पहले गृह मंत्री शाह मांगी थी सलाह, अब पीएम मोदी के सामने जता दी इच्छा, पद छोड़ने के एलान की वजह क्या
Maharashtra Governor Bhagat Singh Koshyari wants to leave the post: महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने ऐलान कर दिया है कि वे अब समुद्र तट स्थित राजभवन से पहाड़ लौटकर राजनीतिक भागदौड़ से दूर अध्ययन में लीन होना चाहते हैं। पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से सलाह लेने के लिए चिट्ठी लिख चुके भगतदा ने सोमवार को एक तरह से राजभवन छोड़ने का एलान ही कर दिया है। उन्होंने पीएम मोदी को कह दिया है कि वे अब तमाम राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं।
भगतदा ने बाकायदा ट्वीट कर कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की मुंबई यात्रा के दौरान मैंने उन्हें सभी राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त होने और पढ़ने, लिखने तथा अन्य गतिविधियों में अपना बाकी बचा जीवन व्यतीत करने की इच्छा व्यक्त की है।”
महाराष्ट्र गवर्नर कोश्यारी ने कह, “संतों, समाज सुधारकों और वीर सेनानियों की भूमि महाराष्ट्र जैसे महान राज्य के राज्य सेवक या राज्यपाल के रूप में सेवा करना मेरे लिए सम्मान और सौभाग्य की बात रही है।”
उन्होंने कहा कि पिछले तीन साल साल से अधिक समय के दौरान महाराष्ट्र की जनता से जो प्यार और स्नेह मिला है, मैं उसको कभी नहीं भूल सकता हूं। कोश्यारी ने कहा कि मुझे हमेशा पीएम मोदी से प्यार और स्नेह मिला है और इस बारे में भी मुझे इसी प्रकार की उम्मीद है। पीएम 19 जनवरी को मुंबई दौरे पर गए थे।
ज्ञात हो कि भगत सिंह कोश्यारी को सितंबर 2019 में महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया था और राजभवन पहुंचने के बाद से ही वे लगातार अपने बयानों के कारण विवादों में फंसते रहे हैं।
भगतदा ने शिवाजी महाराज को पुराने जमाने और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की नए जमाने का आइकन बताकर महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स में बवंडर खड़ा कर दिया था। उसके बाद उद्धव का शिवसेना धड़ा या एनसीपी,कांग्रेस छोड़िए सीएम शिंदे गुट की शिवसेना से लेकर बीजेपी के कई नेता भी उन पर हमलावर होकर “गो बैक गवर्नर” मुहिम में दिल्ली तक जुट गए।
उससे पहले भगतदा ने मुंबई दे राजस्थानियों और गुजरातियों को निकाल दो तो यहां एक पैसा नहीं बचेगा बोलकर हंगामा खड़ा कर दिया था।
ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की कम उम्र में शादी के मुद्दे पर भी ऊटपटांग बोलकर भगतदा घिर गए थे। सुबह सुबह देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार की शपथ ग्रहण कराकर कोश्यारी राजभवन की गरिमा गिराने वाले गवर्नर्स में अपना नाम दर्ज पहले ही करा ही चुके थे।
जाहिर है अगर भगतदा अब और अधिक दिनों तक राजभवन में टिके रहते हैं तो महाराष्ट्र की राजनीति में इसकी कीमत बीजेपी और शिंदे गुट को चुकानी पड़ सकती है। इसका आकलन भगतदा और बीजेपी नेतृत्व दोनों को बखूबी हो चुका है। लिहाजा अब उनकी सम्मानजनक एग्जिट कैसे हो इस पर मोदी शाह को मंथन करना है।
लेकिन इससे बड़ा सवाल उत्तराखंड की सियासत में कोश्यारी को लेकर यही है कि अब जब वे खुद ऐलान कर चुके हैं कि उनको महाराष्ट्र राजभवन से मुक्ति दी जाए तब पहाड़ प्रदेश लौटकर क्या वे वाकई अपने कथनानुसार पढ़ने लिखने में वक्त व्यतीत करेंगे या फिर देहरादून में बैठकर पर्दे के पीछे से धामी सरकार में अपना दखल और बढ़ाएंगे?
पॉवर कोरिडोर्स में यह बात हरेक मानकर चलते हैं कि सीएम पुष्कर सिंह धामी न केवल भगतदा के राजनीति शिष्य हैं बल्कि उनका दखल सरकार के विभिन्न कामकाजों में बैकडोर से दिखता है। एकाध मंत्री को लेकर तो यहां तक कहा जाता है कि “खिचड़ी वाले बाबा” का वर्दहस्त जब तक है तब तक उनका रुतबा राजनीति और सरकार में दबदबा कायम रहेगा। सवाल है कि क्या भगत दा जल्द देहरादून डिफेंस कॉलोनी स्थित अपने आवास में बैठकर जहां पढ़ने लिखने में वक्त बिताते दिखेंगे वहीं सत्ता के नए नए गुरु मुश्किल हालात में सीएम धामी को देते भी दिखेंगे!