उत्तराखंड में आयोग सालों साल एक-एक भर्ती पूरी करा नहीं पा रहे लेकिन बैकडोर भर्ती का गोरखधंधा पिछली सरकारों में भी धड़ल्ले से चल रहा था और हालात आज भी जस के तस बने हुए हैं. अब एक बार फिर कई विभागों में बिना विज्ञप्ति जारी किए योग्य एवं शैक्षणिक पात्रता रखने वाले होनहार ‘अपने’ भर्ती करने की पटकथा लिखी जा चुकी है. युवा कल्याण विभाग और पीआरडी में नर्सिंग सहायक, वार्ड ब्वाय, वैयक्तिक सहायक, सहायक खेल प्रशिक्षक सहित कई पदों पर भर्ती किए जाएंगे. शासन की ओर से इस संबंध में शासनादेश जारी कर दिया गया है. युवा कल्याण प्रभारी सचिव बृजेश संत का कहना है कि सभी पदों के लिए शैक्षिक योग्यता और अहर्ताएं पदों के अनुरूप ही रहेंगी.
जाहिर है जो भर्तियाँ बिना विज्ञप्ति, बिना किसी पारदर्शी परीक्षा के सम्पन्न कराई जाएँगी उनमें कितने राज्य के युवा ईमानदारी से चयनित होंगे, अतीत को देखकर सहज अंदाज़ा हो जाता है. बैकडोर से कैसे विधानसभा से लेकर पीआरडी और दूसरे विभागों में प्रभावशाली लोगों ने अपने चहेते सेट कराए वो सबके सामने हैं.
“ऐसी भर्ती साफ तौर पर बैकडोर एंट्री का रास्ता खोलती हैं और इसका फायदा नेता, मंत्री, विधायक, सांसद, अफसर और विभागों के दलाल पैसे लेकर या भाई-भतीजावाद फैलाकर उठाते हैं. बिना चयन प्रक्रिया के होने वाली ये भर्तियां योग्य युवाओं के हक़ों पर डाका मारना है. जुगरान ने कहा कि आउटसोर्सिंग की करनी है तो भी विज्ञप्ति और चयन प्रक्रिया अपनायी जाना चाहिये.
रविन्द्र जुगरान, आम आदमी पार्टी नेता और राज्य युवा कल्याण परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष
“हमारे संविधान में अनुच्छेद 16 में लोक नियोजन के विषयों पर अवसर की समानता का अधिकार है परन्तु आउटसोर्सिंग भर्ती के जरिए केवल और केवल नेता, अधिकारियों के बच्चों और रिश्तेदारों को नौकरी दी जाती है वो चाहे देहरादून के मेयर गामा की बेटी की नियुक्ति हो या फिर विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल के बेटे की नियुक्ति हो. बिना सही चयन प्रक्रिया अपनाये सिफारिश एवं मोटी रकम देकर नौकरी दी जाती है जो बिलकुल भी न्यायोचित नहीं है और उत्तराखंड के बेरोजगार युवा इसका पुरजोर विरोध करते हैं. यदि सरकार इस फैसले को बदलकर परीक्षा के माध्यम से चयन नहीं करती है तो आगामी विधानसभा चुनाव में सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।”
बॉबी पंवार, अध्यक्ष, उत्तराखंड बेरोजगार संघ