देहरादून: देवस्थानम बोर्ड पर प्रदेश के चारों धामों के तीर्थ-पुरोहितों व हक-हकूकधारियों को बातचीत की मेज़ पर लाकर
त्रिवेंद्र राज मे बने एक्ट पर समाधान खोज रहे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मुश्किलें खुद टीएसआर ही बढ़ा रहे हैं। एक तरफ जहां तीर्थ पुरोहित पीएम नरेंद्र मोदी के पांच नवंबर के दौरे से पहले बोर्ड भंग करने की मांग पर आंदोलन की चेतावनी दे रहे थे, तो दूसरी तरफ पुलिस के ख़ुफ़िया तंत्र ने भी आगाह कर दिया था लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सबकुछ नजरअंदाज कर केदारनाथ कूच कर दिया। नतीजा यह रहा कि केदारपुरी पहुँचते ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को भारी विरोध व नारेबाज़ी का सामना करना पड़ा और खूब फजीहत झेलने के बाद बाबा केदार के बिना दर्शन किए ही टीएसआर को बैरंग लौटना पड़ा।
अब सवाल है कि जब देवस्थानम बोर्ड बनने के बाद से ही सूबे में विरोध-प्रदर्शन हो रहे और लगातार तीर्थ-पुरोहित बोर्ड के बहाने त्रिवेंद्र रावत को ही दोषी करार दे रहे, तब क्या हालात की गंभीरता को नहीं समझ लिया जाना चाहिए था? क्या प्रधानमंत्री मोदी के दौरे से पहले त्रिवेंद्र रावत के इस मिसएडवेंचर ने हालात और बिगाड़ने का काम नहीं कर दिया है? अगर ऐसा नहीं होता तो आखिर क्यों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक को दिल्ली आलाकमान के दरबार हाज़िरी देने को पहुंचना पड़ता!
अब हालात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी के दौरे से ठीक पहले खड़े हुए इस बखेड़े ने भाजपा के प्रदेश और राष्ट्रीय नेताओं की नींद उड़ा दी है। अब सवाल है कि क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सीएम धामी को देवस्थानम बोर्ड पर तीर्थ-पुरोहितों की भावना के अनुरूप एक्शन लेने को फ़्रीहैंड देगा? या सत्ताधारी दल बोर्ड पर तमाम बवाल के बावजूद टीएसआर राज में अपनाई गई राह पर मुखर होकर आगे बढ़ने का ऐलान करेगा? दरअसल दिल्ली दौड़ से पहले खुद मदन कौशिक राज्य के प्रोटोकॉल मंत्री डॉ धनसिंह रावत के साथ केदारनाथ होकर आए हैं और तीर्थ-पुरोहितों के कड़े विरोध ने हालात का अहसास बखूबी करा दिया जिसे कौशिक ने दिल्ली में राष्ट्रीय पार्टी नेतृत्व के सामने भी रख दिया है।
दरअसल, टीएसआर राज्य में दो साल पहले देवस्थानम एक्ट के जरिए बोर्ड बनाया गया था और इसके तहत चारधाम मंदिरों सहित राज्य के 51 मंदिरों को शामिल किया गया था लेकिन शुरू से तीर्थ-पुरोहित कड़ा विरोध कर रहे। 30 अक्तूबर बीत जाने और धामी सरकार द्वारा कमेटी गठित करने से ज्यादा कुछ भी न कर पाने का गुस्सा अब सरकार के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है। दरअसल तीर्थ पुरोहित ऐलान कर चुके है कि अगर बोर्ड भंग नहीं किया जाता है तो वे किसी भी भाजपाई नेता को यहाँ नहीं आने दिया जाएगा।
जाहिर है यह चेतावनी प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के लिहाज से बेहद अहम है और अब मुख्यमंत्री धामी और मदन कौशिक को समाधान के लिए दिल्ली दौड़ लगानी पड़ी है। खासकर जिस तरह से त्रिवेंद्र सिंह रावत को भारी विरोध झेलना पड़ा उससे सरकार के मैनेजरों से लेकर भाजपाई रणनीतिकारों व नेताओं को सांसत में डाल दिया है।
भाजपा के भीतर भी एक ऐसा धड़ा है जो यह मानता है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को ऐसे समय जब पीएम चंद दिन बाद केदारनाथ पहुँच रहे, तब केदारनाथ पहुंचकर तीर्थ-पुरोहितों के ज़ख़्मों पर नमक नहीं छिड़कना चाहिए था। ऐसा कर पूर्व सीएम टीएसआर ने जहां उग्र होते आंदोलन में मिट्टी का तेल छिड़ककर इसे और भड़का दिया, वहीं सीएम धामी के गतिरोध खत्म कराने के प्रयासों पर भी ब्रेक लगाने का काम कर दिया है।