देहरादून: यूपी में बाइस बैटल से ठीक पहले एक के बाद एक स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर दारा सिंह चौहान जैसे नए -नए मौसम वैज्ञानिक मिल रहे, चर्चा उत्तराखंड में भी चुनाव से पहले कुछ मौसम वैज्ञानिकों के सामने आने की थी। लेकिन अब लगता है कि इस लिस्ट से ‘शेर ए गढ़वाल’ का नाम हटा दिया जाए तो उचित होगा।
सूबे के सियासी गलियारे मे जिसे सबसे बड़े मौसम वैज्ञानिक के तौर पर देखा जा रहा और ये लगातार यह चर्चा हो रही कि
डॉ हरक सिंह रावत अगर भाजपा छोड़ेंगे तो महज इसलिए नहीं कि वे कोटद्रार में फंसे हुए हैं बल्कि इसलिए अधिक कि सरकार किसकी बन रही इसका संकेत उनके अगले कदम से मिल जाएगा।
हालाँकि अब एक नहीं भाजपा के दो-तीन इनसाइडर्स ने इस पर मुहर लगा दी है कि ‘शेर ए गढ़वाल’ बाइस छोड़िए चौबीस तक कहीं नहीं जाएंगे क्योंकि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का ‘अच्छी दोस्ती’ निभाने का मंत्र हरक सिंह रावत को मिल चुका है। लिहाजा अब न के बराबर गुंजाइश है कि हरक सिंह रावत पार्टी छोड़कर कांग्रेस में घर वापसी करें। अलबत्ता यह जरूर संभव है कि पार्टी अपवादस्वरूप हरक को सीट बदलकर केदारनाथ या किसी दूसरी सीट जाने का चांस दे दे! हालाँकि चर्चा यह भी है कि कांग्रेसी गोत्र एक कद्दावर मंत्री का भी अपनी मौजूदा सीट से मोहभंग हो रखा है लिहाजा वे भी सुरक्षित सीट के समीकरण साधने में लगे हैं। यह अलग बात है कि जब दिग्गज ही अपनी सीट छोड़कर सुरक्षित ठिकाने खोजते दिखेंगे तो पार्टी सभी मंत्रियों को अपनी सीट से ताल ठोकने को कह दे।
डॉ हरक सिंह रावत के सामने संकट खुद के लिए कोटद्वार से लड़ें कि कहीं और से लड़ें के अलावा अपनी बहू की राजनीतिक पारी का आगाज कराने की भी है। उनकी पुत्रवधू लैंसडौन से चुनाव लड़ना चाहती हैं और मुश्किल यह है कि वहाँ से भाजपा के दो बार के विधायक महंत दलीप रावत हैं। अब भाजपा हरक और उनकी बहू दोनों को टिकट देती है या फिर हरक पीछे हटते हैं यह देखना दिलचस्प होगा।
बहरहाल, शाह के ‘मित्रता’ मंत्र के बाद भाजपा कैंप के कई दिग्गज राहत की साँस ले रहे क्योंकि चर्चा वहाँ भी रहती थी कि मौसम वैज्ञानिकों का चुनाव से पहले मूवमेंट पार्टी की उम्मीदों के लिए झटका साबित हो जाता है।