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Battle for 2024 बिछने लगी बिसात, दावेदारों में शह-मात: BJP में हो चुके अब तक दो सर्वे कांग्रेस में कहीं ना-नूकूर कहीं नूरा-कुश्ती

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Battle for 2024: यूं तो लोकसभा की लड़ाई अभी साल भर दूर है लेकिन इधर कर्नाटक विधानसभा का चुनाव खत्म हुआ और उधर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों- राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर समझिए चुनावी बिगुल बजा! और ठीक उसके बाद लोकसभा चुनाव 2024 का काउंटडाउन शुरू हो जाएगा।

जाहिर है अब समय है सिटिंग सांसदों के अपने-अपने गढ़ में मजबूत और सक्रिय दिखने का, तो नए दावेदारों के लिए ‘लोकल एंटी इनकंबेंसी’ के साए में शक्ति प्रदर्शन कर अपना दावा मजबूत दिखाने का।

उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटें हैं और 2014 से लगातार दो चुनावों से बीजेपी जीत का पांच का पॉवर पंच लगा रही है। बीजेपी 2024 में भी मोदी मैजिक के सहारे जीत की हैट्रिक लगाने का दम भर रही है।

मोदी मैजिक के सहारे पार्टी टिकट को संसद में दस्तक की गारंटी मान बीजेपी में एक-एक सीट पर कई-कई दावेदार दिखाई दे रहे हैं। जबकि उसके मुक़ाबले कांग्रेस में एकाध सीट पर नूराकुश्ती छोड़ दें तो अधिकतर जगह ना नुकूर वाले हालात नजर आ रहे हैं। कहने को हरीश रावत, प्रीतम सिंह, यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत, गणेश गोदियाल और मनीष खंडूरी जैसे बड़े चेहरे हैं लेकिन मुकाबला ब्रांड मोदी से देख इनमें से एक दो को छोड़ दें तो ज्यादातर के चुनाव लड़ने के नाम से पसीने छूटते दिखाई दे रहे।

2014 के बाद से लगातार दो लोकसभा और इतने ही विधानसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस की स्थिति इतनी नाजुक है कि हरिद्वार सीट पर जरूर हरदा वर्सेज हरक नूरा कुश्ती दिख वरना बाकी सीटों पर पार्टी के भीतर पहले आप पहले आप वाली स्थिति और दावेदारी के नाम पर सन्नाटा है।

हरिद्वार सीट, जहां पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत 2009 की अपनी सांसदी के बहाने खम ठोक रहे तो पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत भी इस बार यहां अभी से खूब पसीना बहा रहे हैं और इस तरह हरदा को 2019 की तर्ज पर नैनीताल से चुनावी ताल ठोकने का मैसेज दे रहे। हरक को लगता है कि अगर उनको मौका मिला तो धर्मपुर, डोईवाला और ऋषिकेश के गढ़वाली वोटर्स में वे बीजेपी को झटका देकर अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं। जबकि हरदा का अपना तर्क और तजुर्बा है।

वैसे हरिद्वार सीट पर हरदा और हरक में खुले तौर पर सियासी द्वंद्व दिखाई दे रहा लेकिन अंदर ही अंदर बीजेपी में भी एक एक सीट पर सियासी मारकाट मची है। पौड़ी गढ़वाल से लेकर टिहरी, हरिद्वार सहित तमाम सीटों पर ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली तस्वीर नजर आती है। बस कांग्रेस के मुकाबले फर्क इतना ही है कि बीजेपी में इन तमाम नेताओं के हिस्से दावेदारी से ज्यादा कुछ नहीं है क्योंकि फैसला विनिविलिटी फैक्टर के आधार पर अंत में मोदी-शाह ही करेंगे।

पांच का पॉवर पंच

पौड़ी की पिच पर कौन खेलेगा?

कहते हैं उत्तराखंड की सियासत की बात हो तो शुरुआत पावरफुल पौड़ी गढ़वाल से ही होनी चाहिए। गढ़वाल की इस सीट के सिटिंग सांसद तीरथ सिंह रावत हैं, जिनको अपने इसी कार्यकाल के दौरान सांसदी के साथ-साथ सूबे के मुख्यमंत्री का जिम्मा भी बमुश्किल चार महीने के लिए ही सही, मिल चुका है। लेकिन जिस अंदाज में उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनी गई थी, उसके बाद उनकी पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट छीनने की कोशिशें भी तेज हो गई हैं। यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हड़बड़ी में बैठकर उठने को मजबूर हुए जनरल बीसी खंडूरी के सियासी शिष्य की सांसदी पर भी अब कईयों की नजरें गड़ी हुई हैं!

