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धमक दिखा पाए धामी! न त्रिवेंद्र की तरह ऐंठन न तीरथ की तर्ज पर बयानों में दिखी ‘फटी सोच’ पर असल मुद्दों पर सिफर रहा माह का सफर

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देहरादून: 4 जुलाई को चौथी विधानसभा में सरकार के तीसरे मुखिया के तौर पर शपथ लेने वाले युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी के सामने कम वक्त में उम्मीदों का पहाड़ चढ़ने की कठिन चुनौती है। एक महीने के कार्यकाल को देखकर ऐसा लगता है कि सीएम पुष्कर सिंह धामी ने न तो चार साल सीएम रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत की तरह हाथ बाँधे ऐंठन की सरकार चलाने के संकेत दिए और न ही अपने पूर्ववर्ती चार माह के सीएम तीरथ सिंह रावत की एक ही महीने में फटी जिंस से लेकर अमेरिका की दो सौ साल ग़ुलामी जैसा ज्ञान बिखेरकर आलाकमान को अपने चुनाव पर अफ़सोस करने का मौका दिया। मीडिया में सलीक़े से बात रखना और हर मुद्दे पर सकारात्मक दिखने का अंदाज उम्मीद बँधाता है। फिर रही-सही कसर मीडिया में जमकर प्रचार और इंटरव्यूबाजी करके पूरी की जा रही। लेकिन यह सब न बाइस की तरह बढ़ती बीजेपी के लिये काफी है और साढ़े चार साल से डबल इंजन सरकार से कामकाज, रोजगार और विकास के मुद्दे पर चमत्कार की आस पाले जनता के लिए तो बिलकुल नाकाफ़ी है ही।
सीएम बनते ही चीफ सेक्रेटरी बदलकर ब्यूरोक्रेसी के बरगद हिलाने का संकेत दिया लेकिन बंपर तबादलों की तीसरी लिस्ट आते ही ज्वाइनिंग में हफ्तेभर पसीने छुड़ाने और फिर ताकतवर आईएएस के पुरानी पॉस्टिंग पर जाते ही सब पलीता लग गया।
22 हजार सरकारी रोजगार का दावा जाते जाते तीरथ सिंह रावत कर गए उसी पर सीएम धामी भी दावे करते जा रहे लेकिन 2600 पदों पर स्टाफ नर्सिंग की भर्ती तीन बार कैंसिल हो चुकी, ये तथ्य इन हवाई दावों का मुँह चिढ़ा रहा।
हाइकोेर्ट का हंटर पिछले दोनों मुख्यमंत्रियों के दौर में चलता रहा और विपक्ष कहता रहा यहाँ सरकार हाईकोर्ट चला रहा है। हालात आज भी उस मोर्चे पर जस के तस हैं। एमबीबीएस इंटर्न डॉक्टरों का सात जुलाई की हाईकोर्ट की फटकार के बाद स्टाइपेंड बढाने का ऐलान सरकार द्वारा हो जाता है लेकिन जीओ 28 जुलाई की अगली सुनवाई तक जारी नहीं हो पाता और हाईकोर्ट को फिर फटकारना पड़ता है।
कांवड़ यात्रा न कराने पर तीरथ कैबिनेट फैसला ले लेती है लेकिन सीएम बनते ही धामी पुनर्विचार का दम भरते हैं पर हाईकोर्ट में यात्रा न कराने का एफिडेविट दे चुके मुख्य सचिव हालात समझाते हैं तो सुप्रीम कोर्ट में जैसी फजीहत योगी सरकार को झेलनी पड़ी उससे सीएम धामी बमुश्किल बच पाते हैं।
असल मुद्दों पर सीएम धामी न केवल धीमे रहे बल्कि ‘टालते रहो’ की तर्ज पर कमेटियों का झुनझुना पकड़ाते रहे। धामी राज में ग्रेड पे के मुद्दे पर पुलिस परिजनों का अभूतपूर्व विरोध-प्रदर्शन सड़कों पर दिखा और ऊर्जा निगम कर्मी हड़ताल में कूदे। इनके अलावा कई और विभागों की माँगों का तोड़ निकालते हुए हुए पहले ग्रेड पे पर कैबिनेट सब-कमेटी और फ़िर इंदु कुमार पांडे की अध्यक्षता में वेतन विसंगति कमेटी का झुनझुना थमा दिया गया है।
चारधाम देवस्थानम बोर्ड पर तीर्थ-पुरोहितों के बढ़ते विरोध-प्रदर्शन का तोड़ भी हाई पॉवर्ड कमेटी बनाकर निकालने की कोशिश हुई लेकिन संशोधन के सीएम के वादे पर तीर्थ-पुरोहितों को विश्वास नहीं हो रहा और प्रदर्शन जारी है। भू-क़ानून जैसे ज्वलंत मुद्दे पर भी मुख्यमंत्री धामी धीमे स्वर में गोल-मोल जवाब दे रहे हैं। साफ है 2022 की जंग को लेकर जमीनी स्तर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को धीमे क़दमों से ही सही पर कुछ ठोस शुरूआत करने की दरकार है। हालाँकि त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत के जमाने की कई ग़लतियों से सबक लेने की कोशिश भी युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से उम्मीद बंधाती है लेकिन जमीन पर राजकाज चलाने की अनुभवहीनता और दिग्गजों में घिरे होने और विराट चुनौतियों के मद्देनज़र ‘अभिमन्यु’ बन जाने का खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है।

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