
- बहुत देर कर दी हुज़ूर आते-आते! चारधाम यात्रा के दो माह बर्बाद कर धामी सरकार को हुआ ग़लती का अहसास
- पर्यटन मंत्री महाराज ने कहा SC से SLP वापस लेंगे
- देखिए क़ानून के जानकार कैसे सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे?
देहरादून: Uttarakhand CHARDHAM Yatra चारधाम यात्रा को लेकर धामी सरकार की हालत ‘चौबेजी छब्बेजी बनने गए थे दुबेजी बनकर लौटे’ वाली नजर आ रही है। जुलाई के पहले हफ्ते में हाईकोर्ट फैसले को चुनौती देने SLP यानी विशेष याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट गई सरकार यात्रा सीजन के महत्वपूर्ण दो माह गुजर जाने के बाद अब बिना एक भी बार भी सुनवाई हुए SLP वापस लेकर फिर हाईकोर्ट लौट रही है। दो माह से अधिक वक्त गुज़रने के बाद अब सरकार और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज को अहसास हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट में मामले की लिस्टिंग भी नहीं हो पाई है अब तक और इससे तो हमारी चारधाम यात्रा का सीजन ही समाप्त हो जाएगा। मंत्री महाराज कह रहे है कि हाईकोर्ट से तत्काल चारधाम यात्रा शुरू करने का अनुरोध कर रहे हैं।
ज्ञात हो कि नैनीताल हाईकोर्ट ने 28 जून को सरकार की मुकम्मल तैयारियाँ न पाते हुए मजबूरन 11जुलाई से सीमित तौर शुरू होने वाली चारधाम यात्रा पर रोक का फैसला सुनाते हुए 7 जुलाई मामले पर सुनवाई की अगली तारीख मुक़र्रर की थी। उसके बाद धामी सरकार 6 जुलाई को SLP लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और इस तरह से हाईकोर्ट में सुनवाई रुक गई और सरकार ने फ़ौरी राहत की साँस ली।
इस मामले में हाइकोर्ट में चल रही सुनवाई में याचिकाकर्ता अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली कहते हैं कि नैनीताल हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा पर सिर्फ चार हफ्ते के लिए रोक लगाई थी जिसके खिलाफ सरकार SLP लेकर सुप्रीम कोर्ट चली जाती है। लेकिन 8 हफ्ते गुजर जाने के बाद भी मेटर की लिस्टिंग नहीं करा पाती है। अधिवक्ता मैनाली ने कहा कि हाईकोर्ट ने कोरोना के हालात की लगातार समीक्षा करते हुए स्कूलों को खोलने से लेकर खुद अदालतों में फ़िज़िकल वर्क को स्वीकृति दी है जो बताता है कि हाईकोर्ट हालात के अनुरूप चारधाम यात्रा पर भी फैसला ले सकता था लेकिन राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई रोक हटवाने। दुष्यंत मैनाली ने इस मुद्दे पर भी सवाल उठाया कि सरकार ने सामान्य ढंग से लिस्टिंग का इंतजार कर दो माह का वक्त जाया किया और एक बार भी सुप्रीम कोर्ट के CHIEF JUSTICE के समक्ष मेटर की मेन्शनिंग नहीं की, जहां से त्वरित सुनवाई की संभावना बन सकती थी।
जाहिर है धामी सरकार को दो माह बरबाद होने के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ कि सुप्रीम कोर्ट में लिस्टिंग की तारीफ कंप्यूटर जनरेटेड तरीके से मिल रही है और उसकी एसएलपी की लिस्टिंग तक नहीं हो पा रही। जबकि इसी कोविड काल में तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार मामले में हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर इसी कंप्यूटर जनरेटेड सिस्टम के बावजूद त्वरित सुनवाई कराकर स्टे ऑर्डर ले आई थी। लेकिन तब एक मुख्यमंत्री की फँसी गर्दन बचानी थी लिहाजा सारे दांव आज़माए गए अब जब चारधाम यात्रा रूट के हज़ारों स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी से जुड़ा मसला था तो धामी सरकार मात्र कंप्यूटर जनरेटेड लिस्टिंग के भरोसे दो माह बैठी रही।
दरअसल शुरू में धामी सरकार ने यह चालाकी दिखाई कि सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने से लगातार हाईकोर्ट में लग रही फटकार से फ़ौरी तौर पर ही सही मुक्ति मिल गई और जब तक सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू नही होगी तब तक तारीख दर तारीख वर्चुअली हाईकोर्ट में पेश हो रहे मुख्य सचिव, स्वास्थ्य सचिव से लेकर पर्यटन सचिव आदि को भी राहत मिल जाएगी। क्योंकि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच लगातार कोरोना की तीसरी लहर से निपटने की तैयारियों से लेकर राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था आदि पर जमकर नौकरशाही और सरकार को फटकार लगी रही थी। लेकिन अब जब तीर्थ-पुरोहितों, स्थानीय कारोबारियों से लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने चारधाम यात्रा शुरू न करा पाने को लेकर धामी सरकार की चौतरफा घेराबंदी तेज कर दी तो सरकार लौटकर फिर हाईकोर्ट पहुंच गई है।
जब नैनीताल हाईकोर्ट में सरकार के महाधिवक्ता पहुँचे तो अदालत ने कानूनी स्थिति समझाकर सरकार की आँखें खोल दी। इस लिंक पर क्लिक कर पढ़िए पूरी खबर
धामी सरकार ने हाईकोर्ट की आए दिन की फटकार से बचने को SLP लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँचना बेहतर समझा था लेकिन उसके इस दांव ने एक बड़े तबके की रोजी-रोटी का रास्ता निकालने में देरी करा दी है। हालाँकि अभी भी तीसरी लहर का खतरा मँडरा जरूर रहा लेकिन कोरोना मामलों में कमी से सरकार को उम्मीद है कि शायद हाईकोर्ट से राहत मिल जाए। इसी के साथ धामी सरकार को एक बार फिर से स्वास्थ्य सुविधाओं के मोर्चे पर फिर से अदालत में जवाब देने को भी तैयार रहना होगा।
कल्पना कीजिए हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा पर महज चार हफ्ते की रोक लगाई थी और कोरोना के हालात संभलते ही रोक की समीक्षा की गुंजाइश हाईकोर्ट में भी बन सकती थी जैसे कोरोना क़ाबू में दिखा तो स्कूलों से लेकर अदालतें, दफ्तर आदि खुले हैं। लेकिन सरकार ने गलत कानूनी सलाह से तहत सुप्रीम कोर्ट का रास्ता पकड़ा और लाखों खर्च कर एजी से लेकर सैंकड़ों वकीलों की फ़ौज मामले की लिस्टिंग तक नहीं करा पाई।