
देहरादून: 2017 में उत्तराखंड के चौथे विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े वोटों के अंतर से चुनावी फतह हासिल करने वाले देहरादून की रायपुर सीट से विधायक उमेश शर्मा काऊ ने कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का काम लगा दिया है। ‘काम लगा दिया है’ मतलब राहुल गांधी के अंगना टहलकर भी न खुद कांग्रेस में घर वापसी कर पाए और अब हरक सिंह रावत जैसे 18 मार्च 2016 के दूसरे बाग़ियों के रास्ते में भी काँटे बो दिए हैं।
हम ऐसा इसलिए कह रहे कि अब यह भरी दोपहरी में दिखता सियासी सत्य है कि रायपुर विधायक उमेश शर्मा काऊ का मन दल परिवर्तन का कर रहा था लेकिन आखिरी वक्त में कांग्रेस में जाने के मुकाबले मिले किसी और बड़े प्रलोभन ने टॉयलेट का बहाना सुझाकर वापस कमल कुनबे में खींच लिया। डंके की चोट पर सच यह है कि यशपाल आर्य और संजीव आर्य का तरह कांग्रेस में घर वापसी करने के लिए बीजेपी विधायक उमेश शर्मा काऊ रविवार रात्रि 10 बजे देहरादून से दिल्ली के लिए दौड़े और सुबह साढ़े 5 बजे हाज़िर हो गए। साढ़े नौ बजे नहा-धोकर कांग्रेस के संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल से मुख़ातिब हो गए। फिर आए एक फ़ोन कॉल ने टॉयलेट का बहाना सुझाया और राहुल गांधी का दफ्तर छोड़कर बाहर इंतजार कर रहे अनिल बलूनी और मदन कौशिक के साथ वापस कमल कुनबे में पहुंच गए।
सवाल है कि क्या काऊ को किसी बीडीसी मेंबर की तरह कांग्रेस का कोई नेता उठाकर ले गया था या खुद गाड़ी दौड़ाकर तड़के ही कांग्रेस कैंप में हाज़िरी लगा दी थी! या फिर पहले उपेक्षा से मन मचल रहा था घर वापसी को लेकिन फिर फ़ोन पर मिले मंत्रीपद के लालच ने विचार बदलने को मजबूर कर दिया! जाहिर है पूरी तरह एक्सपोज हो गए काऊ ने अपना केस तो खराब कर ही लिया कई और कांग्रेसी गोत्र वाले नेताओं के मचलते मन को भी झटका दे दिया।
वह कैसे आइये समझते हैं। अब यह कोई छिपी बात नहीं कि धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे यशपाल आर्य और नैनीताल विधायक संजीव आर्य की तरह कई और कांग्रेसी गोत्र के नेताओं को बीजेपी में घुटन महसूस हो रही है।कांग्रेस कैंप में चाय की चुस्कियां ले आए काऊ का करतब तो जगज़ाहिर है ही, काबिना मंत्री डॉ हरक सिंह रावत की बार-बार इस बार चुनाव न लड़ने की रट लगाने का मतलब भी कोटद्वार के किले में घेराबंदी का भय ही है। लेकिन अगर कांग्रेस में घर वापसी हो जाए तो न केवल कोटद्वार से पीछा छूट जाएगा बल्कि बहू अनुकृति गुसांई के लिए लैंसडौन सीट भी मिल सकती है और खुद के लिए बड़ी लकीर खींचने को डोईवाला जैसी सीट भी मिल सकती है जहां अगर पूर्व सीएम टीएसआर लड़े तो नए सिरे से नायक बनने का मौका भी हाथ लग जाएगा। लेकिन अब समझिए कैसे काऊ ने अपनी कांग्रेस दिल्ली दरबार की दौड़ और फिर उलट-पांव बीजेपी लौटकर हरक का खेल भी बिगाड़ दिया है और बाकी कसर हरीश रावत पूरी करने में लगे हैं।
