न्यूज़ 360

ADDA ANALYSIS मोदी मैजिक के बावजूद चुनाव कैसे हार गई ‘चौकड़ी’? बतौर सीएम धामी के 6 माह पर भारी पड़ गई साढ़े 9 साल की एंटी इनकमबेंसी, सीएम बनते ही साया हो गए स्वामी निपटे तो मित्र संजय गुप्ता भी पराजित, करीबी शुक्ला भी हैट्रिक से चूके, क्या करारी हार के बाद भी धामी की होगी ताजपोशी?

Share now

देहरादून: मुख्यमंत्री होने के बावजूद अपनी खटीमा विधानसभा सीट से पुष्कर सिंह धामी तो चुनाव हारे ही, सत्ता पाते ही उनके सबसे करीब दिखने वाले कई मित्र भी शिकस्त खा बैठे हैं। सवाल है कि जब प्रदेश में भाजपा की जीत के लिए सूबे की सरकार के मुखिया के नाते पुष्कर सिंह धामी की शान में कशीदे गढ़े जा रहे, तब भला यह सवाल कब पूछा जाएगा कि आखिर मोदी मैजिक के बावजूद न केवल धामी निपट गए बल्कि उनके बेहद करीबी और आठ महीनों की सरकार में साये की तरह साथ रहे स्वामी यतीश्वरानंद भी कैसे चित हो गए? वह भी तब जब पिछले तमाम चुनावों में 70-75 फीसदी मंत्री चुनाव हारते रहे हों और इस बार स्वामी को छोड़कर सभी मंत्री चुनाव जीत गए हों! धामी और स्वामी की तिकड़ी के तीसरे किरदार संजय गुप्ता भी लक्सर में लुढ़क गए और किच्छा में धामी के एक और करीबी राजेश शुक्ला भी अपने तीनों मित्रों की तर्ज पर जीत की हैट्रिक से चूक गए।

दरअसल, यह भी सही है कि पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र और तीरथ राज के डैमेज को कंट्रोल करने में कामयाब रहे और विधायकों से लेकर काडर में नाराजगी को काफी हद तक दूर कर पाए। लेकिन कुछेक खास अफसरोें की घेराबंदी के अलावा सरकार और दल से बाहर के कई तिकड़मबाजों ने भी धामी दरबार में दमदार हैसियत बना ली थी। ऊपर से धामी-स्वामी की जोड़ी को टारगेट कर विपक्ष ने ‘खनन प्रेमी मुख्यमंत्री’ का जो कैंपेन चलाया उसने भी खासा डैमेज किया। अगर ऐसा न होता तो आज प्रदेश के पॉवर कॉरिडोर में इस ‘चौकड़ी’ के चित होने की चर्चा न हो रही होती!

यह भी सच है कि नई सरकार में सीएम पद से धामी की छुट्टी के लिए क़रीने से भीतरघात के कार्य को अंजाम दिया गया। तो बराबर आरोप यह भी हैं कि पॉवर कॉरिडोर की जोड़ी ने अपने ही प्रदेश अध्यक्ष को हरिद्वार में निपटाने का भी ज़ोरदार प्लान बनाया था। यह अलग बात है कि मदन कौशिक चौतरफा घेराबंदी के बावजूद बच निकले और पांच साल आह भरते रहने का मौका ‘अपने’ विरोधियों को दे गए। वैसे कौशिक, धामी, स्वामी और संजय छोड़िए कई सीटों पर ‘अपनों’ ने मेहरबानी करम बरसाया लेकिन जनता ने मोदी के नाम पर अधिकतर सीटों पर भाजपा के ‘विभीषणों’ को कामयाब नहीं होने दिया। लेकिन धामी के छह-आठ माह के मुख्यमंत्रित्वकाल पर उनके विधायक के साढ़े नौ साल की एंटी इनकमबेंसी इतना भारी पड़ी कि उनको करारी हार का सामना करना पड़ा।

हालाँकि टीम धामी ने उनकी हार के बाद भी हथियार न डालकर मुख्यमंत्री की रेस में उनको सबसे आगे खड़ा करा दिया है। इसी रणनीति के तहत पहले चंपावत से जीते कैलाश गहतोड़ी ने अपनी सीट ऑफर की तो अब जागेश्वर से जीते मोहन सिंह माहरा ने भी अपनी विधायकी की ‘क़ुर्बानी’ का ऑफर दे दिया। दोबारा जीत मिलने के बाद अब भाजपा आलाकमान भी जल्दी के मूड में नहीं है लिहाजा धामी की तरह अन्य नेताओं को भी सीएम रेस में बने रहने के लिए दाँवपेच आज़माने का पूरा अवसर मिल रहा है।


धामी के अलावा रेस में सबसे आगे विधायकों में सतपाल महाराज और डॉ धन सिंह रावत का नाम ही है। यूँ तो बिशन सिंह चुफाल से लेकर बंशीधर भगत जैसे तमाम वरिष्ठ नेताओं की नजर सीएम किरिसी पर है। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के नाते दावेदारी मदन कौशिक की भी नकारी नहीं जा सकती है। जबकि सांसदों में साइलेंटली अपना नाम आगे कर रहे हैं अनिल बलूनी, अजय भट्ट और रमेश पोखरियाल निशंक! वैसे जिस तरह के फैसले मोदी-शाह लेते रहे हैं उस लिहाज से सरप्राइज़ नाम के लिए भी तैयार रहने की जरूरत है।

Show More

The News Adda

The News अड्डा एक प्रयास है बिना किसी पूर्वाग्रह के बेबाक़ी से ख़बर को ख़बर की तरह कहने का आख़िर खबर जब किसी के लिये अचार और किसी के सामने लाचार बनती दिखे तब कोई तो अड्डा हो जहां से ख़बर का सही रास्ता भी दिखे और विमर्श का मज़बूत मंच भी मिले. आख़िर ख़बर ही जीवन है.

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!