देहरादून: केन्द्रीय गृहमंत्री और पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह देहरादून पहुंच चुके हैं। देवभूमि के दंगल में चुनावी शंखनाद करने आए शाह जहां बाइस बैटल में इक्कीस साबित होने की व्यूहरचना समझाएंगे, वहीं असंतोष के सुर दिखाकर पार्टी की गाहे-बगाहे फजीहत कराने वाले नेताओं की क्लास लगनी भी तय है। पार्टी सूत्रों ने द न्यूज अड्डा पर दावा किया है कि कांग्रेस गोत्र, जिन्हें बागी नेताओं के तौर पर भी जाना जाता है, के नेताओं के पेंच कसने से भी अमित शाह परहेज़ नहीं करेंगे।
खासकर जिस तरह से कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के आए दिन के बयानों से भाजपा को बैकफुट पर आना पड़ रहा है, उस पर शाह की क्लास में ब्रेक लगाने के लिए अनुशासन की लकीर खींची जा सकती है। पार्टी को लगता है कि पिछले पांच सालों में कैबिनेट मंत्री के नाते डॉ हरक सिंह रावत को खूब तवज्जो दी गई, यहाँ तक कि पुष्कर सिंह धामी की सीएम पद पर ताजपोशी की गई तो हरक सिंह को खुश करने को ऊर्जा विभाग जैसा मलाईदार महकमा भी दे दिया गया। लेकिन कभी पूर्व सीएम टीएसआर के साथ जुबानी जंग तो कभी कैबिनेट में निराशाजनक प्रदर्शन जैसे बयानों के बहाने हरक सिंह रावत भाजपा की राजनीतिक संभावनाओं पर चोट पहुँचाने का काम कर रहे।
इसी तरह विधायक विधायक उमेश शर्मा काऊ को भी अमित शाह कड़ा संदेश दे सकते हैं क्योंकि पार्टी नेतृत्व ने काऊ का पक्ष लेते हुए रायपुर के पुराने काडर को हड़काने में भी हिचक नहीं दिखाई थी। बावजूद इसके काऊ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अंगना टहलने चले गए और एक फोन कॉल पर मिले मंत्री पद की एवज में उलटपांव लौट भी आए। लेकिन अब पार्टी मंत्रीपद बांटकर खुद को बाग़ियों के नहीं मंतरों नहीं दिखाना चाह रही है। इसीलिए बहुगुणा को शाह के दौरे से चंद दिन पहले बाग़ियों से बातचीत को भेजा गया था। लेकिन बहुगुणा से बातचीत के ठीक बाद ही हरक सिंह ने यह कहकर कि ‘बहुगुणा चार साल चाय पीने नहीं आए’, अपने इरादों का इशारा कर दिया है। लिहाजा अब मोर्चा खुद अमित शाह ने संभाल लिया है।
जिस तरह से अल्मोड़ा जिले से जानकारी आ रही है कि सल्ट से भाजपा विधायका महेश जीना और पार्टी नेता गिरीश कोटनाला में झगड़ा ख़ूनी संघर्ष तक पहुंच गया, इससे पार्टी की जमकर फजीहत तो हो ही रही है सल्ट में पार्टी के टिकट को लेकर मचे अंदरूनी झगड़े के चौराहे पर दिखने से चुनावी संभावनाओं को भी झटका लग रहा है। इससे पहले खानपुर से भाजपा विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन का अपनी जाति की गुर्जर सभा से जुड़े नेताओं के कंधे पर बंदूक़ रख खाली पड़े मंत्री पद के लिए दावेदारी पेश करना भी सत्ताधारी पार्टी को असहज कर गया है।
भाजपा में इस तरह से दावेदारी पहले किसी ने पेश नहीं की है और पार्टी का एक धड़ा इसे अनुशासन का उल्लंघन बताकर मुद्दा बना रहा है ताकि चैंपियन की तरह बड़बोलेपन से भाजपा की फजीहत करा रहे नेताओं पर लगाम लगाई जा सके। सवाल है कि ऐसे में जब चुनाव दरवाजे दस्तक दे चुका है और दलबदल की हवा पहाड़ पॉलिटिक्स की फ़िज़ाओं में तेजी से तैर रही तब अमित शाह का यह दौरा सियासी हवाओं का रुख बदलने में कितना कामयाब होता है, इसी पर भाजपा की चुनावी संभावनाओं का गणित भी टिका है।
दरअसल बन्नू स्कूल मैदान में बड़ी रैली के बाद अमित शाह न केवल पार्टी नेताओं-पदाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे बल्कि कोर ग्रुप के नेताओं की क्लास में सबसे ज्यादा चर्चा चुनावी संभावनाओं और बाग़ियों से लेकर बयान बहादुरों को लेकर होना तय बताया जा रहा है। कोर ग्रुप में बाग़ियों में बहुगुणा-हरक रहेंगे तो खाँटी भाजपाई नेताओं में से सीएम धामी से लेकर सूबे के तमाम दिग्गज होंगे। जाहिर है शाह दलबदल के बवंडर की हवा निकालने की आखिरी कोशिश करेंगे।