का हंटर और क्या ही चलेगा!
दरअसल, यह शासन में बैठे कर्ता धर्ता टॉप ब्यूरोक्रेट्स की ही कारस्तानी थी कि हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद राजीव भरतरी को पीसीसीएफ का चार्ज नहीं दिया जा सका था। इसी के बाद मजबूरन भरतरी हाई कोर्ट बेंच में याचिका लेकर गए थे। अब सवाल है कि क्या युवा मुख्यमंत्री पड़ताल करना नहीं चाहेंगे कि वे कौन अगल बगल कुर्सी जमाए बैठे आला अधिकारी हैं जिनके निर्णय और सलाह आए दिन हाई कोर्ट में सरकार की नाक कटा रहे?
कभी खनन को लेकर हाई कोर्ट सरकार के फैसलों पर इन अफसरों को जमीन दिखा रहा तो कभी अधिकारियों की तैनाती और तबादलों के बहाने सरकार के लिए कोर्ट रूम में असहज स्थिति बन रही और झटका देने वाले फैसले आ रहे। ऐसे में सवाल है कि जब एक के बाद हाई कोर्ट से सरकार के दांव उल्टे पड़ते जा रहे,तब इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं?
क्या युवा सीएम धामी भूल रहे कि इन्हीं अफसरों की चौकड़ीबाजी में पहले TSR-1 और फिर TSR- 2 की कुर्सी चली गई थी! ये आला अफसरान रौनक उस दौर में भी कुछ कम नहीं रखते थे सचिवालय के चतुर्थ तल पर और बातों की जलेबी बनाकर विकास के कुलांचे आज भी कम नहीं पड़ने दे रहे हैं। लेकिन जमीन पर नहीं सिर्फ सचिवालय के फोर्थ फ्लोर पर ही!
आईएफएस भरतरी का मामला समझिए
हुआ यूं कि सीनियर आईएफएस अधिकारी राजीव भरतरी कॉर्बेट नेशनल पार्क में पेड़ों के कटान प्रकरण की जांच कर रहे थे कि प्रमुख वन संरक्षक पद से उनका तबादला जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष पद पर कर दिया जाता है। भरतरी इस फैसले को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण यानी कैट में चैलेंज करते हैं और जीत भी जाते हैं। लेकिन राजीव भरतरी के सीनियर मोस्ट आईएफएस अधिकारी होने के बावजूद बहाली नहीं की जाती है। सरकार का तर्क होता है कि विनोद सिंघल पीसीसीएफ पद पर काबिज हैं।
हालांकि राजीव भरतरी तर्क देते हैं कि जब कैट का फैसला उनके पक्ष में चुका है तब भी सरकार विनोद सिंघल को हटा क्यों नहीं रही है। कोर्ट को भरतरी की दलील में दम नजर आया और आज सरकार को बैकफुट पर जाने को मजबूर होना पड़ा है। राजीव भरतरी का तर्क था कि वे राज्य के सबसे वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी हैं लेकिन 25 नवंबर 2021 को उन्हें पीसीसीएफ पद से जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष पद पर ट्रांसफर कर दिया जाता है।
अब सवाल है कि आखिर सरकार में वह कौन आला अधिकारी रहा जो मुख्यमंत्री से नजदीकी के बहाने अपना राजीव भरतरी से दुश्मनी निकालने की मंशा के साथ भरतरी के भेजे एक दो नहीं चार चार प्रत्यावेदन भी ठंडे बस्ते में डलवाता रहा। यही वजह है कि सीनियर आईएएस राजीव भरतरी ने हाई कोर्ट की डबल बेंच में सीधे सीधे आरोप लगाया कि उनका ट्रांसफर राजनीतिक वजहों से किया गया जो कि उनके संवैधानिक अधिकारों का खुला उल्लंघन है।
जिस विनोद सिंघल की पैरवी टॉप ब्यूरोक्रेट्स कर रहे थे और मुख्यमंत्री तक को अंधेरे में रखे हुए थे, उन विनोद सिंघल को कैट में झटका लग चुका था और आज हाई कोर्ट से भी निराशा हाथ लगी। लेकिन इस पूरे खेल में सरकार की साख पर ब्यूरोक्रेसी के टॉप बॉसेज बट्टा लगवा बैठे हैं। सवाल है कि क्या युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इन नकारा नौकरशाहों पर मेहरबान होने की बजाय रिजल्ट ओरिएंटेड अप्रोच के साथ उनका रिपोर्ट कार्ड पढ़ना चाहेंगे?