Who will be next BJP State President? बाइस बैटल जीत चुकी भाजपा अब 2024 की चुनावी चुनौती को लेकर सियासी बिसात बिछाने में जुट गई है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पहाड़ प्रदेश में मोदी सूनामी पर सवार भाजपा ने पांच की पांच सीटों पर जीत दोहराई। अब उसके सामने लोकसभा की लड़ाई में जीत की हैट्रिक लगाने का टास्क है और विधासनभा चुनाव 2022 में भाजपा को प्रचंड जीत मिलने के बावजूद उसका वोट प्रतिशत घटा है खासकर हरिद्वार और नैनीताल-ऊधमसिंहनगर लोकसभा सीटों को लेकर पार्टी रणनीतिकारों को चिन्ता हो रही है। यही वजह है कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व सक्रिय हो गया है और पार्टी के प्रदेश नेतृत्व में बदलाव की नए सिरे से चर्चाएं इसी का परिणाम हैं।
इस वक्त उत्तराखंड भाजपा की बिसात पर नजर डालें तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कुमाऊं क्षेत्र से आते हैं और केन्द्र में मंत्री अजय भट्ट भी सूबे के उसी क्षेत्र की नुमाइंदगी करते हैं। गढ़वाल क्षेत्र की बात करें तो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक मैदानी क्षेत्र हरिद्वार से आते हैं और विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भी पौड़ी जिले का प्रतिनिधित्व करती हैं। धामी कैबिनेट में मंत्री सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल, डॉ धन सिंह रावत, प्रेमचंद अग्रवाल और गणेश जोशी गढ़वाल मंडल से ही गिने जाएंगे। जबकि मंत्री चंदन राम दास, रेखा आर्य और सौरभ बहुगुणा कुमाऊं मंडल से आते हैं। राज्यसभा भेजे गए तीनों के तीनों सांसद अनिल बलूनी, नरेश बंसल और डॉ कल्पना सैनी गढ़वाल क्षेत्र में काउंट किए जाएंगे। साफ है मोदी-शाह ने क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज़ से पहाड़-मैदान और गढ़वाल-कुमाऊं को साध रखा है, जबकि ठाकुर, ब्राह्मण दलित और ओबीसी फैक्टर भी मैनेज किया हुआ है।
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर अगस्त के दूसरे-तीसरे हफ्ते में मदन कौशिक को हटाया जाता है, जैसी की भाजपा कॉरिडोर्स में नए सिरे से चर्चाएं शुरू हुई हैं, तब किस नए चेहरे पर दांव खेला जाएगा? नए अध्यक्ष को लेकर चार नामों की चर्चा हो रही है। तीन ब्राह्मण और एक दलित चेहरे को नए अध्यक्ष की दौड़ में गिना जा रहा है। ये चेहरे हैं पूर्व विधायक महेन्द्र भट्ट, कैलाश शर्मा, सौरभ थपलियाल और विधायक खजानदास। यानी तीन ब्राह्मण चेहरों के अलावा एक दलित चेहरे की भी चर्चा हो रही है।
महेन्द्र भट्ट पूर्व विधायक हैं और आरएसएस में मजबूत पकड़ रखने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं। बदरीनाथ विधानसभा से विधायक रहे भट्ट को प्रदेश भाजपा की कमान देकर पार्टी मैदान से मदन कौशिक को लेकर जब तब उठने वाले हल्ले को शांत कर सकती है और कांग्रेस के पहाड़ से अध्यक्ष के जवाब में पहाड़ से अध्यक्ष देकर दे सकती है। भट्ट को कमान से गढ़वाल कुमाऊं का संतुलन भी सधेगा।