यों सिटिंग सांसद के नाते तीरथ सिंह रावत का दावा दोबारा टिकट पर सबसे पहले बनता है। लेकिन मोदी-शाह ने कुछ कुछ गुजरात और कर्नाटक विधानसभा चुनावों की तर्ज पर लोकल एंटी इनकंबेंसी को काउंटर करने के लिए बड़ी तादाद में सांसदों के विकेट चटकाने का दांव चला तो तीरथ की सियासी नैया भी भंवर में होगी और ये मौका होगा पौड़ी सीट के बाकी दावेदारों के लिए।

इन दावेदारों में एक पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पौड़ी गढ़वाल से चुनावी खम ठोकने को भागदौड़ कर रहे हैं। TSR 1 लगातार एक्टिव हैं और मैदान से दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों तक ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं। राजनीतिक सर्वाइवल की इस लड़ाई में चौबीस की चुनावी बिसात से त्रिवेंद्र रावत को बड़ी उम्मीदें हैं क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने के बाद से उनके हिस्से नया टास्क नहीं आया है।

पौड़ी गढ़वाल से सांसद रहते कांग्रेस छोड़कर मुख्यमंत्री बनने को बीजेपी में आए सतपाल महाराज भी क्या अब थक हारकर दोबारा संसदीय राजनीति में लौट सकते हैं? चौबीस की चुनौती के बीच यह सवाल सियासी कॉरिडोर्स में सुनाई देने लगा है।

दरअसल, बीजेपी की सुबाई राजनीति में कई साल पांव पीटने के बावजूद महाराज चार बार मुख्यमंत्री की रेस में चूक गए हैं और RSS में मोहन भागवत तक संपर्कों का जाल बुनकर भी आज तक मात्र मंत्री पद तक महदूद हैं। जाहिर है यह सियासी दर्द अब उन्हें बेचैन किए है और टूरिज्म से लेकर पीडब्ल्यूडी जैसे उनके महकमों का हाल बताता है कि वे एसीआर लिखने की रट से अधिक जमीन पर कामकाज की छाप छोड़ने में नाकाम नजर आते हैं।

चर्चा हैं कि त्रिवेंद्र, तीरथ से पुष्कर और हार के बावजूद फिर ‘धामी को ही हामी’ देखने के बाद सीएम का सपना टूटता देख मंत्री महाराज पौड़ी गढ़वाल से लोकसभा चुनाव लड़कर संसद पहुंचने को तैयार हो सकते हैं! बशर्ते चौबट्टाखाल को लेकर कांग्रेस के जमाने वाला फॉर्मूला बीजेपी में भी चल जाए। यानी अगर महाराज दिल्ली की राजनीति में जाएं तो जैसे पहले सूबे की सियासत में उनकी पत्नी अमृता रावत सक्रिय रहती थी, उसी तर्ज पर उनके पुत्र की सियासी पारी शुरू हो जाए। वैसे मोदी-शाह दौर में ‘एक परिवार एक पद’ की अड़चन भी जब तब कई नेताओं के अरमानों पर पानी फेरती नजर आई है।

अब बात पौड़ी गढ़वाल सीट के एक दूसरे दावेदार राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की। बलूनी बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख हैं और मोदी-शाह के करीबी भी। लेकिन इस सबके बावजूद मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना 2017 से अधूरा है। उनका राज्यसभा का टर्म भी अगले साल 2। अप्रैल को खत्म हो रहा है। लिहाजा बलूनी भी पौड़ी गढ़वाल का चुनावी दंगल लड़कर संसद पहुंचने की चाहत पाले हुए हैं।

बलूनी भी अब तक भले सीएम रेस में पिछड़ते रहे हों लेकिन पौड़ी गढ़वाल से सांसदी की दौड़ में बाकी दावेदार उनको हल्के में कतई न लें। हाल में अनिल बलूनी ने अपनी सांसद निधि से 4.62 करोड़ जारी कराकर पौड़ी नगर में पर्वतीय संग्रहालय और तारामंडल के लिए करीब 30 करोड़ की योजना का आगाज कराया है। जाहिर है अपनी सांसद निधि से मोटा फंड पौड़ी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र के विकास के लिए देकर राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने अपने विरोधियों को इस पिच पर जमीन दिखाने का दांव खेल दिया है।

