
देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि अगले दो-तीन महीनों में बहुत सारे निवेशक राज्य की तरफ दौड़े आएंगे और निवेश की इन अपार सम्भावनाओं के लिए माहौल तैयार किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि मुख्य सचिव उद्योगपतियों और उद्योग संघों से मिलेंगे और वे खुद भी निवेश के लिए प्रयास करेंगे। इससे पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इनवेस्टर्स समिट कराकर सवा लाख करोड़ के एमओयू लाइन किए थे लेकिन धरातल पर एमओयू के पेपर से होकर निवेश कितना गुज़रा ये अब सबको पता है।
दरअसल, उत्तराखंड में 18 मार्च 2017 को त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी तो डबल इंजन के सहारे विकास और निवेश के मोर्चे पर नए कीर्तिमान स्थापित करने के दावे किए गए। इसी कड़ी में अक्तूबर 2018 में इनवेस्टर्स समिट भी कराया गया जिसका उद्घाटन करने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे। इनवेस्टर्स समिट में सवा लाख करोड़ के एमओयू भी साइन किए गए और फ़िर 40 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट्स की ग्राउंडिंग और लाखों नौकरियाँ पैदा होने का दावा ठोका गया। जबकि असल में निवेशक पहाड़ चढ़े नहीं भले भू क़ानून में बदलाव कर जमीन खरीदने के रास्ते खोल दिए गए। सात लाख नौकरियों का दावा किया गया लेकिन एक के बाद एक कई रिपोर्ट्स में राज्य में गुज़रे सालों में बेरोज़गारी दर उच्चतम स्तर पर आँकी गई।
इनवेस्टर्स समिट से पहले जमकर पैसा बहाया गया और खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत अफसरोें का दल बल लेकर मुम्बई, दिल्ली, बंगलूरू से लेकर सिंगापुर और थाईलैंड तक रोड शो करते घूमे लेकिन इनवेस्टर्स कितने पहाड़ चढ़े या मैदानी क्षेत्रों में आए इसकी कहानी बंद फाइलों में धूल फाँकते निवेश एमओयू बता सकते हैं।
अब 2022 में चुनाव को चार-छह महीने बचे हैं और तीन महीनों में नए नवेले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उनकी माहौल बनाकर फिर से इनवेस्टर्स समिट करेंगे। अब यह अलग बात है कि 2018 के निवेश एमओयू तीन साल में धरातल पर उतरे नहीं और युवा मुख्यमंत्री तीन माह में माहौल बनाकर चुनाव से पहले निवेश एमओयू साइन कराने का एक और रस्मी दौर आयोजित करा देंगे। फिर भले कोरोना से उद्योग जगत की कमर टूटी हो और रोजगार पर संकट हो, बाजार में मंदी के हालात हो लेकिन चुनाव सिर पर हैं लिहाजा करोड़ों खर्च कर टीएसआर की टक्कर का जलसा तो आयोजित किया ही जा सकता है! क्या पता पब्लिक को युवा मुख्यमंत्री का यह दांव पसंद आ जाए।