- अटल-आडवाणी ने 43 साल पहले खिलाया था जो कमल
- मोदी-शाह तक आते-आते ‘कैन डू एटीट्यूड’ से बीजेपी पहुंच गई 300 पार
- अब केंद्र में हैट्रिक का इंतजार
- पढ़िए BJP का सियासी सफर
BJP Foundation Day: आज से ठीक 43 साल पहले देश में जब कांग्रेस के सत्ता सूर्य का ताप उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक फैला हुआ था, तब 6 अप्रैल 1980 को अटल-आडवाणी ने जनसंघ से आगे बढ़कर बीजेपी के रूप में सियासत का नया कमल खिलाया था। शायद ही तब अटल बिहारी वाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी ने कल्पना की हो कि अपनी स्थापना के महज चार दशक पूरे करने से पहले ही यह दल देश की सत्ता सिरमौर बन जाएगा!
जरा कल्पना करिए उस दौर की जब 1980 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस 353 सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता के उस शिखर पर पहुंच चुकी थी जहां से विपक्षी जनता पार्टी महज 31 जीते हुए सांसदों के एक झुंड में तब्दील नजर आ रही थी। और उन 31 लोगों में भी कोई समाजवादी झंडाबरदार था तो कोई आरएसएस का स्वयं सेवक!
जनता पार्टी के रूप के ये दुर्गति उस धड़े की हुई थी जिसमें इंदिरा से लोहा लेने के लिए कई दलों का संगम हुआ था। लेकिन महज तीन साल पहले इमरजेंसी से टकराकर लोकतंत्र का झंडा बुलंद कर 1977 का चुनाव और जनता का भरोसा जीत बड़ा बहुमत हासिल करने वाली जनता पार्टी अस्सी आते आते फिर इंदिरा गांधी के सामने ढेर हो गई। हारे हुए लश्कर में बैठे समाजवादी और संघी बैकग्राउंड वाले नेता टकराव के चौराहे पर आ खड़े हुए और कांग्रेस के करारी हार का ठीकरा उन नेताओं पर फोड़ा गया जो संघ और समाजवाद की दोहरी भूमिका निभा रहे थे। जाहिर है जनसंघ से आए अटल आडवाणी के लिए यह जनता पार्टी से निकलने का अलार्म बैल था।
नतीजा ये हुआ कि छह अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का जन्म हो गया और अटल बिहारी वाजपेई इस नए दल के संस्थापक अध्यक्ष चुन लिए गए। यहां से एक सियासी दल के रूप में बीजेपी के सफर का आगाज होता है लेकिन सियासत में नवाचार की एक दूब उगाना भी टेढ़ी खीर होता है फिर एक नए दल को कामयाबी का स्वाद कहां आसान रहने वाला था।
देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ऑपरेशन ब्लू स्टार की प्रतिक्रिया में 31 अक्तूबर 1984 को हत्या कर दी जाती है और देश में आम चुनाव कराने पड़ते हैं। एक नए दल के रूप में बीजेपी भी पहला आम चुनाव लड़ने मैदान में उतरती है लेकिन इंदिरा की हत्या के बाद देश में सहानुभूति की ऐसी लहर चलती है कि कांग्रेस 404 सीटों पर जीत दर्ज करती है और बीजेपी महज दो सीटें ही जीत पाती है।
कहते हैं तब प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने एक बार यह कहकर कटाक्ष किया था कि बीजेपी यानी ‘हम दो-हमारे दो’। तब राजीव गांधी के व्यंग्य का आशय पार्टी के दो नेताओं अटल और आडवाणी तथा बीजेपी के टिकट पर जीते दो सांसदों गुजरात के मेहसाणा से सांसद बने डॉ एके पटेल और आंध्रप्रदेश की हनमकोंडा सीट से सांसद चुने गए चंदूपतला रेड्डी से था।
कांग्रेस की आंधी में वाजपाई अपने गृह क्षेत्र ग्वालियर में माधव राव सिंधिया के हाथों हार गए थे। आडवाणी भी संसद नहीं पहुंच सके थे। लेकिन 1984 में दो सीटों से शुरू हुआ सफर 1989 में 85 सांसद, 1991 में राममंदिर आंदोलन का असर और बीजेपी 120 सीटों पर जीत दर्ज करती है। 1996 में 161 सीटों के साथ अटल बिहारी वाजपेई 13 दिन के प्रधानमंत्री बनते हैं और फिर 1998 में 182 सीटों के साथ बाजपेई की 13 महीने की सरकार बनती है। 1999 में बीजेपी फिर 182 सीटों पर विजय हासिल करती है और वाजपेई की अगुआई में साढ़े चार साल सरकार चलती है। लेकिन इंडिया शाइनिंग के हल्ले में बीजेपी वाजपेई के रहते हुए 2004 में 138 सीटों पर सिमट सत्ता की चाबी कांग्रेस को सौंप देती है। फिर 2009 में आडवाणी बीजेपी को महज 116 सीटों पर जीता पाते हैं। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन को 2014 में मोदी लहर में 282 सीटें जितने वाली बीजेपी के हाथों करारी शिकस्त झेलनी पड़ती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मैजिक वोटर्स पर 2019 में और अधिक छा जाता है और बीजेपी तीन सौ पार यानी 303 सीटों पर जीत दर्ज करती है।
आज मोदी शाह दौर की बीजेपी के पास ना केवल 303 सीटें हैं बल्कि करीब 38 फीसदी (37.7%) वोट शेयर भी है। हालांकि अभी भी इंदिरा की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को मिली 404 सीटों का रिकॉर्ड कायम है लेकिन मोदी शाह ने जिस तरह से बीजेपी को एक इलेक्शन मशीन में तब्दील कर दिया है उसके लिए कोई भी लक्ष्य कठिन जरूर कहा जा सकता है लेकिन अप्राप्य नहीं!
शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीजेपी के स्थापना दिवस पर आज कहा कि बीजेपी हनुमान जी से प्रेरणा लेकर काम करती है। वहीं हनुमान जो मूर्छित लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी की जरूरत पड़ने पर पूरा पर्वत उठा लाते हैं। शायद 2024 की चुनौती से ठीक पहले मोदी बीजेपी कैडर्स को हनुमान जी के “कैन डू एटीट्यूड” की याद दिलाकर नए लक्ष्य का इशारा कर रहे हों, जगह बात महज बहुमत भर पाने से आगे नतीजे देने की हो रही!