अड्डा Exclusive(@pawan_lalchand)
देहरादून: अब इसे दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की उत्तराखंड में एंट्री से बढ़ती पूर्व मुख्यमंत्री हरीश
रावत की बेचैनी का असर समझिए या फिर मुस्लिम वोटर्स को लुभाने का अपना नया पैंतरा! शनिवार को एक के बाद एक कई ट्विट कर हरदा ने बताया कि बीजेपी ने 2017 में जुम्मे की नमाज़ पर छुट्टी का झूठ फैलाया और यह ‘काठ की हांडी’ अब दोबारा 2022 में नहीं चढ़ने वाली है।
इसी के साथ हरीश रावत ने अटल, मोदी से लेकर राजनाथ जैसे बीजेपी नेताओं के मुस्लिम टोपी पहनने पर मौलाना न बनने और खुद के वैसी ही टोपी पहनने पर मौलाना हरीश रावत बनने का दर्द भी बयां किया है।
अब जब हरदा ने करीब पांच साल बाद हिन्दू-मुस्लिम राजनीति को अपने ट्विट के ज़रिए बहस का मुद्दा बनाने की ठान ही ली है तो हमने भी दिसंबर 2016 के अखबार और मीडिया रिपोर्ट्स खंगालनी शुरू कर दी। रिसर्च में पता चला कि शनिवार 17 दिसंबर 2016 को हरीश रावत कैबिनेट ने सरकारी कार्मिकों को फ्राईडे नमाज़ यानी जुम्मे की नमाज़ के लिए दोपहर 12:30 बजे से 2 बजे तक ब्रेक यानी छुट्टी देने का फैसला किया था। तत्कालीन हरीश रावत सरकार की कैबिनेट में हुए इस फैसले की तस्दीक़ करती कई रिपोर्ट इंटरनेट पर आज भी मौजूद हैं।
इसी को विपक्ष खासकर बीजेपी ने यह कहते हुए मुद्दा बनाया था कि यह हरीश रावत सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति है और अगर कल को हिन्दू कार्मिकोें ने सोमवार को शिव पूजा, मंगलवार को हनुमान पूजा और शनिवार को शनिदेव की पूजा के लिए छुट्टी लेनी चाही तब क्या होगा!
जाहिर है जब डेढ़ घंटे नमाज ब्रेक का फैसला उलटा पड़ने लगा तो हरीश रावत सरकार ने अन्य धर्मावलंबियों के लिए भी ऐसी व्यवस्था का राग छेड़ना शुरू किया था और इसको लेकर भी कई मीडिया रिपोर्ट्स मिली हैं। लेकिन तब तक बीजेपी को अपने चुनाव अभियान के लिए जरूरी गोला-बारूद मिल चुका था। लेकिन हरदा बीजेपी को इस लाइन पर आगे बढ़ाने के लिए यहीं नहीं रुके आगे भी कई ऐसे चुनावी पांसे फेंके जो सटीक बैठे।
क्या हरीश रावत का धारचूला छोड़कर हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर की 20 सीटों पर मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के लिए दो-दो सीटों से चुनाव लड़ना और राहुल गांधी के रोड शो का हरिद्वार में बनाया रूट इस ओर इशारा नहीं कर रहा था कि वे किस तरह की चुनावी बिसात बिछाकर जंग जीतने निकले थे! वरना तीन साल गैरसैंण के मुद्दे को गरमाए रहे हरदा अचानक पहाड़ छोड़कर तराई और मैदान साधने न उतरते! अब ये अलग बात रही कि इस कदम ने बीजेपी का रास्ता और आसान कर दिया। इन दोनों जिलों में न केवल हरदा बुरी तरह से हारे बल्कि कांग्रेस का भी काम तमाम हो गया।
अब पांच साल बाद जब हरदा कांग्रेस की कैंपेन कमेटी के कमांडर बन चुके हैं और रविवार से चुनाव अभियान के आगाज से एक दिन पहले अचानक शनिवार को हिन्दू-मुस्लिम राजनीति के गड़े मुर्दे उखाड़कर क्या हासिल करना चाह रहे? राजनीतिक पंडित हरदा की इस रणनीति का एक बड़ा कारण आम आदमी पार्टी को मान रहे जिसको हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर में समर्थन मिलता देख कांग्रेस की चिन्ता बढ़ी हुई है।
आखिर कांग्रेस को दिल्ली में केजरीवाल ने उसी के दांव से चित कर करीब-करीब समाप्त कर दिया है और रही सही कसर पूरी करने को ओवैसी बिहार से लेकर यूपी-उत्तराखंड तक आतुर हैं। लेकिन नमाज की छुट्टी की याद दिलाकर हरदा अक्लियत के कितने हमदर्द साबित हो पाते हैं यह अलग बात है पर इतना जरूर है कि इन गड़े मुर्दे को उखाड़कर वे बीजेपी को अपनी पांच साल की नाकामियां छिपाने की ढाल तैयार करके जरूर दे रहे हैं।
बीजेपी के राज्यसभा सांसद और मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने हरदा को जवाब दे भी दिया है और बीजेपी चाहेगी कि इस दिशा में पूर्व मुख्यमंत्री आगे बढ़ते रहें ताकि चुनावी नैरेटिव फिर यही बन जाए।