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ADDA ANALYSIS सर्वे कितने सच्चे: कांग्रेस को हारते देखकर भी अपनी लोकप्रियता से गदगद हरदा! 2017 में भी तो सबसे पॉपुलर थे रावत, ऐसे ही हारती दिखाई गई थी कांग्रेस?

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देहरादून: शुक्रवार शाम को एबीपी सी वोटर के मंथली सर्वे में पाँच राज्यों में जनता का मूड बताया गया जिसमें उत्तराखंड में अभी चुनाव हों तो बहुमत फिर सत्ताधारी बीजेपी को मिलता दिखाया है। बीजेपी को कुल 70 सीटों में से 41 से 46 सीटों पर जीतते दिखाया गया है जबकि कांग्रेस को 21 से 25 सीटें मिलती दिखाई गई हैं। लेकिन सर्वे में जब वोटर्स से मुख्यमंत्री को लेकर उनकी पसंद जानना चाहा तो 37 फीसदी लोगों ने पूर्व सीएम हरीश रावत को अगला मुख्यमंत्री देखना चाहा। जबकि 24 फीसदी लोगों ने मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी को ही अगले मुख्यमंत्री के तौर पर पसंद किया और 19 फीसदी ने राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी व 10 फीसदी ने AAP नेता कर्नल अजय कोठियाल को अगला सीएम देखने की इच्छा ज़ाहिर की है।


अब भले इस सर्वे में कांग्रेस हार रही हो और बीजेपी फिर सरकार बना रही हो लेकिन हरीश रावत समर्थकों ने बीती शाम से चौतरफा सोशल मीडिया में माहौल बना रखा है कि सबसे लोकप्रिय हरदा ही हैं, अगले मुख्यमंत्री हरीश रावत ही हैं। लेकिन यह सवाल किसी को बेचैन नहीं कर रहा कि इस सर्वे में कांग्रेस तो बुरी तरह हार रही फिर हरीश रावत मुख्यमंत्री किस पार्टी की सरकार के बनेंगे? या फिर अपनी सुविधा से यह ख़ुशफ़हमी पाल ली है कि हरीश रावत को सबसे लोकप्रिय बताने तक तो सर्वे सटीक है लेकिन कांग्रेस को हारता दिखाया जा रहा यह गोदी मीडिया जनित झूठ है? जब समर्थक सर्वे पर इतना बौराए दिख रहे तो हरदा भी झूम उठे। सर्वे में पार्टी की हार के संकेत देखने के बावजूद अपनी लोकप्रियता के लोभ में गदगद हरदा ने सोशल मीडिया में लिखा कि सर्वे दर सर्वे आज तक से लेकर एबीपी तक और दूसरे माध्यमों द्वारा 2022 कै सबसे लोकप्रिय चेहरा बता दिया है जिससे 2017 की चुनावी हार से मिले ज़ख़्म और अपनों के राजनीतिक व्यंग्य बाणों से हुए मन के घाव अब भर दिए हैं। गोया सर्वे न आया हो मार्च 2022 हो और चुनाव नतीजों ने ‘हरदा आला रे’ गुनगुना दिया हो। सवाल है कि आखिर जब भला कांग्रेस हारती दिख रही तब वह हरदा को मुख्यमंत्री कैसे बना पाएगी?

सितंबर में आये ऐसे ही पिछले सर्वे में भी सरकार फिर बीजेपी की बनती दिखाई गई थी लेकिन अगले मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पहली पसंद तत्कालीन सीएम हरीश रावत को ही बनाया गया था। यहाँ तक कि पिछले चुनाव 2017 से पहले आए तमाम सर्वे-अनुमानों में भी हरीश रावत को मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे लोकप्रिय बताया गया था और तब सत्ताधारी कांग्रेस को हारते दिखाया था। लेकिन नतीजे चौंकाने वाले थे क्योंकि न कांग्रेस की इतनी बुरी हार देखी गई थी और न सिटिंग सीएम होकर हरीश रावत की दो-दो जगह से करारी हार की कल्पना किसी राजनीतिक पंडित न की थी।


जिनको भी स्मृति दोष हुआ हो वह सब आप याद कर सकते हैं कि 2017 में भी तमाम सर्वे और अनुमान लोकप्रियता के पैमाने पर हरदा को अव्वल दिखा रहे थे। लेकिन चुनाव चेहरे के साथ-साथ सांगठनिक शक्ति-बल का परीक्षण भी तो होते हैं। एक-एक सीट पर जीत का झंडा थामे विधायक नजर नहीं आए तो लोकप्रियता का झुनझुना बजाने को हाल 2022 में भी 2017 जैसा हो गया तो अचरज कैसा? आखिर हरदा की लोकप्रियता के साथ सांगठनिक ताकत और एकजुट प्रदेश नेतृत्व क़दमताल नहीं कर पाया तो सबसे कद्दावर नेता होना भी बेमानी हो सकता है।


