- प्रियंका गांधी आ रही नौ जनवरी को उतराखंड, आधी आबादी को हक दिलाने का दिखाएंगी दम?
- महिलाओं की हिमायती भाजपा दे पाएगी आधी आबादी को एक तिहाई हिस्सेदारी?
देहरादून: कहने को उत्तराखंड का शायद ही कोई राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल रहा हो जिसने गुज़रे बीस-बाइस सालों यानी पिछले चार विधानसभा चुनावों या फिर इतने ही लोकसभा चुनावों में मातृ शक्ति को पहाड़ की रीढ़ करार न दिया हो, राज्य आंदोलन की मजबूत नींव न बताया हो। लेकिन जब उन्हीं महिलाओं को चुनावी राजनीति में आधी हिस्सेदारी देने की बात आई तो आधी छोड़िए एक तिहाई या एक चौथाई टिकट देने की हिम्मत भी नहीं दिखाई गई। यह बात अलहदा है कि हर दल और नेता लगातार हर मंच से आधी आबादी को पूरा हक और महिलाओं की तरक्की के बड़े-बड़े दावे पेश करता रहा हो। अब जब राज्य विधानसभा का पांचवां चुनाव हो रहा है तो यह सवाल फिर खड़ा हो रहा कि क्या इस बार महिलाओं को चुनावी राजनीति में सम्मानजनक भागीदारी दी जाएगी?
अगर भाजपा और कांग्रेस में टिकटों को लेकर चल रही एक्सरसाइज को देखें तो संभावना कम ही दिख रही है कि 2022 के देवभूमि दंगल में आधी आबादी को पूरा हक दिया जाएगा। वह भी तब जब यूपी में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने की नारा बुलंद कर रही हैं और भाजपा के भीतर भी एक तिहाई टिकटों पर महिलाओं को मौका देने की मांग जोर पकड़ रही है। सवाल है कि क्या भाजपा और कांग्रेस जैसे दल पाँचवे विधानसभा चुनाव में अपनी कथनी और करनी का भेद मिटाकर महिलाओं को सम्मानजनक भागीदारी देने का दम दिखायेंगे?
सबसे पहले अगर बात कांग्रेस की करें तो चार चुनावों में लगातार एक छोर पर डटी रही डॉ इंदिरा ह्रदयेश भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। नैनीताल से कांग्रेस के टिकट पर 2012 में चुनाव जीत चुकी प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष सरिता आर्य को यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव आर्य की कांग्रेस में घर वापसी के बाद टिकट मिलता नहीं दिख रहा है। इसकी संभावना भी कम ही दिख रही कि सरिता को भाजपा टिकट दे!
मसूरी से गोदावरी थापली जरूर टिकट की एक मजबूत दावेदार है। जबकि सल्ट से पिछला चुनाव हारी गंगा पंचोली के टिकट पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं क्योंकि हरदा वर्सेस रणजीत जंग टिकट किसे मिलेगा यह तय करेगी। लैंसडौन से 2012 का चुनाव लड़ी ज्योति रौतेला और गदरपुर से शिल्पी अरोड़ा टिकट के लिए दावेदारी पेश कर रही लेकिन संभावना कम ही दिख रही।
अलबत्ता सितारगंज में नारायण पाल से बढ़त बना पाई तो मालती बिस्वास के लिए फिर टिकट की उम्मीद जग सकती है। वरना पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, टिहरी और देहरादून जिले में दावेदारी के नाम पर एकाध नाम छोड़कर महिला नेताओं के लिए उम्मीद न के बराबर है। कुमाऊं के पर्वतीय जिलों में भी पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर और चंपावत में किसी कांग्रेसी महिला नेता को टिकट मिलने की संभावना न के बराबर नजर आ रही है।
नैनीताल में सरिता आर्य की उम्मीदें टूट चुकी, तो सल्ट में गंगा के लिए उम्मीद बेहद कम बची हैं। हाँ ऊधमसिंहनगर में मालती बिस्वास की तरह एकाध और कठिन सीट पर महिला को टिकट देकर महिला कोटे का गणित सुधारने का दांव बखूबी चला जा सकता है। हरिद्वार में भगवानपुर सीट से ममता राकेश विधायक हैं और उनके अलावा 2022 में अगर टिकट मिला तो हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत को मौका मिल सकता है। साफ है इस बार भी कांग्रेस से बड़ी संख्या में महिलाओं के विधानसभा पहुँचने की उम्मीद कम ही है।
