Supreme Court dismissed spl petition of backdoor employees, Uttarakhand Vidhansabha: सुप्रीम कोर्ट से भी स्पीकर रहते कुंजवाल और अग्रवाल द्वारा की गई विधि-विरुद्ध नियुक्तियों पर राहत नहीं मिल सकी। यूं कहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पूर्व विधानसभा अध्यक्षों के कार्यकाल में चले बैकडोर भर्ती भ्रष्टाचार पर ‘सुप्रीम’ तमाचा जड़ दिया है। ताज्जुब ये है कि हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक झटके खाने के बाद भी हजारों मेहनती बेरोजगार युवाओं के हितों पर कुठाराघात करते हुए ‘अर्जी पर मर्जी’ की नौकरी और ‘सबकुछ नियम सम्मत’ बताकर खेले गए बैकडोर भर्ती भ्रष्टाचार के खेल में आज बर्खास्त होकर पैदल हो चुके 228 में से एक भी दोनों पूर्व विधानसभा अध्यक्षों के समय चले गड़बड़झाले का सच बयां करने की आगे नहीं आ पा रहा!
जाहिर है जब सत्ताधारी बीजेपी से लेकर विपक्षी कांग्रेस के भीतर एक तबका आज भी इन बर्खास्त 228 कर्मचारियों को दोबारा नौकरी बहाली का सब्जबाग दिखाकर ठगने का काम कर रहा, तब अवैध तरीके से मिली नौकरी के दोबारा हासिल हो जाने की उम्मीद ये भी क्यों छोड़ें भला! अगर ऐसा नहीं होता तो उत्तराखंड कांग्रेस के कर्ता धर्ता नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के घर जाकर बर्खास्त कर्मियों की बहाली का प्रपोजल पेश नहीं करता! साफ है विधानसभा में बैकडोर भर्तियों के हमाम में कांग्रेस हो बीजेपी सब नंगे हैं। लेकिन स्पीकर ऋतु खंडूरी ने हिम्मत दिखाकर बैकडोर भर्ती भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार किया तो पेट में मरोड़ अकेले कांग्रेस के नहीं बल्कि बीजेपी नेताओं के भी खूब उठी। साफ साफ समझा जा सकता है कि आखिर स्पीकर के एक फैसले के बाद ऐसा नजारा क्यों दिखा।
सुप्रीम कोर्ट में ये हुआ
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारियों को जोर का झटका देते हुए उनकी विशेष याचिका खारिज कर दी है। देश की शीर्ष अदालत ने बर्खास्त कर्मचारियों की याचिका निरस्त करते हुए विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी के फैसले को सही ठहरा दिया है। ज्ञात हो कि नैनीताल हाईकोर्ट पहले ही विधानसभा में बैकडोर से भर्ती किए गए कर्मचारियों को बर्खास्त करने के स्पीकर के आदेश को सही ठहरा चुका है।
दरअसल, स्पीकर ऋतु खंडूरी ने नियम विरूद्ध बैकडोर से भर्ती किए गए तदर्थ कर्मचारियों की नियुक्ति पर सख्त एक्शन लेते हुए एक झटके में 2016 से 2021 में भर्ती 228 कर्मचारियों को लेकर एक्सपर्ट जांच कमेटी बिठाई और बाद में कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर इन सभी को बर्खास्त कर दिया था।
हालंकि इन बर्खास्त कर्मचारियों से लेकर बीजेपी के भीतर ऋतु खंडूरी विरोधियों और कांग्रेस ने 2001 से लेकर 2015 तक भर्ती किए गए 396 कर्मियों का मुद्दा भी उठाया। लेकिन ये कार्मिक नियमित हो चुके थे। बर्खास्त कर्मचारी अपनी याचिकाओं में यही दलील दे रहे थे कि 2014 तक उन्हीं की तरह बैकडोर से तदर्थ नियुक्ति पा गए कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई थी। जबकि उनको छह वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया और अब उन्हें हटा दिया गया। लेकिन हाई कोर्ट से लेकर देश की सुप्रीम अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट तक उनकी दलील चल नहीं पाई और स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के फैसले पर एक अदालत से दूसरी अदालत तक मुहर लगती चली गई।
संसदीय परंपराओं का तकाजा: स्पीकर सही कि संसदीय कार्यमंत्री ?
आज जब सुप्रीम कोर्ट ने भी इन 228 बर्खास्त कर्मचारियों की नियुक्ति को जायज नहीं ठहराया तब क्या जागेश्वर की जनता द्वारा विधानसभा चुनाव में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल को दंडित किए जाने के बाद अब उम्मीद करें कि क्या कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा की गई अवैध नियुक्तियों पर सत्ता प्रतिष्ठान से कोई मुंह खोलेगा?
या फिर उसी विधानसभा सदन में उनकी नियुक्तियों को विधि विरुद्ध ठहराने वाली स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण भी अध्यक्ष के आसन पर विराजमान रहेंगी और उनके बाएं तरफ से ट्रेजरी बेंचेज से ‘माननीय’ संसदीय कार्य मंत्री भी संसदीय परंपराओं का निर्विघ्न निर्वहन करते नजर आते रहेंगे!