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अड्डा In-Depth सत्र के दो सितारे: धामी ने टीएसआर को बताया कैसे नेता सदन संभालता है सदन के बाहर-भीतर मोर्चा तो प्रीतम ने इंदिरा की कमी से उबरते गढ़ी आक्रामक नेता विपक्ष की दमदार छवि

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देहरादून: वैसे तो सोमवार से शनिवार तक चला उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र चुनाव की चौखट पर खड़े सत्तापक्ष और विपक्ष के लिए कई मायनों में खास रहा। लेकिन इस सत्र ने दो चेहरों को नए सिरे से अपनी राजनीतिक छवि गढ़ने का मौका दिया। दोनों ही नेता चौथी विधानसभा के इस सत्र में नई भूमिकाओं में थे लेकिन दोनों ने अपनी सूझ-बूझ से छह दिन अच्छी पारी खेली और राजनीतिक पंडितों के लिए नए संकेत दिए। नेता सदन के नाते अपने पहले ही विधानसभा सत्र में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कई अवसरों पर विपक्ष के नाराज विधायकों को गले लगाकर अपने राजनीतिक संभावनाशील होने का संदेश दिया। धामी ने सदन में अहम मौकों पर कई बड़ी घोषणाएं कर जहां जनता को मैसेज देना चाहा तो वहीं सदन के बाहर जनहित के मुद्दों पर धरने पर बैठे विपक्षी विधायकों की तरफ मदद का हाथ बढ़ाकर गले लगाया। नेता सदन के नाते धामी ने जिस राजनीतिक संवेदनशीलता का परिचय दिखाया यह चौथी विधानसभा में चार साल तक नेता सदन रहे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए किसी आईना से कम नहीं।


तो पहली बार नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे प्रीतम सिंह ने न केवल सदन के भीतर विपक्ष के हमलावर तेवरों को धारदार बनाकर रखा बल्कि सदन के बाहर सड़क पर भी सरकार को नहीं बख़्शा। इस दौरान कांग्रेस विधायक प्रीतम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मोर्चा लेते नजर आए और अरसे बाद विपक्ष के तेवरों में न केवल तल्ख़ी दिखी बल्कि धार भी नज़र आई। जबकि न केवल अकेले प्रीतम सिंह बल्कि पूरे कांग्रेसी कैंप को डॉ इंदिरा ह्रदयेश की कमी का अहसास था लेकिन चुनावी दहलीज़ पर खड़ा विपक्ष कहीं से कमजोर नहीं दिखना चाहता था। शायद प्रीतम सिंह ने नेता विपक्ष के नाते कांग्रेस को डॉ
इंदिरा ह्रदयेश की कमी न खले यही दिखाकर अपनी दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि देना चाहा हो।


जरा उस दौर को याद कीजिए जब नेता सदन त्रिवेंद्र सिंह रावत हुआ करते थे और शायद ही कभी ऐसा कोई मौका आया हो जब टीएसआर ने धरने या प्रदर्शन पर बैठे किसी विपक्षी विधायक के पास जाना तो दूर फोन पर बात करने की ज़हमत भी उठाई हो। कई मौक़ों पर इंदिरा से लेकर प्रीतम सिंह और करन माहरा सहित तमाम कांग्रेस विधायक विधानसभा के गेट के बाहर भी घंटों धरने पर बैठे। लेकिन सत्तापक्ष की तरफ से मदन कौशिश या उनसे पहले प्रकाश पंत के अलावा नेता सदन त्रिवेंद्र रावत ने किसी विपक्षी विधायक से मिलना गंवारा किया हो। लेकिन इस बार मानसून सत्र में नेता सदन के नाते मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तस्वीर पूरी तरह बदल डाली। फिर धरने पर चाहे विधायक हरीश धामी और मनोज रावत बैठे हों या ममता राकेश और फुरकान अहमद, मुख्यमंत्री धामी ने विपक्ष के विधायकों की तरह हाथ बढ़ाया और अपने कक्ष में बिठाकर अधिकारियों को बुलाकर काम करने का संदेश दिया। धामी ने सदन के बाहर ही नहीं सदन के भीतर भी बालिकाओं के लिए पैकेज से लेकर कई पैकेज की घोषणा कर विपक्षी हमलावर तेवरों की धार कुंद करने का दांव चला। कई अवसर ऐसे आए भी जब विपक्ष ने भी मुख्यमंत्री की तारीफ करने में कंजूसी नहीं बरती। जबकि इसके बरक्स पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत यदा-कदा ही चंद पलों के लिए विधानसभा में अवतरित होकर नेता सदन होने का धर्म निभा जाते रहे।


कुछ इसी अंदाज में नेता विपक्ष की भूमिका में अपने पहले ही सत्र में प्रीतम सिंह ने आक्रामक तेवर दिखाकर विपक्षी कैंप में जोश भर दिया। फिर चाहे कुंभ में फर्जी टेस्टिंग घोटाले पर सरकार की घेराबंदी का मौका रहा हो या बेरोज़गारी पर सरकार को आईना दिखाना या फिर महंगाई पर मोर्चा लेना रहा हो। प्रीतम सिंह ने कांग्रेसी विधायकों को साथ लेकर सदन के भीतर तो धामी सरकार की घेराबंदी की ही, सड़क पर भी कभी साइकिल लेकर सदन पहुंचकर महंगाई की मार का अहसास सरकार को कराया तो कभी ट्रैक्टर पर गन्ना लादकर विधानसभा में दाखिल हो सरकार को गन्ना किसानों और तीन कृषि बिलों पर घेरा। कोरोना महामारी, जाति प्रमाण पत्र, मनरेगा, भू-क़ानून, कार्मिकोें के कष्ट और देवस्थानम बोर्ड जैसे मुद्दों पर आक्रामक होकर टीम प्रीतम ने सरकार के लिए सदन में हालात असहज बना डाले।


जाहिर है चुनाव सामने है लिहाजा सत्तापक्ष ने अपने तरीके से विधासनभा सत्र का सदुपयोग कर जनता को मैसेज देना चाहा तो विपक्ष ने भी ज्यादा आक्रामक होकर जनहित के मुद्दों पर जन आवाज होने का दम भरा। लेकिन मानसून सत्र के दौरान सदन के सितारे के तौर पर दोनों, नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष अपनी चमक बिखेरने में कामयाब होते नजर आए।

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