बात अगर भाजपा की करें तो यमकेश्वर से ऋतु खंडूरी, पिथौरागढ़ से चंद्रा पंत, थराली से मुन्नी देवी शाह और गंगोलीहाट से विधायक मीना गंगोला में से किसी का टिकट नहीं कटा तो चुनावी जंग में नजर आ सकती हैं। चकराता से भी मधु चौहान को फिर उतारा जा सकता है और एकाध सीट से नए महिला चेहरे भी नजर आ सकते हैं। लेकिन बाइस बैटल में भाजपा से यह उम्मीद की जाए कि वह एक तिहाई छोड़िए एक चौथाई भी महिला उम्मीदवार उतारेगी तो ऐसी उम्मीद बेमानी ही दिखती है। यही हाल आम आदमी पार्टी, यूकेडी और सपा, बसपा का दिख रहा है।
4 चुनावों में आधी आबादी को 10 फीसदी हिस्सेदारी भी नहीं मिल पाई
2017 का सत्ता संग्राम
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पांच और कांग्रेस ने आठ महिलाओं को टिकट दिया था जिनमें से सिर्फ पांच ही जीतकर विधानसभा पहुँची। बाद में दो उपचुनावों के जरिए चंद्रा पंत और मुन्नी देवी शाह विधानसभा पहुँची। इंदिरा ह्रदयेश के जाने के बाद महिला प्रतिनिधित्व का एक सशक्त चेहरा अब नहीं रहा है। सरिता आर्य, गंगा पंचोली का टिकट कटने के बाद कांग्रेस के सामने आधी आबादी को 2017 के बराबर प्रतिनिधित्व देने की पहाड़ जैसी चुनौती खड़ी होना तय है। यही हाल भाजपा का भी होना तय है क्योंकि सत्ताधारी दल भी जिताऊ फ़ॉर्मूले में महिलाओं को ज्यादा फिट नहीं मानता दिख रहा।
चुनाव 2012
2012 के चुनाव में भाजपा ने सात महिलाओं के टिकट दिया था यानी 70 सीटों में 10 फीसदी हिस्सेदारी। भाजपा ने केदारनाथ से आशा नौटियाल, चकराता से कमला चौहान, झबरेड़ा से वैजयन्ती माला, हल्द्वानी से रेनू अधिकारी, गंगोलीहाट से गीता ठाकुर, यमकेश्वर से विजया बड़थ्वाल और चंपावत से हरि प्रिया जोशी को टिकट दिया था। इनमें यमकेश्वर से विजया बड़थ्वाल एकमात्र चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच पाई।
2012 में काग्रेस का हाल भी यही रहा। पार्टी ने आठ महिलाओं को टिकट दिया जिनमें चार ही चुनाव जीत पाईं। हल्द्वानी से इंदिरा ह्रदयेश, रामनगर से अमृता रावत, केदारनाथ से शैलारानी रावत और नैनीताल से सरिता आर्य विधानसभा पहुँच पाई। बाद में कांग्रेस टिकट पर उपचुनाव जीतकर भगवानपुर से ममता राकेश और सोमेश्वर से रेखा आर्य विधानसभा पहुँची।
चुनाव 2007
2007 में कांग्रेस ने 70 में से महज पांच टिकट महिलाओं को दिए। यानी मात्र सात फीसदी हिस्सेदारी। जबकि भाजपा ने थोड़ा ज्यादा दरियादिली दिखाते हुए सात टिकट महिलाओं को दिए। यानी 10 फीसदी हिस्सेदारी। महिलाओं के प्रतिनिधित्व को लेकर राष्ट्रीय दल भाजपा-कांग्रेस से बेहतर सोच यूकेडी की भी नजर नहीं आई। यूकेडी ने 64 टिकटों में से सिर्फ चार पर महिला प्रत्याशी उतारे। सपा, बसपा का हाल भी बुरा रहा।
चुनाव 2002
नौ नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया और वर्ष 2002 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विजया बड़थ्वाल, कल्पेश्वरी देवी, आशा देवी और बीना आर्य यानी चार महिलाओं को ही टिकट दिया। जबकि कांग्रेस ने डॉ इंदिरा ह्रदयेश, सरोजिनी कैंथुरा, अमृता रावत, शैला रानी रावत और जया बिष्ट के तौर पर पांच महिलाओं को टिकट दिया। इस बार दो कांग्रेस और दो भाजपा की महिला नेता विधानसभा चुनाव जीत पाई। कांग्रेस से जहां डॉ इंदिरा ह्रदयेश और अमृता रावत चुनाव जीत पाई, वहीं भाजपा से विजया बड़थ्वाल और आशा देवी विधानसभा पहुँची।
दरअसल कांग्रेस हो या भाजपा, राजनीतिक दलों ने न सिर्फ महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी बरती बल्कि सरकार चलाने के लिए न कभी कमान ही सौंपी और न ही मंत्रिमंडल में यथोचित जगह दी। यहाँ तक कि सांगठनिक ज़िम्मेदारियों के नज़रिए से भी महिलाओं को सिर्फ महिला मोर्चों या महिला इकाई तक महदूद रख दिया जाता है। यही हाल लोकसभा चुनावों में प्रतिनिधित्व देने में दिखाई देता है। इसमें भी अगर कहीं महिलाओं को मौका मिला तो अक्सर परिवार की राजनीतिक विरासत संभालने के नाम पर कुछ हिस्सेदारी दे दी गई।