Controversy over Backdoor Recruitment in Uttarakhand Assembly: उत्तराखंड की सियासत में भर्तियों में सामने आ रहे एक के बाद एक धांधली के मामलों पर बवाल मचा है। UKSSSC पेपर लीक कांड में दो दर्जन से अधिक आरोपी दबोचे जा चुके हैं। जबकि इसी बीच उत्तराखंड विधानसभा में स्पीकर रहते धामी सरकार में संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा 72 लोगों की नियुक्ति कराने के मुद्दे पर कांग्रेस हमलावर हो रही। लेकिन अग्रवाल से पहले स्पीकर रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा चुनाव में कूदने से ठीक पहले 150 से ज्यादा अपने खास लोगों को भर्ती करने का पुराना मुद्दा भी फिर से चर्चा पर आ गया है।
ताज्जुब की बात यह है कि न प्रेमचंद अग्रवाल और न ही गोविंद सिंह कुंजवाल अपने कार्यकाल में हुई इन भर्ती की गड़बड़ियों पर गलती मान रहे बल्कि नियमानुसार और आवश्यकतानुसार अपने विशेषाधिकार के इस्तेमाल का ढोलक पीट रहे हैं। अब राज्य आंदोलनकारी और भाकपा (माले) के गढ़वाल सचिव इन्द्रेश मैखुरी ने विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण को पत्र लिखकर जांच की मांग की है ताकि सच सामने आए और दोषियों को उनके किए की सजा मिल सके।
यहां पढ़िए हुबहू भाकपा (माले) गढ़वाल सचिव इन्द्रेश मैखुरी द्वारा उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण को लिखी गई चिट्ठी:
प्रति,
माननीय अध्यक्ष महोदया,
उत्तराखंड विधानसभा,
देहरादून.महोदया,
उत्तराखंड विधानसभा में हुई नियुक्तियाँ चर्चा का विषय बनी हुई हैं. जिस तरह की चीजें, खास तौर पर कुछ चिट्ठियाँ सामने आई हैं, उनसे यह संदेह और गहरा होता है कि इन नियुक्तियों में पारदर्शिता का नितांत अभाव रहा है और यह मनमाने तरीके से की गयी हैं.
इस बीच दो पूर्व माननीय अध्यक्षों- श्री प्रेम चंद्र अग्रवाल और श्री गोविंद सिंह कुंजवाल के बयान सामने आए हैं. दोनों के बयानों में उनके अध्यक्ष पद पर रहते हुए बड़ी संख्या में नियुक्तियाँ करने की स्वीकारोक्ति है. दोनों ही माननीय पूर्व अध्यक्षों का दावा है कि नियुक्तियाँ करना अध्यक्ष के तौर पर उनका विशेषाधिकार था. उनकी स्वीकारोक्ति में यह भी शामिल है कि उनके कार्यकाल में विधानसभा में नियुक्तियाँ, प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर नहीं हुई हैं.महोदया, नियुक्ति करने को अध्यक्ष का विशेषाधिकार बताना, सरासर गलत बयानी है. विधानसभा में नियुक्तियों के लिए- उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय सेवा (भर्ती तथा सेवा की शर्तें) की नियमावली 2011 है. इस नियमावली में 2015 और 2016 में संशोधन हुए. इस नियमावली की धारा 5 में पदमाप निर्धारण समिति की व्यवस्था है. पदमाप समिति की अनुशंसा और वित्त विभाग से परामर्श के बाद अध्यक्ष महोदय, पदों के बढ़ाने या घटाने का निर्णय कर सकते हैं. यह नियमावली में निर्धारित प्रक्रिया है, इसमें कहीं भी विशेषाधिकार का मामला नहीं है.
उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय सेवा (भर्ती तथा सेवा की शर्तें) की नियमावली 2011 की धारा 6 में कहा गया है कि नियुक्तियाँ या तो सीधी भर्ती या पदोन्नति अथवा सेवा स्थानांतरण, प्रतिनियुक्ति एवं संविलीनिकरण द्वारा की जाएंगी. तदर्थ (adhoc) भर्ती का कोई प्रावधान ही नहीं है. जबकि जानकारी के अनुसार विधानसभा में अधिकांश भर्तियाँ तदर्थ ही की गयी हैं. यह नियमावली का सीधा उल्लंघन है.
महोदय, माननीय पूर्व अध्यक्ष श्री गोविंद सिंह कुंजवाल का अखबारों में बयान छपा है कि उन्होंने योग्यता के अनुसार अपने बेटे और बहू को विधानसभा में नियुक्ति दी. उनके बयान से स्पष्ट है कि विधानसभा में निर्धारित नियुक्ति प्रक्रिया की अवहेलना करके, मनमाने तरीके से नियुक्ति दी गयी है. अगर ऐसा न होता तो माननीय पूर्व अध्यक्ष श्री कुंजवाल जी स्पष्ट करते कि उनके बेटे और बहू ने प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर नियुक्ति पायी है.
दो माननीय पूर्व अध्यक्षों के बयानों से स्पष्ट है कि विधानसभा में मनमाने और अपारदर्शी तरीके से नियुक्तियाँ की गयी हैं. राज्य के मुख्यमंत्री महोदय भी विधानसभा में हुई नियुक्तियों की जांच किए जाने के पक्ष में बयान दे चुके हैं. अतः आपसे निवेदन है कि विधानसभा में राज्य गठन के बाद अब तक हुई तमाम नियुक्तियों की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच, किसी राज्य से बाहर की एजेंसी से, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में कराए जाने का आदेश देने की कृपा करें.
सधन्यवाद,
सहयोगाकांक्षी,
इन्द्रेश मैखुरी
गढ़वाल सचिव
भाकपा(माले)