जबकि सौरभ थपलियाल भाजपा के युवा चेहरे हैं डोईवाला से चुनावी रेस में पिछड़ गए थे लेकिन युवा मोर्चा अध्यक्ष रहे हैं और जब खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी युवा मोर्चा से निकले हैं तब प्रदेश अध्यक्ष भी युवा मोर्चा बैकग्राउंड वाला बनाकर मोदी-शाह युवा वोटर्स को लुभाने का दांव खेल सकते हैं। सौरभ थपलियाल को मौका देने से भी गढ़वाल और कुमाऊं का संतुलन सधेगा और संगठन से भी युवा नेतृत्व रहने से युवा मुख्यमंत्री धामी को भी राहत रहेगी।
तीसरा ब्राह्मण चेहरा कुमाऊं से कैलाश शर्मा का है जो मामूली अंतर से अल्मोड़ा की चुनावी जंग हार गए लेकिन चंपावत उपचुनाव में मुख्यमंत्री धामी ने शर्मा को अहम ज़िम्मेदारी दिलाकर संकेत दे दिए थे कि दोनों में अंडरस्टेडिंग बेहतर है। जाहिर है कैलाश शर्मा के खिलाफ यही जाता है कि वे भी मुख्यमंत्री की तरह ही कुमाऊं से आते हैं और केन्द्रीय मंत्री अजय भट्ट भी उसी क्षेत्र से हो गए।
हालाँकि इसका जवाब यह भी हो सकता है कि विधानसभा में स्पीकर गढ़वाल से हैं और धामी कैबिनेट में
अधिकतर कद्दावर मंत्री भी इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। राज्यसभा के तीनों सांसद भी गढ़वाल से ही ठहरे। वैसे भी मोदी-शाह अपने तरीके से समीकरण साधते हैं तभी को एक समय मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत और केन्द्र में मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक दोनों गढ़वाल से रहे। उससे पहले विपक्ष में रहते अजय भट्ट ने काफी समय प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष दोनों पदों को सम्भाला।
प्रदेश अध्यक्ष की रेस में एक चौथा नाम राजपुर रोड विधानसभा सीट से विधायक खजानदास का भी लिया जा रहा है। निशंक सरकार में मंत्री रहे खजानदास पार्टी में कई जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं। खजानदास दलित चेहरे हैं और उनको अध्यक्ष बनाकर भाजपा नेतृत्व कांग्रेस द्वारा नेता प्रतिपक्ष बनाए गए दलित चेहरे यशपाल आर्य का जवाब दे सकता है। खजानदास को संगठन की कमान देने से भी गढ़वाल-कुमाऊं के साथ साथ ठाकुर सीएम, ब्राह्मण केन्द्र में मंत्री और सूबे में दलित प्रदेश अध्यक्ष यानी तमाम सामाजिक समीकरण आसानी से सध सकते हैं।
इतना तय है कि मोदी-शाह संगठन और सरकार में किसी भी तरह के वर्चस्व की अंदरूनी जंग न छिड़े लिहाजा प्रदेश अध्यक्ष का चयन करते मुख्यमंत्री धामी की राय को तवज्जो दे सकते हैं। लेकिन अब सवाल यह भी है कि अगर मोदी-शाह मदन कौशिक से संगठन की कमान वापस लेते हैं तो उनका राजनीतिक समायोजन कहां होगा? क्या मदन कौशिक को धामी सरकार में मंत्री बनाकर हरिद्वार जिले को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा या फिर उनको भाजपा की केन्द्रीय टीम में जगह देकर 2024 की रेस में बने रहने का इशारा किया जाएगा? वैसे हरिद्वार लोकसभा सीट को लेकर लट्ठमलठ सिर्फ हरदा वर्सेस हरक की कांग्रेस में ही नहीं है बल्कि सांसद निशंक को सीट से बेदख़ल होने देखने को कौशिक-टीएसआर से लेकर कई नेता भाजपा में भी टकटकी लगाए बैठे हैं। जाहिर है सूबे की सियासत में अपना वजूद बचाने को लेकर नेताओं के अपने लक्ष्य और लश्कर हैं लेकिन कौन जानता है चौबीस की चुनौती से पार पाने को मोदी के मन-मस्तिष्क में क्या सियासी समुद्र मंथन चल रहा है!