यह हरदा की राजनीतिक चमक का ही परिणाम है कि वे हार में, जीत में भी जनता के बीच लोकप्रिय बने रहने का हुनर जानते हैं। तभी तो बावजूद इसके कि हरीश रावत 2019 में हठ कर हरिद्वार छोड़ आखिरी वक्त में नैनीताल दौड़े और वहाँ अजय भट्ट के हाथों मोदी वेव में मात खा गए लेकिन उनकी लोकप्रियता पहले की तरह बनी रही। वह इसलिए भी कि न राज्य में उनके जैसा जूनूनी नेता कोई दूसरा दिखता है और न फ़ीनिक्स बर्ड की तर्ज पर अपनी ही राख से फिर जीवंत हो उठने की उनके जैसी जीवटता कहीं किसी और नेता में नजर आती है। लेकिन, असल संकट कांग्रेस को जीतने लायक बनाने का है न कि इस बात को लेकर किसी को संदेह है कि हरीश रावत कितने और किस-किस नेता से अधिक लोकप्रिय हैं।


पहाड़ पॉलिटिक्स में आज न एनडी तिवारी हैं, न कांग्रेस में विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज रहे। न ही प्रतिद्वन्द्वी पार्टी में महाराष्ट्र के राज्यपाल बनने के बाद भगत सिंह कोश्यारी एक्टिव पॉलिटिक्स में हैं और जनरल बीसी खंडूरी राजनीति से रिटायर हो ही चुके। स्वास्थ्य और अन्य वजहों से फिलवक्त रमेश पोखरियाल निशंक भी परिदृश्य से नदारद हैं। फिर क्या यह बहस और सवाल ही बेमानी नहीं कि हरीश रावत के मुकाबले लोकप्रियता में कोई नहीं, मुख्यमंत्री से लेकर न सत्तापक्ष और न विपक्ष में कोई दूसरा चेहरा।

फिर क्या ऐसे सर्वे के लोकप्रियता के पैमाने को हरदा और उनके समर्थक महज कांग्रेस के भीतर अपने विरोधियों को चित करने के औज़ार के तौर इस्तेमाल कर लेना चाहते हैं? क्योंकि लोकप्रियता के इसी पैमाने का विरोधाभास सर्वे में ही हो जाता है, जब पता चलता है कि पांच साल से विपक्ष में होने के बावजूद कांग्रेस अगले पांच साल के लिए भी विपक्षी किले में क़ैद होती नजर आ रही है। वह भी तब जब सत्ताधारी दल भाजपा गुज़रे साढ़े चार सालों में तीन-तीन मुख्यमंत्री बदल चुका और पहले चार साल फिर चार माह में ही मुख्यमंत्री बदलना देश या कहें आज दुनिया की सबसे ताकतवर पार्टी के भीतर गहराते डर का द्योतक है। फिर भी सर्वे दर सर्वे कांग्रेस हार रही है, बीजेपी फिर सरकार बना रही है लेकिन हरीश रावत और समर्थक ढोल पीट रहे हैं कि देखिए अगले सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री के चेहरे हरीश रावत ही हैं। गोया राजनीति नहीं T-20 क्रिकेट का कोई मैच है कि ‘हरदा आला रे’ का नारा बुलंद होगा और कांग्रेस जैसी कमजोर टीम को अकेले दम चौके-छक्के लगाकर जीता ले जाएंगे!

वरन यह मोदी-शाह दौर की राजनीति है जो किसी टेस्ट क्रिकेट मैच की तरह कठिन व निरंतर तैयारी के साथ-साथ दम साधे धैर्य की कड़ी तपस्या सरीखा भगीरथ प्रयास है। जहां एक टी ब्रेक का अंतराल या अगले दिन का खेल पुरानी सारी बाजी व गणित पलट सकता है। आखिर ऐसा नहीं होता तो महीने दर महीने आ रहे सर्वे की बढ़त का मुग़ालता पाल कर बीजेपी भी घर बैठ सकती थी! फिर क्यों दो-दो निर्दलीय विधायकों से लेकर कांग्रेस का एक विधायक तोड़ चुकी सत्ताधारी पार्टी कई और सिटिंग विधायकों से लेकर कांग्रेस के उन पूर्व विधायकों को लुभाने और अपने पाले में खींचने की कोशिश कर रही जो इस बार पक्के तौर पर उसे जीतते दिख रहे हैं।

