देहरादून: कहते हैं सियासत संभावनाओं का खेल है और कब किस नेता को कौनसी भूमिका निभाने का अवसर मिल जाए इसे लेकर कई बार सारे अनुमान धरे रह जाते हैं। ज्यादा पीछे न भी जाएँ तो पिछले साढे चार पौने पांच वर्षों में कई तरह के उलटफेर की गवाह पहाड़ पॉलिटिक्स बनी है। टीएसआर 1 के सीएम बनने से लेकर टीएसआर 2 को कुर्सी मिलने और छीनने तथा फिर पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी तक कई अप्रत्याशित पॉलिटिकल डेवलेपमेंट होते दिखे हैं।
अब इसी दिशा में नया हल्ला मचा है खासतौर पर सोशल मीडिया और बीजेपी कॉरिडोर्स के एक सेक्शन में कुछ समय से चर्चा उड़ रही है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की फिर से सक्रिय राजनीति में एंट्री हो सकती है। चर्चाएं हैं कि जैसे बेबी रानी मौर्य को राजभवन से फ्री कर सक्रिय राजनीति में उतारा जा सकता है उसी तर्ज पर भगतदा को भी महाराष्ट्र राजभवन से फ्री कर देवभूमि दंगल में बीजेपी की तरफ से मोर्चा संभालने का दायित्व दिया जा सकता है।
भगतदा को विधानसभा चुनाव की कैंपेन कमेटी की ज़िम्मेदारी देकर कांग्रेस कैंपेन चीफ हरदा से दो-दो हाथ करने को चुनावी जंग में उतारा जा सकता है। दरअसल न केवल कुमाऊं की राजनीति में भगतदा हरदा की घेराबंदी में कारगर साबित हो सकते हैं बल्कि पूरे प्रदेश में कोश्यारी ही वो किरदार हैं जो कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे हरीश रावत को उन्हीं के सियासी अंदाज में चुनौती दे सकते हैं। इस जंग में अस्वस्थ चल रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी कारगर साबित हो सकते हैं और इसे लेकर भी चर्चाएं रहती हैं लेकिन भगतदा की बढ़ती सक्रियता नई पटकथा की ओर इशारा कर रही है।
सांगठनिक तौर पर हरदा के हर रंग का जवाब देने में माहिर समझे जाने वाले भगतदा राज्य बनने के बाद अल्प समय के लिए ही अंतरिम सरकार में नित्यानंद स्वामी के हटने पर सीएम बने थे। 2007 में भी बाज़ी मेजर जनरल बीसी खंडूरी मार गए थे। ऐसे में हसरतें आज भी खिचड़ी वाले बाबा की बलवती रहती हैं और मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उन्हीं के राजनीतिक शिष्य हैं।
दरअसल भगतदा को लेकर हल्ला सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वे कांग्रेस की तरफ़ से सामने आए हरदा का जवाब भर हैं बल्कि ऐसे में जब कांग्रेसी गोत्र के चेहरे पार्टी के बाहर अपना संगठन होने जैसे बाग़ी सुर दिखा रहे तब भगतदा ही वो नेता हैं जिनके साथ न केवल पूर्व सीएम विजय बहुगुणा बल्कि मंत्री हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य जैसे नेताओं की ख़ूब पटरी बैठती है।