देहरादून: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने आज सोशल मीडिया के जरिए एक साथ बीजेपी-संघ और बाग़ियों पर हमला बोला है। हरीश रावत ने भविष्यवाणी के अंदाज में कहा है कि आज तो सिर्फ भाजपा के अनुशासन और संघ की शिक्षा की धज्जियां उड़ रही हैं कल को कुछ खाँटी के भाजपाई और संघी सब खून के आँसू रोएँगे। लगे हाथ हरदा ने दल-बदलुओं पर हमला बोलते हुए कहा है कि दो-तीन बाग़ियों को छोड़कर अधिकांश ने धन व पद के लालच में दलबदल किया जो सामाजिक और राजनीतिक अपराध के साथ-साथ संसदीय लोकतंत्र पर कलंक है। पूर्व सीएम रावत ने कहा कि ऐसा अपराध जिस दल के साथ होता है वह एक बार रोता है पर जहां दलबदलू जाते हैं वह दल कई-कई बार रोता है और भाजपाई आज रो रहे हैं।
हरदा का दलबदलुओं पर हमलावर होना इशारा करता है कि एक तो पूर्व मुख्यमंत्री नहीं चाहते कि उनकी सरकार के समय कांग्रेस छोड़कर जो नेता गए उनकी आसानी से वापसी होने दी जाए। दूसरा जो उनके ज़रिए वापसी कर सकते हैं ऐसे एक-दो नेताओं के लिए वे खिड़की खुली भी दिखाना चाहते हैं। लेकिन बीजेपी कॉरिडोर्स में जिस्म तरह के दावे किए जा रहे उससे ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस पर नए दलबदल के खतरे के बादल मँडरा रहे? जानकार सूत्रों का दावा है कि चीज़ें पटरी पर बैठी तो आने वाले वक्त में कांग्रेस के एक सिटिंग विधायक और एक पूर्व विधायक लक्ष्मण रेखा लांघते दिख सकते हैं। अब कांग्रेस के कौन नेता बीजेपी के रडार पर हो सकते हैं, यह जानने से पहले पूर्व सीएम हरीश रावत का दलबदल पर दर्द कैसे छलका है उसे जान लेते हैं।
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हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री
दल_बदल के 3 कारण हो सकते हैं, पहला वैचारिक कारण, दूसरा पारिवारिक कारण और तीसरा कारण आर्थिक या पदों का प्रलोभन। उत्तराखंड में कुछ लोगों ने पारिवारिक कारणों से, कुछ ने वैयक्तिक मतभेदों के बहुत गहरे होने के कारण, मगर दो-तीन को छोड़कर अधिकांश लोगों ने धन व पद के प्रलोभन के कारण दल-बदल किया और इस बात के गवाह कई लोग हैं, जिनको ऐसा प्रलोभन भी दिया गया जो धन व पद प्रलोभन के आधार पर दलबदल है, वो सामाजिक, राजनैतिक अपराध है, संसदीय लोकतंत्र पर कलंक है। ऐसा अपराध जिस दल से दल-बदल होता है, वो दल तो केवल एक बार रोता है और जिस दल में वो लोग जाते हैं, वो दल कई-कई बार रोता है और अभी तो भाजपाई लोग केवल रो रहे हैं और देखिएगा आगे आने वाले दिनों में कुछ खांठी के भाजपाई, संघी सब खून के आंसू रोएंगे। कांग्रेस तो उदार पार्टी है, यदि कोई अपने अपराध के लिए क्षमा मांगे तो क्षमा भी किया जा सकता है, जो अपने पारिवारिक कारणों या वैचारिक मतभेद के कारण से गये हैं, उनके साथ वैचारिक मतभेदों को पाटा जा सकता है। मगर भाजपा की स्थिति तो यह है, जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाएं! जो पार्टी अपने अनुशासन की प्रशंसा करते नहीं अघाती थी, आज चौराहे पर उनके अनुशासन की धज्जियां उड़ रही हैं, संघ की शिक्षा की भी धज्जियां उड़ रही हैं, अभी तो शुरुआत है देखिए आगे क्या होता है! मगर मैं उत्तराखंड से भी कहना चाहता हूंँ कि ये जो “बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से खाएं” वाली कहावत है, ये राज्य और समाज पर भी लागू होती है। यदि आप ऐसे आचरण के लिए कथित जनप्रतिनिधियों को दंडित नहीं करेंगे तो उसका दुष्प्रभाव, राज्य की राजनीति में अस्थिरता लाएगा और अस्थिरता का दुष्प्रभाव का राज्य के विकास को भुगतना पड़ता है, जनकल्याण को भुगतना पड़ता है और आज उत्तराखंड वही भुगत रहा है।
“जय हिंद”
दरअसल हरदा का दलबदल पर दर्द अपनी जगह लेकिन कहां तो कांग्रेस बीजेपी में टूट के सपने देख रही और कहां निर्दलीयों से लेकर कांग्रेस विधायकों-नेताओं पर बीजेपी रणनीतिकारों की नजर बनी हुई है। धनौल्टी से निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पंवार का बीजेपी में शामिल होना कांग्रेस के लिए किसी झटके से कम नहीं है। आखिर विपक्ष की सबसे बड़ी ताकत कांग्रेस जब सूबे में बदलाव की बंयार बहने का दावा कर रही तो निर्दलीय विधायकों से लेकर अन्य दलों के बाग़ियों की पहली पसंद कांग्रेस नजर आनी चाहिए, पर ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
राजनीतिक गलियारे में दो विधायकों के पालाबदल की चर्चा चल रही है। इनमें निर्दलीय प्रीतम पंवार की तरह ही भीमताल से निर्दलीय विधायक राम सिंह कैड़ा को लेकर दावे किए जा रहे कि वे बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। लेकिन इस चर्चा से बड़ी हलचल इसे लेकर है कि आने वाले दिनों में एक कांग्रेस विधायक का ह्रदय परिवर्तन होता दिख सकता है। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि विधायक तैयार हैं बशर्ते कि उनको अपनी मौजूदा सीट छोड़कर राजधानी की एक सीट ऑफ़र कर दी जाए। दिक्कत यह है कि इस सीट पर बीजेपी का सिटिंग विधायक क़ाबिज़ है और उनको रिप्लेस करने का दांव पार्टी चलेगी या कोई और फ़ॉर्मूला खोजा जाएगा यह देखना होगा।
इतना ही नहीं गढ़वाल क्षेत्र से कांग्रेस के एक मजबूत पूर्व विधायक भी रडार पर बताए जा रहे हैं। सवाल है कि क्या बीजेपी रणनीतिकार नई टूट कराकर बाइस बैटल से पहले ही मनोवैज्ञानिक वॉरफेयर में कांग्रेस को कमजोर साबित करने की रणनीति पर है? चंद दिनों में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी लेकिन इतना तय है कि बाइस बैटल में भी 2017 की तर्ज पर बगावत की पिक्चर दिखाई देती रहेगी!