इन सब दावेदारों के बीच पैराशूट प्रत्याशी बनने के आतुर शौर्य डोभाल भी ठीक चुनाव से पहले पौड़ी गढ़वाल को लेकर सक्रिय हो गए हैं। भले जिस पहाड़ ली बेटी अंकिता भंडारी के हत्याकांड के बाद पूरा उत्तराखंड और खासकर पौड़ी गढ़वाल उबाल खाता रहा तब शौर्य डोभाल कहीं एक्टिव नजर नहीं आए हों लेकिन अब डिजिटल मीडिया के मार्फत चुनावी ताल ठोकने के ऐलान करते उनके इंटरव्यू नुमाया होने लगे हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल इससे पहले कुछ इसी अंदाज में दिल्ली से देहरादून और गढ़वाल के पहाड़ तक पोस्टर और हार्डिंग लगाकर 2019 के चुनाव से ठीक पहले 2018 में भी अचानक एक्टिव हुए थे। लेकिन टिकट नहीं मिलने के बाद वे प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य भर बनकर गायब हो गए थे। लेकिन अब एक बार फिर शौर्य डोभाल अपनी सियासी महत्त्वाकांक्षा का इजहार करते हुए दोबारा सक्रिय हो रहे हैं।

जाहिर है शौर्य को NSA पुत्र होने के नाते सियासी एडवांटेज मिलने की आस तो है ही, इंडिया फाउंडेशन और इन्वेस्टमेंट बैंकर के तौर पर परंपरागत राजनीति से अलहदा बैकग्राउंड से मदद मिलने का भी भरोसा है। लेकिन पौड़ी की पिच पर तमाम हैवीवेट्स के बीच शौर्य डोभाल जैसे पैराशूट प्रत्याशी पर मोदी-शाह दांव लगाएंगे यह देखना भी दिलचस्प होगा।

वैसे सुबाई सियासत के कई काम आसान बनाने को चुपके से जनरल खंडूरी को बेटी और उत्तराखंड विधानसभा स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण का नाम भी आखिरी दौर में आगे करा दिया जाए, इस समीकरण को क्या आप सिरे से नकार पाएंगे?

पौड़ी गढ़वाल में जहां, कांग्रेस में दावेदारों के नाम पर पिछली बार चुनाव हारे जनरल खंडूरी के पुत्र मनीष खंडूरी हैं तो दूसरा नाम चमोली से पार्टी विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र भंडारी का लिया जा रहा। लेकिन मनीष खंडूरी बीते वक्त में कहीं सक्रिय नजर नहीं आए और भंडारी चमोली तक सीमित दिखते हैं। 2014 में गढ़वाल से कांग्रेस टिकट पर डॉ हरक सिंह रावत चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन इस बार वे हरिद्वार में हरदा से दो-दो हाथ करने पहुंचे हुए हैं। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल पर भी कुछ कांग्रेस नेताओं की नजरें टिकी हुई हैं। लेकिन कांग्रेस के लिए असल चुनौती यही है कि वह पौड़ी की पिच पर वह किसी दिग्गज को उतार भी पाती है कि नहीं!

टिहरी की टक्कर ?

टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट से रानी राज्यलक्ष्मी शाह बीजेपी की सांसद हैं और उनकी निष्क्रियता के चलते पार्टी कॉरिडोर्स में यह सवाल अक्सर उठता रहता है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर उन पर भरोसा जताएंगे! हालांकि बीजेपी के भीतर एक तबका उनकी सक्रियता को लेकर भले सवाल उठा रहा हो लेकिन एक तो महिला फिर ठाकुर, गोरखा और नेपाल राज परिवार के साथ-साथ बदरीनाथ टेंपल कनेक्ट उनको विरोधियों के मुकाबले अब तक वजनदार बनाता रहा है। सवाल है कि क्या चौबीस की चुनौती उनके लिए पहले से कहीं अधिक बड़ी नहीं हो चुकी है?

इस बार टिहरी लोकसभा सीट से सीएम धामी के दूसरे मंत्री सुबोध उनियाल भी दावेदारी पेश कर रहे हैं। वैसे भी सुबोध की सीएम धामी के साथ पटरी कम ही बैठ पा रही और सीएम बनने की उनकी हसरत भी अधूरी ही रह गई है। लिहाजा दिल्ली का टिकट मिले तो वे नए सिरे से दांव-पेंच आजमाने के लिए कुछ नई सियासी संभावनाएं तलाशें।

टिहरी सीट से दावेदारों में पार्टी के वरिष्ठ नेता ज्योति प्रसाद गैरोला का नाम भी लिया जा रहा है क्योंकि अध्यक्ष की दौड़ में चुनाव हार कर भी बाजी महेंद्र भट्ट जीत गए और गैरोला जैसे पार्टी के दिग्गज आज न संगठन में समायोजित हो सके हैं और दायित्वों के लंबे होते इंतजार के चलते सरकार का हिस्सा भी नहीं बन पाए हैं।

