देहरादून: कहते हैं जब चुनावी जंग में भाजपा का हर हथियार फेल साबित होने लगता है, तब वह हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के अचूक तीर निकालती है। उत्तराखंड में छिड़ी 2022 की बैटल जीतने को लेकर कांग्रेस भाजपा को उसी के हथियार से हराने की तैयारी करती दिख रही है। कांग्रेस देवभूमि व सैन्यभूमि उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबले को सॉफ्ट हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद पर डिफ़ेंसिव होने की बजाय अग्रेसिव होकर पीएम मोदी व सत्ताधारी दल के वार पर पलटवार करने की रणनीति पर है। इसी मकसद से कांग्रेस ने बांग्लादेश निर्माण के 50 साल पूरे होने के मौके पर विजय दिवस के बहाने इंदिरा गांधी को याद करते हुए सैन्य भूमि में राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भाजपा पर जवाबी हमला बोला है।
इसी मकसद से जहां सीडीएस जनरल बिपिन रावत को श्रद्धांजलि देने के साथ राहुल गांधी मंच पर पहुँचते हैं, कांग्रेस दो मिनट का मौन धारण कर जनरल रावत को श्रद्धांजलि भी देती, वहीं 1971 के भारत-पाक युद्ध के नायकों का सम्मान किया जाता है। जनरल बिपिन रावत का कटआउट राहुल गांधी
के कटआउट से ऊँचा करके दिखाया जाता है। जाहिर है जब भाजपा फौजी वोटों को साधे रखने को शहीद सम्मान यात्रा निकाल रही है, तब कांग्रेस भी इस तबके में पहुंच बढ़ाने को आतुर है।
राहुल गांधी भी उत्तराखंड के बलिदानी सैन्य परिवारों के साथ अपने पिता और दादी के बलिदान को जोड़कर रिश्ता कायम करते दिखते हैं।
न केवल भाजपा के राष्ट्रवाद की काट में इंदिरा गांधी और 1971 को याद करते-कराते कांग्रेस ने अपना राष्ट्रवाद प्रस्तुत करने और बांग्लादेश निर्माण के बहाने मोदी पर भारी दिखने का दांव खेला बल्कि राहुल गांधी के मंच पर पुरोहित आशीर्वाद देने पहुंचे तो मंत्रोच्चार के जरिये न केवल राहुल का अभिवादन किया गया बल्कि शंख की गूंज सुनाई दी तो भारत माता के नारे भी भीड़ में लगते रहे। दरअसल कांग्रेस देवस्थानम बोर्ड के बहाने भाजपा के खिलाफ बनी तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी का सियासी फायदा उठाना चाहती है। लिहाजा सॉफ्ट हिन्दुत्व के बहाने वह बिसात पर भाजपा को घेरना चाहती है।
यहां तक कि राहुल गांधी ने भी राज्य सरकार या स्थानीय मुद्दों की बजाय प्रधानमंत्री मोदी पर नोटबंदी, जीएसटी, कोविड महामारी और अंबानी-अडानी के बहाने हमला बोला।
जबकि राहुल गांधी से पहले पूर्व सीएम हरीश रावत ने राज्य की भाजपा सरकार पर सिलसिलेवार हमला बोलकर राहुल गांधी के लिए पिच तैयार कर दी थी लेकिन राहुल ने राज्य सरकार या स्थानीय मुद्दों को छूने से परहेज ही किया। यहां तक कि मोदी के बनारस गंगा स्नान पर भी कटाक्ष कर भाजपा के हिन्दुत्व कार्ड पर हमला बोला।
सवाल है कि जब पांच साल की सत्ता के बाद खुद प्रदेश की भाजपा सरकार स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है और बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दे उसे परेशान कर रहे, तब हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर आक्रामक दिखना कांग्रेस के लिए भाजपा की बिछाई पिच पर बैटिंग करना नहीं होगा? आखिर इस खेल में जनेऊ दिखाते, गोत्र बतलाते राहुल गांधी कई चुनावों में नतीजे भगुत भी चुके हैं, तब भी उसी खेल में उतरने को उलझना कहेंगे या मात देने को चला दांव, इसका जवाब नतीजोें के साथ ही दिखाई देगा।