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राज्यसभा का रण, त्रिवेंद्र, गैरोला या गहतोड़ी! मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चाहेंगे टीएसआर पहुंचें राज्यसभा?

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देहरादून: कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा चार जुलाई को संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा से रिटायर हो रहे हैं। सूबे के कोटे की तीन में दो राज्यसभा सीटों पर अनिल बलूनी और नरेश बंसल के रूप में भाजपा के सांसद हैं और 47 सीटों के साथ सत्ता में लौटी भाजपा को कांगरेस सांसद प्रदीप टम्टा द्वारा खाली की जा रही तीसरी सीट भी मिलेगी। लिहाजा राज्यसभा का रण जीतने को जुलाई वाली जंग अभी से भाजपा के भीतर अंदर ही अंदर छिड़ी हुई है।


भाजपा में तीन-चार स्वाभाविक दावेदार दिख रहे हैं बाकी कुछेक नेताओं के नाम फीलर के तौर पर भी उछाल दिए जा रहे हैं। सबसे बड़े दावेदार तो पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ही हैं। जब से सरकार से ‘बड़े बेआबरू होकर विदा हुए’ हैं तब से न संगठन में कोई रोल मिला है और न कोई और भूमिका दी गई है। खाली वक्त में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ तीन दिवसीय उत्तराखंड प्रवास पर आए तो प्रदेश भाजपाईयों को दिखा दिया कि भाजपाई भविष्य के सबसे ज़ोरदार चमकते सितारे के सबसे करीबी वही हैं। यानी एक दौर में यूपी के सहप्रभारी रहते केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के करीबी रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत आज दिल्ली दरबार में भले कमजोर मान लिए गए हों लेकिन लखनऊ के पॉवर सेंटर में उनके काँटे का किरदार कोई और नहीं। कम से कम सूबे से तो कोई वाकई दिख भी नहीं रहा।

वैसे पार्टी के ‘बैकरूम बॉय’ के तौर पर सांगठनिक दाँवपेंच और व्यूहरचना के विशेषज्ञ ज्योति प्रसाद गैरोला का नाम भी राज्यसभा के रण में उभर कर सामने आ रहा है। वरिष्ठ भाजपा नेता गैरोला परदे के पीछे रहकर पार्टी के रणनीतिकार की अहम भूमिका में रहते हैं। टीएसआर सरकार के आखिरी दौर में कैबिनेट मंत्री के रूप में दायित्व भी मिला था। लेकिन बड़े नेताओं की ‘गणेश परिक्रमा’ में अधिक विश्वास नहीं करते हैं।अब इसके अपने फ़ायदे हैं तो कई बार सियासी घाटे का रिस्क भी रहता है।

तीसरे स्वाभाविक चेहरे के तौर पर चंपावत से निवर्तमान विधायक कैलाश गहतोड़ी हैं। गहतोड़ी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए सबसे पहले न केवल सीट छोड़ने का ऐलान किया बल्कि सीएम को सीट ऑफर करने वाले 22 विधायकों में जीत के लिहाज से सबसे विश्वसनीय भी बनकर उभरे। अकेले सीएम ने ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर संगठन ने भी पाया कि चंपावत सीट धामी के लिए सबसे मुफीद साबित होगी। इस लिहाज से स्वाभाविक है कि अगर मुख्यमंत्री और पार्टी संगठन के पास कुछ ऑफर करने को होगा तो सबसे पहले कैलाश गहतोड़ी को ही मौका दिया जाएगा। लेकिन यह भी अंदरूनी तौर पर पुख़्ता बताया जा रहा कि गहतोड़ी दिल्ली संसद पहुँचने की बजाय उत्तराखंड में रहना चाहेंगे और धामी सरकार में कोई अहम दायित्व पाकर जनता की सेवा में सहयोग देना पसंद करेंगे। वन विकास निगम या ऐसा ही कोई दूसरे ‘पॉटेनशियल’ वाला विभाग पाकर सीएम धामी के ही हाथ मजबूत करना चाहेंगे।


अब जैसे कांग्रेस ने निर्मला गहतोड़ी को टिकट देकर राजनीति में महिला सशक्तिकरण को लेकर अपना धर्म निभा दिया, उसी तर्ज पर भाजपा भी राज्यसभा सीट के लिए पैनल में कुछ महिलाओं के नाम दिल्ली भेजेगी। इनमें भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव दीप्ति रावत भारद्वाज और अनुसूचित जाति आयोग की पूर्व सदस्य स्वराज विद्वान के साथ एकाध नाम और जोड़कर भेजा जाएगा।

अब यह बात अलग है कि किसी बड़े चेहरे का नाम काटने की रणनीति के तहत किसी महिला की लॉटरी लग जाए। अन्यथा किसी हैवीवेट पुरुष नेता को ही मौका मिलने की संभावना अधिक है। वैसे देखना दिलचस्प होगा कि क्या मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को संसद के ऊपरी सदन भेजने में मददगार साबित होंगे! ज्ञात हो कि टीएसआर ने मुख्यमंत्री रहते अनिल बलूनी को राज्यसभा भेजने में अहम मददगार वाली भूमिका निभाई थी। फिर भले ही आज दोनों नेताओं में सौहार्दपूर्ण रिश्ते न रहे हों! वैसे राज्यसभा के रण का एक और उदाहरण ये है कि हरदा ने मुख्यमंत्री रहते पहले पूर्व सीएम विजय बहुगुणा को राज्यसभा न भेजकर मनोरमा शर्मा डोबरियाल और बाद में पीसीसी चीफ रहे किशोर उपाध्याय की बजाय प्रदीप टम्टा को राज्यसभा भेज दिया था। क्यों हैं न पार्टी के भीतर भीषण रण कराने वाली राज्यसभा की सीट!

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