ADDA EXPLAINER चार माह भी संभाल नहीं पाए तीरथ कांटों भरा ताज अब किसके सिर, इनको मिल सकता है मौका, चेहरों के पीछे का गणित भी समझिए

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देहरादून/ दिल्ली: तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखंड के 10वें मुख्यमंत्री के पद से शुक्रवार देर रात राजभवन जाकर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफा सौंप दिया। अब सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यहीं है कि आखिर बचे हुए छह-आठ महीनों के लिए मुख्यमंत्री का काँटों भरा ताज किसके सिर रखा जाएगा? आज 3 बजे बीजेपी विधायक दल की बैठक में इसका ऐलान होगा क्योंकि तीरथ सिंह से ताज छीनने के फैसले से पहले ही बीजेपी नेतृत्व ने हर हाल में नया चेहरा भी खोज लिया होगा जिसका औपचारिक ऐलान केन्द्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर देहरादून आ रहे कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर करेंगे। बावजूद इसके कि बीजेपी नेतृत्व फैसला कर चुका है लेकिन जब तक ऐलान नहीं हो जाता तब तक कयासबाजी भी थमने वाली नहीं है।


सियासी गलियारे में ये कुछ नाम है जो दौड़ में बने हुए हैं:

सबसे पहला नाम पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का है क्योंकि टीएसआर कुर्सी छोड़ने के बाद लगातार एक्टिव रहे और पूरे प्रदेश में दौरे कर एक्टिव होने का संदेश दे रहे हैं। टीएसआर तीरथ के बाद दिल्ली दरबार भी गए थे जहां जेपी नड्डा, अमित शाह सहित तमाम नेताओं से मुलाकात कर आए। त्रिवेंद्र को लेकर ये तर्क दिया जा रहा कि जैसे जनरल खंडूरी को हटाकर फिर चुनाव से पहले उनको जरूरी समझा गया था वैसे ही टीएसआर को मौका दिया जा सकता है। टीएसआर के लिए पॉजीटिव ये है कि गृहमंत्री अमित शाह फिर बीजेपी के इंटरनल डिसिजन मेकिंग प्रोसेस में एक्टिव नजर आने लगे हैं और त्रिवेंद्र 2014 से ही शाह के क़रीबियों में गिने जाते हैं। लेकिन टीएसआर का सबसे बड़ा माइनस पॉइंट ये है कि मंत्री हरक सिंह से लेकर तमाम कांग्रेसी गोत्र के भाजपाई मंत्री-विधायक उनके विरोध में हैं और बीजेपी विधायकों की एक बड़ी लॉबी भी उनके खिलाफ मुखर है।

दूसरे नाम मंत्री सतपाल महाराज का है जो कांग्रेस से बीजेपी आने के बाद से सियासी पत्तल उठाते ही ज्यादा नजर आ रहे, ऐसा उन्होंने पाला बदलते खुद कहा भी था और बीजेपी ने अब तक उनसे वैसा ही कराया भी लगता है, लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत से करीबी और एक आध्यात्मिक धर्मगुरु की छवि तथा कई राज्यों में प्रभाव के चलते संभव है कि अब महाराज को मुख्यमंत्री बनाकर पहली बार 2017 में चौबट्टाखाल से विधानसभा चुनाव लड़कर स्थानीय राजनीति में सिरमौर बनने की उनकी अधूरी हसरत पूरी कर दी जाए। लेकिन महाराज के साथ दिक्कत ये है कि एक तो उनका कैबिनेट मंत्री के तौर पर कार्यकाल निराशाजनक रहा है, दूसरा उनका विरोध खाँटी भाजपाई तो करेंगे ही कांग्रेस गोत्र वाले बहुगुणा, हरक जैसे दिग्गज भी उनको पचा नहीं पाएंगे।

तीसरा नाम राज्यमंत्री डॉ धन सिंह रावत का लिया जा रहा है।वैसे तो धनदा का नाम 2017 में भी खूब चला और टीएसआर की मार्च में छुट्टी होने पर भी उछला था। उन्होंने हेलीकॉप्टर दौड़ाकर कई विधायक भी देहरादून लैंड कराए, टीएसआर ने भी मार्च में अपना समर्थन झोंका लेकिन बात बन नहीं पाई थी। अब फिर धनदा की चर्चा है और उसकी वजह है संघ नेताओं से नज़दीकी, केन्द्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर कई नेताओं से अच्छे रिश्ते और प्रदेश में संगठन का खूब तजुर्बा। लेकिन धनदा का सबसे बड़ा माइनस पॉइंट उनका साढ़े चार साल की सरकार में जूनियर मोस्ट मंत्री होना। ऐसे में सवाल है कि उनको अब नंबर एक यानी सीएम बनाया जाता है तो वरिष्ठ मंत्रियों में महाराज, हरक से लेकर तमाम दिग्गज उन्हें कैसे पचाएंगे।


एक डार्क हॉर्स नाम प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का भी है जिनके पास सरकार में रहने और विधायक के रूप में लंबा अनुभव है लेकिन मैदानी क्षेत्र से सीएम का चेहरा चुना जाएगा इसकी संभावना क्षीण ही दिखती है। कुछ बीजेपी विधायकों और कांग्रेसी गोत्र वाले विधायकों के समर्थन के दावे के साथ क़द्दावर मंत्री हरक सिंह रावत भी मंत्रीपद ले छु्ट्टी पाकर मुख्य मंत्री की चाहत पाले हैं लेकिन बीजेपी नेतृत्व उन पर विचार करेगा ऐसा लगता नहीं।


अब नाम तो मंत्री बिशन सिंह चुफाल, पुश्कर सिंह धामी से लेकर ऋतु खंडूरी भूषण के भी चलाए जा रहे लेकिन सवाल है कि क्या एक एक्सपेरिमेंट मार्च में करके अपनी भद्द पिटवा चुका बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व फिर ऐसे किसी चेहरे को मौका देगा जो न सिर्फ सरप्राइज़ एलिमेंट लिए होगा बल्कि सिर्फ और सिर्फ केन्द्रीय नेतृत्व की पसंद के तौर पर पहचान रखता हो? या फिर इस बार मोदी-शाह-नड्डा न ख़ालिस अपनी या संघ की पसंद की बजाय संकट में फँसी नाव के लिए बोझ बनने की बजाय उसे मँझधार से निकालने में मददगार साबित होता दिखेगा ऐसे चेहरे पर दांव लगाएंगे! आखिर 2022 बैटल का वक्त करीब जो ठहरा।


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