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‘काबिल सलाहकारों’ ने स्पीकर को फंसा दिया! करप्शन के खिलाफ सबसे बड़ा चैंपियन बनने की जल्दबाजी ऋतु खंडूरी पर पड़ गई भारी, HC झटके के बाद अब खुद को सही साबित करने की चुनौती

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क्या विधानसभा में हुई बैकडोर भर्तियों को निरस्त करने में स्पीकर ऋतु खंडूरी की जल्दबाजी और सलाहकारों ने फजीहत करा डाली ?

ADDA IN-DEPTH: HC stay on Speaker Ritu Khanduri Bhushan decision on Assembly Backdoor Recruitment Case उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद जिस तरह से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एसटीएफ को जांच के मोर्चे पर उतारकर नकल माफिया और भर्तियों के घपलेबाज घड़ियालों के खिलाफ अभियान छेड़ा उसी के साए में विधानसभा में बैकडोर भर्तियों पर बवंडर मच गया।

स्पीकर ऋतु खंडूरी ने भी करप्शन के खिलाफ छिड़ी जंग में खुद को सबसे बड़ा चैंपियन साबित करने के लिए एक बड़ा निर्णय ले लिया। स्पीकर ने राज्य गठन के बाद से लेकर बीती विधानसभा के कार्यकाल तक हुई सभी नियुक्तियों को लेकर एक्सपर्ट कमेटी बिठा दी।

रिटायर्ड आईएएस डीके कोटिया की अध्यक्षता में स्पीकर द्वारा गठित कमेटी ने नियुक्तियों का बीते दो दशक के दस्तावेज खंगाले और पाया कि पूर्व विधानसभा अध्यक्षों ने बैकडोर से अवैध भर्तियां कर डाली। डीके कोटिया की अगुआई में पूर्व कार्मिक सचिव सुरेंद्र सिंह रावत और कुमाऊं के पूर्व कमिश्नर एएस नयाल वाली एक्सपर्ट जांच कमेटी ने तय समय एक माह से पहले ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी।

रिपोर्ट मिलने के अगले ही दिन स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण ने आनन फानन प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर विधानसभा में 228 तदर्थ और 22 उपनल के जरिए हुई भर्तियों को बर्खास्त करने का ऐलान कर दिया। यानी एक झटके में 250 कर्मचारियों, जिनमें 150 की भर्ती 2016 में हरदा सरकार में स्पीकर रहते गोविंद सिंह कुंजवाल करके गए थे और 100 की भर्ती वर्तमान में संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने पिछली बीजेपी सरकार में स्पीकर रहते चुनाव में जाते-जाते कर डाली थी।

हो सकता है स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण की मंशा प्रदेश में दीमक की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार पर प्रहार कर एक मिसाल पेश करने की रही हो। लेकिन अब यह जल्दबाजी में फैसला लेने के कारण हुई त्रुटि रही या फिर उनके सलाहकारों ने ही पटकथा ऐसी लिख डाली कि हाईकोर्ट में बहस और सुनवाई का पहला झटका भी उनका नियुक्तियां निरस्त करने वाला ‘ऐतिहासिक’ फैसला झेल नहीं पाया।

अब जब नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले से दोबारा नौकरी पर बहाल हो गए 250 कर्मचारियों के चेहरे खिल उठे हैं तो विपक्षी निशाने पर स्पीकर और सरकार को ले रहे हैं कि यह सब इमेज बिल्डिंग को लेकर सिर्फ स्टंटबाजी थी। जाहिर है अपने फैसले को सही साबित करने की चुनौती सिर्फ और सिर्फ स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के सामने आन खड़ी हुई है क्योंकि एक्सपर्ट कमेटी गठित करने से लेकर उसकी रिपोर्ट पर एक्शन लेने तक मामला विधानसभा अध्यक्ष और विधानसभा सचिवालय के अधिकार क्षेत्र तक ही सीमित रहा।

हाईकोर्ट में वकील बिठाने से लेकर हर मोर्चे पर स्पीकर और विधानसभा सचिवालय ने अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर एक्शन लिया। लिहाजा अब अगर कटघरे में खड़ा किया जा रहा है तो वह भी स्पीकर को ही सबसे पहले घेरा जा रहा। वैसे स्पीकर पर सवाल उठने भी चाहिए और इसकी कई वजह छिपी हैं हाई कोर्ट के कल आए फैसले में।


अदालती बहस के दौरान स्पीकर के फैसले की सबसे बड़ी कमजोरी तो यही झलकी कि जिस लोक हित का हवाला देकर 250 कर्मचारियों की नियुक्ति निरस्त कर दी गई उसी बर्खास्तगी आदेश में इस लोक हित के आधार और कारण नहीं गिनाए गए। इसके बाद दूसरा अवैधानिक कार्य यह हुआ कि जिस तर्ज पर स्पीकर रहते कुंजवाल और अग्रवाल ने नियमों को ठेंगा दिखाकर नियुक्तियां कर डाली उसी तर्ज पर स्पीकर ऋतु खंडूरी ने भी बिना कर्मचारियों का पक्ष सुने उनको एक झटके में बाहर कर डाला।

