लखनऊ/ देहरादून: उत्तराखंड राज्य 21 वर्ष का युवा राज्य हो चुका है लेकिन अपने बड़े भाई उत्तरप्रदेश के साथ लंबित परिसंपत्ति विवाद एक नासूर बना हुआ है। पिछले चार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से लेकर भाजपा सहित हर पार्टी ने यूपी-उत्तराखंड परिसंपत्ति विवाद निपटाने के खूब वादे और दावे किए लेकिन हकीकत यह है कि आज भी अनेक मामले झगड़े की जड़ बने हुए हैं। उत्तराखंड में जनता को लगातार इस बात की दर्द है कि न यूपी ने बड़े भाई जैसा बड़ा दिल दिखाया और न ही उत्तराखंड की सियासी ताक़तों और नेताओं ने वो कूव्वत दिखाई की राजनीतिक पहल या कानूनी मदद लेकर राज्य की परिसंपत्तियां हासिल की जाएं। यह अलग बात है कि अपने तरीके से प्रयास करने के दावे यहाँ भाजपा-कांग्रेस सरकारों ने किए तो यूपी की तरफ से सपा-बसपा से लेकर भाजपा ने जताया कि वह विवाद निपटारे को लेकर प्रयासरत हैं। लेकिन अब एक ऐसा राजनीतिक संयोग है कि सालों से अटके परिसंपत्ति विवाद निपटाए जा सकते हैं। कुछ मसले गुज़रे सालों में सुलझते दिखे भी हैं लेकिन अभी भी अनेक मुद्दों पर पेंच फंसे हैं।
अब न केवल उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में एक ही दल यानी भाजपा की सरकार है बल्कि केन्द्र में भी इसी दल की सरकार होने से ट्रिपल इंजन से पहाड़ की जनता को पहाड़ जैसी उम्मीदें हैं और चु्नावी वर्ष में युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी इन्हीं उम्मीदों के ध्वजवाहक बनकर लखनऊ पहुँचे हैं। वैसे भी धामी अटके मामलों को सहज होकर निपटाने की कोशिश करते दिखे हैं। अब जब चुनावी शंखनाद हो रहा है तब भाजपा भी बखूबी जानती है कि परिसंपत्ति विवाद को लेकर उम्मीदों के अनुरूप पौने पांच सालों में प्रगति नहीं हो पाई है तब सत्ताधारी दल हर हाल में चाहता है कि समाधान की बड़ी लकीर खींचकर चुनाव में इसका सियासी फायदा उठाया जाए। जाहिर है धामी इन्हीं सब परिस्थितियों का जमा-जोड़ बिठाकर लखनऊ पहुँचे हैं। युवा सीएम धामी का लखनऊ यानी यूपी से राजनीतिक रिश्ता ही नहीं रहा है बल्कि लखनऊ विश्वविद्यालय से उनकी छात्र जीवन की यादें जुड़ी हैं यानी जड़ें पुरानी हैं, उनको ठीक से सींचने की दरकार है ताकि पहाड़ के पक्ष में परिसंपत्ति विवाद का हल निकले!
ट्रिपल इंजन के साथ साथ यह भी सुखद संयोग है कि उत्तरप्रदेश की कमान इस समय योगी आदित्यनाथ के हाथों में है, जो मूलत: उत्तराखंड के ही हैं। जाहिर है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लखनऊ प्रवास में यूपी के मुख्यमंत्री योगी से मुलाकात में ये तमाम पक्ष मददगार साबित हो सकते हैं।
चुनावी वर्ष में मुख्यमंत्री धामी की कोशिश होगी कि योगी सरकार के साथ संवाद में लंबित मामलों का ऐसा समाधान निकले कि पहाड़ पॉलिटिक्स में उनका रास्ता सुगम हो जाए।
जानिए कौन-कौन से लंबित मसलों पर होगी चर्चा
- उत्तराखंड को इंतजार है कि हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और चंपावत में 379 हेक्टेयर भूमि उसे हस्तांतरित हो
- हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर व चंपावत में 351 आवासीय भवन उत्तरप्रदेश से उत्तराखंड को मिलने हैं।
- कुंभ मेला की 687.575 हैक्टेयर भूमि को यूपी से यूके के सिंचाई विभाग को हस्तांतरित होनी है।
- उत्तराखंड पर्यटन विभाग को पुरानी ऊपरी गंग नहर में वाटर स्पोर्ट्स की सशर्त मंजूरी दी जानी है।
- यूएसनगर में धौरा, बैगुल, नानकसागर जलाशय में पर्यटन व जलक्रीड़ा से पहले परीक्षण कराया जाना है।
- केंद्र सरकार के आदेश के अनुसार, उत्तराखंड वन विकास निगम को यूपी वन निगम में संचित व आधिक्य धनराशि 425.11 करोड़ में से 229.55 करोड़ की धनराशि उत्तराखंड मिलनी है।
- यूपीसीएल को बिजली बिलों का 60 करोड़ का बकाया देना है।
- उत्तराखंड गठन के बाद 50 करोड़ मोटर यान कर उत्तराखंड परिवहन निगम को दिया जाना था। अभी भी 36 करोड़ बकाया है।
- परिवहन निगम के कई और भी परिसंपत्ति संबंधी मसले पेंडिग हैं जो सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुँचे हैं।
- अजमेरी गेट स्थित अतिथि गृह नई दिल्ली, यूपी परिवहन के लखनऊ स्थित मुख्यालय, कार सेक्शन और कानपुर स्थित केंद्रीय कार्यशाला व ट्रेनिंग सेंटर के विभाजन का निर्णय होना शेष है।