यों टिहरी से महिला सांसद रानी का पत्ता कटे तो महिला के नाते मौके की तलाश में दावेदारी कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की पुत्री और BJP के युवा मोर्चा में सक्रिय नेहा जोशी और दीप्ति रावत भारद्वाज भी कर रही हैं। वैसे टिहरी से चुनावी ताल ठोकने की हसरत पाले कर्नल अजय कोठियाल भी AAP छोड़कर BJP में सदा मूक रहने वाले प्रवक्ता बनकर बैठे हैं। क्या कर्नल को सियासी कुरुक्षेत्र में कूदने का मौका मोदी शाह देंगे या फिर उनको अभी खामोश बैठकर अगले आदेश तक इंतजार ही करना होगा!

वैसे भी आम आदमी पार्टी में अपनी मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनकर भी गंगोत्री में जमानत जब्त कराकर कर्नल अजय कोठियाल जान चुके हैं कि उनकी अपनी कोई सियासी जमीन नहीं है और वे सिर्फ मोदी मैजिक के सहारे ही संसद या विधानसभा का सफर तय कर सकते हैं।

जबकि टिहरी सीट कांग्रेस के लिए वो सियासी बीहड़ है जहां उसके पास बीजेपी को मुकाबला देने के लिए दमदार दावेदारों का सबसे बड़ा संकट है। हालांकि पिछली बार बीजेपी से लोहा लेने का बीड़ा प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रीतम सिंह ने उठाया था, लेकिन इस बार वे भी चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं बताए जा रहे हैं। उनके बाद फिर क्या इस लोकसभा सीट से ही आने वाले प्रतापनगर विधायक विक्रम सिंह नेगी को मौका दिया जाएगा? या फिर पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण या नवप्रभात को लड़ाया जाएगा?
जाहिर है टिहरी सीट पर बीजेपी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस के पास गिनती के नाम हैं और उनमें भी प्रीतम सिंह जैसा दिग्गज चुनावी ताल ठोकने को राजी नहीं। साफ है कांग्रेस नेतृत्व को ही इस सीट पर जबरन किसी दिग्गज को झोंकना पड़ेगा।

हरिद्वार में कौन हावी?

कांग्रेस हो बीजेपी, खुले तौर पर या अंदरूनी लिहाज से असल शह-मात का खेल हरिद्वार लोकसभा सीट पर ही चल रहा है। कांग्रेस में हरीश रावत 2009 की अपनी सांसदी और 2022 में हरिद्वार देहात विधानसभा सीट से बेटी अनुपमा रावत की जीत के सहारे खुद को “गन्ना मैन” बताकर विधानसभा चुनाव में जिले में दिखे ‘एंटी बीजेपी’ माहौल को भुनाने के लिए 2024 की सियासी पारी खेलने उतरना चाह रहे हैं।

हरदा 2019 में हरिद्वार छोड़कर नैनीताल-उधमसिंहनगर लोकसभा सीट जीतने चले गए थे और अब इसी को आधार बना दूसरे दावेदार डॉ हरक सिंह रावत उनको दोबारा नैनीताल से ही ताल ठोकने का मशविरा दे रहे हैं। जाहिर है इतनी आसानी से न हरदा हरिद्वार से हटने वाले और अगर हरक सिंह रावत भाग दौड़ कर रहे हैं तो संभव है की उनको भी ऊपर से कहीं से कोई इशारा हुआ हो। कम से कम हरिद्वार एक ऐसी सीट है जहां से कांग्रेस के पास चुनावी ताल ठोकने लायक दो दमदार खिलाड़ी दिख रहे हैं। वह भी तब जब हरिद्वार में कांग्रेस का विधानसभा में पलड़ा भारी रहा और आज भी इस जिले में बीजेपी गंभीर गुटीय रोग से पीड़ित है।

यह अलग बात है कि कांग्रेस की तरह खुल्लम खुल्ला न सही लेकिन हरिद्वार में अंदरूनी तौर पर बीजेपी में भी भीषण द्वंद्व जारी है। सिटिंग सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक तो हरिद्वार की सियासी पिच पर खुद को सबसे धाकड़ बल्लेबाज बता ही रहे हैं, पूर्व कैबिनेट मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष रहे मदन कौशिक भी दूसरे सबसे मजबूत दावेदार हैं। निशंक 10 साल से सांसद हैं और तीसरी बार जनता से केंद्र में सरकार बनाने के लिए मोदी-शाह वोट मांगने निकले और लोकल एंटी इनकंबेंसी फैक्टर हरिद्वार में भी चला तो फायदा मदन कौशिक को मिल सकता है। हालांकि 2024 से पहले संभावित धामी मंत्रिमंडल विस्तार भी हरिद्वार सीट के उलझे समीकरण सुलझा जाएगा।

