देहरादून/चम्पावत: सूबे की राजनीति के लिहाज से बेहद अहम समझे जा रहे चम्पावत उपचुनाव की तारीख का एलान हो गया है। इसी के साथ यह सवाल भी राजनीतिक गलियारों में दौड़ रहा है कि क्या खटीमा में ‘खेला होबे’ करा बैठे युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी चम्पावत चुनाव में बड़ी जीत दर्ज कर चीफ मिनिस्टर कुर्सी पर पांच साल के लिए काबिज़ हो जाएंगे?
चुनाव आयोग द्वारा जारी कार्यक्रम के अनुसार 31 मई को उपचुनाव को लेकर वोटिंग होगी और 3 जून को नतीजा आएगा। 10 मार्च को ही उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे और 21 अप्रैल को चम्पावत से जीते भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी ने सीएम धामी के लिए सीट छोड़ते हुए अपना इस्तीफा दे दिया था। ज़ाहिर है हार के बावजूद आलाकमान के चहेते बनकर उभरे धामी किसी भी कीमत पर चम्पावत में कमल खिलाना चाहेंगे ताकि पूरे पांच साल के लिए वे CM कुर्सी पर काबिज रहें। लेकिन यह रास्ता उतना आसान भी नही रहने वाला है।
भले विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारी कांग्रेस उपचुनाव में पूरी ताकत के साथ सामने खड़ी हो पाए लेकिन धामी की धमक को असल ग्रहण लगने का खतरा भितरघातियों से ही है। खतरे की आशंका महज टीम धामी की हवाई चिंता नहीं बल्कि जिस तरह की रिपोर्ट खटीमा से आई वो लाजिमी तौर पर मुख्यमंत्री के लिए चिंतित होने का इशारा करती हैं। वरना जिस चेहरे को आगे कर पार्टी चुनावी समर में कूदी उन्हीं की लुटिया अपनी सीट पर कैसे डूब जाती!
धामी का उपचुनाव न केवल मुख्यमंत्री के तौर पर उनके लिये अहम है बल्कि पार्टी नेतृत्व के फैसले पर जनता की मुहर के लिहाज से भी खास है। तभी खुद राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी एल संतोष दो दिवसीय प्रवास पर देहरादून आकर चम्पावत उपचुनाव की पूरी व्यूहरचना बनाकर गए। उसी के बाद चम्पावत में पार्टी का झंडा बुलंद करने को खास टीम का एलान किया गया जिसमें सतपाल महाराज और धन सिंह रावत जैसे कद्दावर व चुनाव लड़ाने के लिहाज से ‘अनुभवी’ मंत्रियों की बजाय महाराष्ट्र राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बेहद खास और पहली बार मंत्री बनाये गए चंदन राम दास को मोर्चे पर लगाया गया है। प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री अजेय कुमार भी लगातार चम्पावत में कैम्प कर ही रहे है और असल दारोमदार निवर्तमान विधायक कैलाश गहतोड़ी पर रहेगा ही।
बी एल संतोष के निर्देश पर उन तमाम बूथों पर खास फ़ोकस किया जा रहा है जो पिछले चुनाव मैं कमजोर रहे। साथ ही भितरघातियों पर पैनी नज़र रहेगी ताकि खटीमा के दोहराव को रोका जा सके।
दरअसल भाजपा नेतृत्व को साफ इलहाम हो चुका है कि सूबे की ठाकुर लीडरशिप में अब पुष्कर सिंह धामी ही सबसे भरोसेमंद चेहरे बन चुके हैं। धामी सहज होकर चुनौतियों से मुकाबला करने में विश्वास रखते हैं न कि TSR 1 की तरह राजशाही अंदाज ए बयां के साथ सरकार हांकने की कोशिश करते हैं और न ही TSR 2 की तरह बेवजह की बयानबाजी कर फटी जीन्स जैसे मसलों से सोच का फालूदा बनवाने की चूक कर रहे हैं। धामी के जरिये भाजपा पार्टी की अंदरूनी राजनीति में कई स्थापित कैंपों को मटियामेट कर चुकी है और अब विघ्नसंतोषियों की संख्या सिमट चुकी है या जो हैं वो हाशिये पर पहुंचा दिये गए हैं।
ऐसे में अगर धामी ने चम्पावत में कमल खिला दिया तो सत्ता पर उनकी मजबूत पकड़ अगले पांच साल के लिए अभेद्य किले सरीखी हो जाएगी। लेकिन विरोधियों में इसी बात का संदेश मुख्यमंत्री धामी के लिए भी सतर्क रहने का मैसेज है क्योंकि सावधानी हटी तो सियासी दुर्घटना घटते देर नहीं लगती।