दरअसल, बाइस बैटल से पहले बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों दलों के रणनीतिकार बैकडोर चैनल खोलकर बैठे हैं और जिताऊ दावेदारों को तोड़कर एक-दूसरे के विरोधियों को झटका देने की कवायद चल रही है। भले काऊ का कांग्रेस जाने की कोशिशों का भांडा फूट गया हो और आर्य पिता-पुत्र घर वापसी कर गए हों लेकिन अभी कई और बाग़ियों को लौटना है। सूत्र बताते हैं कि हरक सिंह रावत से लेकर सतपाल महाराज जैसे दिग्गज मौके की नज़ाकत भांपकर अपने पत्ते हाथों में दबाए बैठे हैं। लेकिन पूर्व सीएम हरीश रावत किसी क़ीमत पर नहीं चाहेंगे कि 18 मार्च 2016 को बगावत कर उनकी सरकार को संकट में डालने वाले नेताओं की आसानी से घर वापसी होने दी जाए क्योंकि कल को अगर सरकार बनी तो फिर इन्हीं नेताओं से दो-दो हाथ की नौबत आन पड़ेगी।
हालाँकि प्रीतम कैंप ताकत झोंके हैं कि जिताऊ बाग़ियों को लाया जाए लेकिन हरदा कैंप कभी नहीं चाहेंगे कि हरक सिंह रावत जैसे ‘खेल’ कर डालने की क्षमता वाले बागी फिर घर लौटें। अब हरदा के दिल की मुराद हरक सिंह के साथी काऊ ने पूरी कर दी है। सूत्र बताते हैं कि जिस नाटकीय घटनाक्रम के बाद काऊ आए-गए उसके बाद हरदा ने प्रभारी देवेन्द्र यादव से लेकर संगठन महामंत्री वेणुगोपाल को साफ संदेश दे दिया है कि 18 मार्च 2016 के बाग़ियों का विरोध वह इसीलिए कर रहे कि उनकी विश्वसनीय संदिग्ध है। हरदा ने काऊ प्रकरण के बाद इसे उदाहरण के तौर पर पेश करते हुए यह तथ्य स्थापित करने को ताकत झोंक रखी है कि हरक-काऊ जैसे बागी नेता भरोसेमंद नहीं हैं और नतीजों के बाद अगर काँटे के मुकाबले की स्थिति बनती है तब ये नेता फ़िर कांग्रेस को दगा देकर बीजेपी के साथ सांठगांठ कर सकते हैं।
काऊ के कांग्रेसी चौखट पर मत्था टेक लौट जाने के एपिसोड ने हरदा को अपनी थ्योरी मजबूती से राहुल गांधी तक रखने का अवसर दे दिया है। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस ने अपने इंटरनल सर्वे में पाया है कि वह कोटद्वार मे कंफ़रटेबल जीत दर्ज करेगी। सूत्र बताते हैं कि हरदा की तर्ज पर प्रभारी देवेंद्र यादव भी अब इस स्थिति की तरह बढ़ रहे कि हरक सिंह रावत के साथ 18 मार्च 2016 की बगावत का हिसाब-किताब कोटद्वार के क़िले में कर लिया जाए। हालाँकि प्रीतम कैंप ने हिम्मत नहीं हारी है और राजनीति संभावनाओं का खेल है, लेकिन अब तक की स्थिति यह दर्शाती है कि कोटद्वार में हरक सिंह रावत के भाग्य का फैसला करने को लेकर कांग्रेस और बीजेपी में एक अघोषित सी सहमति बन रही! बीजेपी भी अब तक हरक सिंह रावत के सीट बदलने के सारे दांव-पेंच खारिज करती जा रही है। लिहाजा हरक सिंह रावत की फिलहाल राजनीतिक लाइन यही है कि वह छह चुनाव लड़ चुके, कई बार मंत्री बन चुके हैं लिहाजा अब और चुनाव लड़ने का मन नहीं रहा।
दरअसल कांग्रेस अपने इंटरनल सर्वे के रुझान पाकर 2022 जीत को लेकर कॉन्फिडेंट दिखना चाह रही है और वह बीजेपी ने जिस तर्ज पर राजकुमार और राम सिंह कैड़ा को लेकर लायबिलिटी बढ़ाई है उस तर्ज पर हड़बड़ी में किसी के लिए भी दरवाजा नहीं खोलना चाह रही है। इसीलिए अगर बीजेपी हरक को कोटद्वार लड़ाने पर अडिट रहती है तो कांग्रेस भी इस मुकाबले का बेसब्री से इंतजार कर रही है। इसी तरह हरदा दूसरे बाग़ियों की काट की कहानी भी लिखना चाह रहे। यही वजह है कि कांग्रेस ने हरक या महाराज की बजाय आर्य पिता-पुत्र की घर वापसी पहले कराकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि बाग़ियों की वापसी का रास्ता तो खुला है लेकिन उनका नहीं जिन्हें हरीश रावत 18 मार्च 2016 की बगावत के महापापी करार दे रहे।