ऐसा लगता है जैसे चुनाव सामने है और विपक्षी भाजपा से टकराने से पहले हरदा एक लड़ाई घर के भीतर ही जीत लेना चाहते हैं। वह लड़ाई है मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए जाने की। हरीश रावत को छोड़कर शायद ही किसी को संदेह हो कि अगर कांग्रेस बाइस बैटल जीत पाती है तो मुख्यमंत्री कोई और बन पाएगा! लेकिन आए दिन किसी न किसी तरीके से खुद के सीएम चेहरा घोषित करा लेने का हरदा हठ ‘घर’ के भीतर उनके विरोधियों को न केवल भयभीत कर लामबंद होने को मजबूर कर रहा है बल्कि कांग्रेस नेतृत्व के एकजुटता को प्रयास को भी पलीता लगा रहा है। अपनी इसी ज़िद और आशंका के चलते हरदा भाजपा गए बागी कांग्रेसी नेताओं की राह में रोड़े अटका रहे हैं क्योंकि कल को ये नेता भी विरोधियों के साथ मिलकर उनके लिए संकट ही बढ़ाएंगे।

आखिर कोई तो वजह होगी कि हरीश रावत का साथ एक-एक कर गुज़रे वक्त के तमाम नेता छोड़ रहे हैं? हो सकता है हरदा से किनारा करने वालों के अपने हित-एजेंडे भी रहे हों लेकिन क्या सवाल खुद हरीश रावत को अपने आप से भी नहीं करना चाहिए? प्रीतम सिंह, रणजीत रावत, किशोर उपाध्याय, करन माहरा से लेकर भुवन कापड़ी जैसे अनेक चेहरे कभी हरीश रावत के अगल-बगल दिखते थे लेकिन अब आस्तीन चढ़ाए बैठे हैं। ऐसे दौर में जब कांग्रेस के लिए न केवल बचा खुचा कुनबा संभाले-थामे रखने की दरकार है बल्कि टूट कर गए लोगों को लाकर किसी तरह बाइस बैटल में दम दिखाने की दरकार है, तब हरदा की हर हाल मे सिरमौर बनने की चाहत और उस पर प्रीतम का हर तरीके से इसका जवाब देना, मु्ख्यधारा के टीवी न्यूज चैनलों के ऐसे सर्वे, जिनपर न राहुल गांधी को भरोसा रहा और न ही कांग्रेस व विपक्षी जमातों को, के रुझानों को हकीकत में बदल डालने का इशारा करता है।

सर्वेक्षण दर सर्वेक्षण, #AajTak से लेकर #ABP तक, जन की बात से संडे पोस्ट तक और पहाड़ टीवी से लेकर स्थानीय पोर्टलों तक सबने मुझे 2022 के लिए मुख्यमंत्री पद का सबसे लोकप्रिय चेहरा बताया है। 2017 की चुनावी हार और उसके बाद कई लोगों के राजनैतिक व्यंगों ने मेरे दिल में कई छेद कर दिये थे। एक आशा थी कि मैंने भगवान केदार और भगवान बद्रीश के बेटे और बेटियों की अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना सेवा की है। मुझे वही न्याय दिलाएंगे। आप सबने मुझे सबसे लोकप्रिय पसंद बताकर मेरे घावों को भर दिया है। मुझे सत्ता की चाहत नहीं है। चाहत है तो गांव के उस व्यक्ति को राज्य की तरक्की से जोड़ने की है, जिसे अभी तक राज्य के तरक्की का लाभ नहीं मिला है। एक समन्वित विकास के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति को राज्य के सभी हिस्सों व वर्गों की विकास संबंधी आवश्यकता व सोच का ज्ञान होना चाहिए। राज्य को एक ऐसे #मुख्यमंत्री की आवश्यकता है जो काफल और काले भट्ट का महत्व समझता हो, जिसके पास ऐसी क्षमता हो जिसके आधार पर वह मडुवे और गन्ने का समन्वित संगीत तैयार कर सके। उत्तराखंडियत के लिए यह चुनाव अंतिम अवसर है। उत्तराखंडियत की विजय के लिए आपको, हमको, कांग्रेस के साथ खड़ा होना चाहिये। कांग्रेस ने इधर 3 बड़े कार्यक्रम दिये हैं। पहला कार्यक्रम सदस्यता अभियान का है। दूसरा कार्यक्रम गांव-गांव कांग्रेस, गांव से जुड़ो-गांव चलो का है और तीसरा कार्यक्रम पूर्व सैनिकों व शहीदों के सम्मान का है। मेरा आपसे आग्रह है कि इन कार्यक्रमों के साथ जुड़कर के कांग्रेस के झंडे को थामिये तभी आप हरीश रावत को राज्य का मुख्यमंत्री बना पाएंगे।
“जय हिंद,जय उत्तराखंड, जय उत्तराखंडियत”

हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखंड






			
		
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