
देहरादून: 4 जुलाई को जब युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड राजभवन में मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ले रहे थे तब पहाड़ के पॉलिटिकल कॉरिडोर्स से लेकर बीजेपी कॉरिडोर में यह चर्चा खूब हो रही थी कि चुनाव से चंद माह पहले मुख्यमंत्री बनाए जा रहे अनुभवहीन पुष्कर सिंह धामी महज एक फीलर हैं, एक नाइट वॉचमैन की भूमिका भर निभाने को आए हैं।
तर्क दिया जा रहा था कि देखिएगा बीजेपी बाइस बैटल जीतेगी तो मुख्यमंत्री धामी नहीं कोई नया चेहरा होगा। किसी ने कहा राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की पैराशूट लॉंचिंग बाइस में दिल्ली से करा दी जाएगी तो किसी ने कहा निशंक को मौका दे दिया जाएगा! तो कईयों को सतपाल महाराज से लेकर दूसरे नेताओं में उम्मीद दिख रही थी। कुछ तो खंडूरी है जरूरी की तर्ज पर टीएसआर के फिर से ‘अच्छे दिनों’ की बांट जोहने को बैठ गए थे। लेकिन चार जुलाई से सितंबर गुज़रते-गुज़रते मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्लॉग ऑवर्स की अपनी सियासी बल्लेबाज़ी से राजनीतिक पंडितों के आकलन
और सियासी प्रतिद्वंद्वियों का गणित गड़बड़ा दिया है।

पेशावर कांड के नायक वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि पर उनकी प्रतिमा का अनावरण करने पीठसैंण पहुँचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री धामी को लेकर जो कहा वह भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के युवा सीएम पर बनते भरोसे और पार्टी की उम्मीदों को लगे पंखों का अहसास कराने को काफी है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सीएम धामी की पीठ थपथपाते जो कहा उसके लिए चार साल पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और चार महीने के अपने अल्प कार्यकाल में तीरथ सिंह रावत के कान तरस गए होंगे! राजनाथ से पहले चुनाव प्रभारी केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी भी ख़म ठोक कर कह गए हैं कि सीएम धामी न केवल चेहरे हैं बल्कि चुनाव जीतने के बाद फिर मुख्यमंत्री भी होंगे। बावजूद इसके राजनाथ ने जिस अंदाज में धामी की धमक का झंडा बुलंद किया है उसके बाद देहरादून से लेकर दिल्ली तक कईयों के भीतर धुकधुकी तेज हो चुकी होगी।
पढ़िए राजनाथ सिंह ने किस अंदाज में धामी की धमक का झंडा बुलंद किया है।
दरअसल राजनाथ सिंह कहना चाह रहे हैं कि युवा मुख्यमंत्री धामी के सामने चुनौतियों का पहाड़ है तो पार्टी नेतृत्व से लेकर प्रदेश की जनता को उम्मीदें भी बहुत हैं लेकिन अपने कामकाज से खासकर सबको सुनने और विरोध के हर अंधेरे कोने तक संवाद की रोशनी लेकर पहुँचने की कोशिशों ने धामी का कद कई वरिष्ठ नेताओं से बहुत ज्यादा बड़ा कर गया है।
टीएसआर जैसे हाथ बाँधे दिल्ली से मिली शक्ति पर राजा की तर्ज पर शासन चलाने रहे और तीरथ अपने विवादित बयानों से फटी सोच के सबूत बाँटते रहे उसके बरक्स धामी ने धीरज से हालात संभालने की ईमानदार कोशिश कर पार्टी नेतृत्व की नजर में भरोसेमंद बल्लेबाज़ की जगह पक्की कर ली है। जाहिर है शुरूआत सही दिशा में होती नजर आई है लेकिन चुनावी चुनौती पार किए बग़ैर किसी भी नतीजे पक्के तौर पर पहुंचना जल्दबाज़ी ही होगी।