जबकि कर्मचारियों के वकीलों की इस दलील में दम लगा कि जिनसे नियमित कर्मचारियों की तरह काम लिया जाता रहा उनको सुने बिना इतनी बड़ी संख्या में बर्खास्त कर डालना भला कहां का लोक हित है। ऐसे ही आधार लेकर बर्खास्त कर्मचारियों के वकीलों ने स्पीकर ऋतु खंडूरी के आदेश को विधि विरुद्ध साबित कर इसे रद्द करने की मांग उठाई थी।

बर्खास्त कर्मचारियों ने अपनी याचिका में एक और मजबूत दलील पेश की जो स्पीकर ऋतु खंडूरी के फैसले के खिलाफ गई और इसे लेकर मीडिया भी शुरू से सवाल उठा रहा था। वह तर्क था जब बैकडोर से ही 396 लोगों को भर्ती कर नियमित कर दिया गया तब उसी रास्ते तदर्थ भर्ती पाए 250 लोगों पर ही गाज क्यों गिराई गई। अपनी याचिका में इन बर्खास्त कर्मचारियों ने कहा कि बैकडोर के जरिए 2002 की पहली विधानसभा से लेकर 2015 के बीच 396 पदों पर नियुक्तियां की गई और 2014 तक चार वर्ष से भी कम सेवाकाल के बाद ही नियमित नियुक्तियां दे दी गई लेकिन अब उन्हें छह वर्ष की सेवा के बाद भी हटाया दिया गया है।

जाहिर है स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के अमन अब खुद के फैसले को सही साबित करने की बड़ी चुनौती है क्योंकि हाईकोर्ट का स्टे आदेश तदर्थ कर्मचारियों के लिए दोहरी खुशी वाला साबित हो सकता है। एक तो नौकरी से बर्खास्तगी के बाद दोबारा बहाली हो गई है, दूसरा अब जब विधानसभा सचिवालय नियमित भर्ती की प्रक्रिया शुरू करेगा तब इन तदर्थ कर्मचारियों को इग्नोर करना आसान नहीं होगा। यानी इन कर्मचारियों के लिए ऋतु खंडूरी का फैसला ‘वरदान’ साबित न हो जाए!

सवाल है कि आखिर इतना बड़ा फैसला लेते हुए स्पीकर ऋतु खंडूरी को इतनी हड़बड़ी दिखाने की क्या दरकार थी? क्या तीन रिटायर्ड नौकरशाहों की सिफारिश मिलने के बाद इस मामले के तमाम कानूनी पहलुओं की पड़ताल की गई थी? क्या कई प्रदेशों से हायर ‘काबिल सलाहकारों’ में से किसी ने भी इस अहम मामले में स्पीकर को विधिक पक्ष जानने जैसी सलाह देना मुनासिब नहीं समझा?

आखिर अदालती स्क्रुटनी में इस पक्ष को आप कैसे नजरंदाज करने की सोच रहे थे कि एक पीरियड यानी 2002 से लेकर 2015 के बीच हुई उसी तर्ज पर बैकडोर भर्तियां जायज मान ली गई है और दूसरे पीरियड यानी 2016 से लेकर 2021 तक हुई नियुक्तियां अवैध हो गई? सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जो गलती बैकडोर भर्ती करते हुए गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल ने की थी, उन कर्मचारियों को हटाते हुए स्पीकर ऋतु खंडूरी ने भी गलत रास्ता नहीं अख्तियार कर लिया? जाहिर है इस द्वंद्व से स्पीकर ऋतु खंडूरी को आने वाले लंबे वक्त तक अकेले ही जूझना होगा।

कब क्या क्या हुआ?

  • UKSSSC पेपर लीक कांड के बाद जुलाई में विधानसभा में बैकडोर भर्तियों पर मचा बवाल।
  • अगस्त में विधानसभा में बैकडोर भर्तियों के सवाल पर पूर्व स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल को माइडेवन घेरा तो वे उलटे मीडिया पर ही गुर्राए।
  • 28 अगस्त को बवाल शांत करने को सीएम धामी ने स्पीकर को पत्र लिखकर उच्च स्तरीय जांच का अनुरोध किया।
  • 29 अगस्त को पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने स्वीकारा कि उन्होंने बेटे और बहू को बैकडोर से विधानसभा में नौकरी दी।
  • 3 सितंबर को स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण ने डीके कोटिया की अगुआई ने एक्सपर्ट जांच कमेटी गठित की, जांच रिपोर्ट पेश करने के लिए एक महीने का वक्त दिया।
  • 22 सितंबर को एक्सपर्ट जांच कमेटी से मिली रिपोर्ट को आधार बनाकर स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण ने कुंजवाल से लेकर अग्रवाल के कार्यकाल में हुई 250 भर्तियों को रद्द कर दिया।
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