वैसे धर्म नगरी से किसी साधु संत को चुनाव लड़ाने की मांग भी उठाई गई है और हरिद्वार में लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस संतों पर दांव लगाती भी रही हैं। लेकिन कामयाबी कम ही हासिल हुई। यों सीएम धामी के खासमखास स्वामी यतीश्वरानंद भी हरिद्वार देहात की हार से उबरने को हरिद्वार लोकसभा सीट का सपना देखने से खुद को रोक नहीं पा रहे होंगे!

वैसे हरिद्वार सीट पर प्रत्याशी उतारते समय बीजेपी हो या कांग्रेस नेतृत्व, बसपा फैक्टर इग्नोर करना नहीं चाहेंगे। बसपा ने खानपुर से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार की पत्नी सोनिया शर्मा को लोकसभा प्रभारी बनाकर चुनावी जंग को लेकर अपना पत्ता खेल दिया है। उत्तराखंड में अब हरिद्वार ही एक जिला बचा है जहां बसपा का जनाधार बचा हुआ है और 2022 का विधानसभा चुनाव इसकी तस्दीक भी कर गया। इस लिहाज से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार बसपा के बैनर तले दलित-मुस्लिम वोटों की अगर गोलबंदी कर पाए तो किसी के भी हार-जीत के समीकरण गड़बड़ा सकते हैं।

कुमाऊं में किंग कौन?

नैनीताल-उधमसिंहनगर लोकसभा सीट से सिटिंग सांसद और केंद्रीय रक्षा व टूरिज्म राज्यमंत्री अजय भट्ट ही 2024 में बीजेपी टिकट के सबसे बड़े दावेदार होंगे लेकिन पार्टी के हो रहे इंटरनल सर्वे में पूर्व कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडेय का नाम भी लिया जा रहा है। उनके गुरु बलराज पासी की आस हर बार अधूरी रह ही जाती है। जबकि बीजेपी गलियारे में दावेदारी राजेश शुक्ला की भी गिनाई जा रही है।

नैनीताल सीट से कांग्रेस के सामने संकट यह है कि अगर हरदा हरिद्वार से टिकट पा गए तो पार्टी किस पर दांव लगाएगी आज ऐसा दमदार चेहरा कोई नजर नहीं आ रहा है। हालांकि रणजीत रावत, प्रकाश जोशी और महेंद्र पाल ने पार्टी नेतृत्व को मैसेज दिया है कि वे लोकसभा की लड़ाई में किस्मत आजमाने को तैयार हैं।

जबकि अल्मोड़ा में कांग्रेस के पास प्रदीप टम्टा का चेहरा है तो अगर बीजेपी सिटिंग सांसद अजय टम्टा के अलावा किसी नए चेहरे पर दांव लगाती है तो धामी सरकार में एक मंत्री रेखा आर्य का नाम सामने आ रहा है। बीजेपी के इंटरनल सर्वे में किसी सुप्रीम कोर्ट के वकील का नाम भी होने की बात कही जा रही है। वैसे कांग्रेस का एक धड़ा अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य या उनके पूर्व विधायक पुत्र संजीव आर्य को आजमाने की राय भी दे चुका है।

जाहिर है लोकसभा चुनाव को करीब आता देख भले कांग्रेस और खासतौर पर बीजेपी में दावेदारों की चहलकदमी नजर आ रही हो। लेकिन कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजे और उसके बाद धामी सरकार के संभावित मंत्रिमंडल विस्तार के बाद ही लोकसभा की लड़ाई को लेकर चेहरों से कुहासा कुछ-कुछ छंटेगा।

फिर सीटों पर ठाकुर-ब्राह्मण का संतुलन भी समीकरण बनाने बिगाड़ने का काम करेगा। अभी पौड़ी, टिहरी से ठाकुर सांसद हैं तो हरिद्वार, नैनीताल से ब्राह्मण। यानी सुरक्षित सीट अल्मोड़ा को छोड़ दें तो कांग्रेस हो या बीजेपी बाकी चारों सीटों पर ये समीकरण उम्मीदवारों के रूप में जरूर साधने की कोशिश करेंगी।

यानी असल तस्वीर सामने आने तक कई सियासी उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। यकीनन कई बड़े उतार चढ़ाव! पालाबदल भी!

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