देहरादून: सियासत एक तय फ़ॉर्मूले से आगे बढ़ती है और अगर जातीय समीकरण साधने की बात हो तो फिर हर दल सबको खुश करने के दांव पेंच आज़माता है।यूपी में ठाकुर-ब्राह्मण और ओबीसी का यही समीकरण बना था। उतराखंड में ठाकुर-ब्राह्मण-दलित का यही समीकरण बनता रहा है। कल तक भी सीएम तीरथ ठाकुर थे तो अध्यक्ष के रूप में मदन कौशिक को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर जगह मिली हुई थी।अब तीरथ का त्यागपत्र हो चुका लिहाजा नए चेहेरे की तलाश में भी इस समीकरण का कितना ध्यान रखा जाएगा इस पर सबकी नजर है. फैसला तीन बजे होगा लेकिन सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से इन चेहरों पर दांव लगाया जा सकता है।
एक समीकरण तो यही है कि ठाकुर सीएम गए हैं तो ठाकुर चेहरे को ही मौका मिलेगा। ऐसे इस साल दस मार्च को तीरथ को सीएम बनाते वक्त भी देखा गया और 2009 में जनरल खंडूरी को हटाकर निशंक और फिर निशंक से कुर्सी छीनकर खंडूरी को वापस करते भी यही फ़ॉर्मूला आज़माया गया।
ऐसे में तीरथ का रिप्लेसमेंट गढवाल से सतपाल महाराज और डॉ धनसिंह रावत होंगे या फिर कुमाऊं से ठाकुर चेहरे बिशन सिंह चुफाल और पुष्कर सिंह धामी! महाराज के स्वाभाविक विरोध की कई वजह होने पर चुफाल और धनदा को वेटेज दिया जा रहा। वैसे टीएसआर समर्थक सारा किया धरा सियासी घटनाक्रम त्रिवेंद्र की वापसी का माध्यम भी मानकर चल रहे।
दूसरा समीकरण अगर ब्राह्मण चेहरे को तवज्जो देने का है तो उसमें केन्द्रीय मंत्री निशंक, सांसद अनिल बलूनी और मदन कौशिक, सुबोध उनियाल को लेकर बनता है। सवाल है कि कोरोना संकट को देखते हुए क्या फिर सांसद पर दांव खेलने का जोखिम लिया जाएगा।
अब अगर चुफाल को मौका मिलता है तो प्रदेश अध्यक्ष बदलने की दरकार भी न हो शायद। धनसिंह या महाराज बनते हैं तो संभव है उनका खाली हुआ मंत्रीपद कुमाऊं को देकर बैलेंस किया जाए।