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भू क़ानून पर एक्शन नहीं कमेटी मिली: ज्वलंत मुद्दों के समाधान की बजाय कमेटी-कमेटी खेल रहे युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, स्वतंत्रता दिवस पर दी दो कमेटियों की सौगात

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देहरादून: भू क़ानून को लेकर उत्तराखंड में पिछले कुछ महीनों में चौतरफा आवाज़ें उठी हैं। युवाओं को इस मुद्दे पर मुखर देखकर विपक्षी कांग्रेस भी भू क़ानून की हिमायत करती दिख रही। ऐसे में सत्ताधारी भाजपा भी इस मुद्दे पर पिछड़ना नहीं चाहती है क्योंकि भू क़ानून की माँग पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के फैसले के बाद ही तेज हुई है। अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने, जिनकी सरकार की छवि ‘कमेटी सरकार’ वाली बनती दिख रही, भू क़ानून को लेकर उठती आवाज़ों को अनसुना नहीं करने की बात कहते हुए स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भू-क़ानून पर उच्च स्तरीय कमेटी बनाने का ऐलान कर दिया है। आज सीएम धामी ने भू क़ानून पर उच्च स्तरीय कमेटी के साथ साथ जनसंख्या नियंत्रण पर उच्च स्तरीय कमेटी बनाने की घोषणा की सौगात भी प्रदेशवासियोें को दी है। यह सौगात इसलिए भी है क्योंकि धामी सरकार किसी भी मुद्दे पर आवाज उठते ही हाई पॉवर कमेटी के गठन से हिचकती नहीं है बल्कि आगे बढ़कर कमेटी बना डालती है। देवस्थानम बोर्ड पर तीर्थ-पुरोहितों का आंदोलन तेज हो रहा लेकिन बीजेपी नेता मनोहर कांत ध्यानी की अगुआई में हाई पॉवर कमेटी गठित कर दी गई है। पुलिस ग्रेड के मसले पर कैबिनेट सब कमेटी बनी ही हुई है। वेतन विसंगति पर इंदु कुमार पांडे कमेटी का ऐलान हो गया लेकिन पूर्व मुख्य सचिव हाथ खड़े कर चुके। अब भू क़ानून के साथ साथ जनसंख्या नियंत्रण पर भी कमेटी। जब यूपी सहित कई राज्य क़ानून बना रहे उत्तराखंड कमेटी बनाकर काम चला लेगा!

भू क़ानून की तेज होती मांग पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, ‘मैं आप सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि इस मामले में समग्र रूप से विचार के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा, जो उत्तराखण्ड की भूमि के संरक्षण के साथ-साथ प्रदेश में रोजगार-निवेश इत्यादि सभी पहलुओं को ध्यान में रखेगी।’

दरअसल 9 नवंबर 2000 को जब यूपी से अलग होकर उत्तराखंड राज्य बना था तब यहां साल 2002 तक बाहरी राज्यों के व्यक्ति 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे। इसे साल 2007 में मुख्यमंत्री जनरल बीसी खंडूड़ी ने घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया था। लेकिन 6 अक्टूबर 2018 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत एक नया अध्यादेश लाए, जिसका नाम ‘उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 में संशोधन का विधेयक’ था. इसे विधानसभा में पारित किया गया। बाद में इसमें धारा 143 (क), धारा 154(2) जोड़ी गई जिसके तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को खत्म कर दिया गया। इसके बाद अब कोई भी राज्य में कहीं भी भूमि खरीद सकता है। साथ ही इसमें उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार और यूएसनगर में भूमि की हदबंदी (सीलिंग) खत्म कर दी गई। इससे इन जिलों में तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी।
इसके बाद से हिमाचल की तर्ज पर सख्त क़ानून की मांग जोर पकड़ रही है जिसे युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कमेटी झुनझुना देकर शांत कराने का दांव खेला है। अब देखना होगा यह दांव कितना असर दिखा पाता है।

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