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ठीक चुनाव आचार संहिता से पहले ‘खनन प्रिय सरकार’ पर चला हाईकोर्ट का हंटर, धामी सरकार की ‘सिफ़ारिशी’ खनन नीति पर HC ने लगाई रोक, बैकफुट पर सरकार, हरदा के आरोपों पर लग गई मुहर, CM धामी को बता रहे ‘खनन प्रिय मुख्यमंत्री’

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नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने धामी सरकार की प्रतिस्पर्धी बोली के बजाय सिफ़ारिश के आधार पर खनन की अनुमति देने की नीति पर रोक लगा दी है। HC के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा की बैंच ने धामी सरकार की खनन नीति को असांविधानिक करार देने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को चार हफ़्तों में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। माना जा रहा है कि सरकार शुक्रवार को हाईकोर्ट का दोबारा दरवाजा खटखटाकर पुनर्विचार की मांग करेगी।

HC के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की बैंच ने सतेंद्र कुमार तोमर द्वारा पिछले साल 28 अक्तूबर को दायर याचिका की सुनवाई करते यह रोक लगाई है। याचिका में धामी सरकार की खनन नीति को चुनौती देते हुए कहा गया था कि सरकार की यह खनन नीति असांविधानिक है।

याचिका में कहा गया है कि जितने भी टेंडर हों वे ई-टेंडर के तहत ही किए जाएं। याचिका में यह भी कहा है कि राज्य सरकार ने खनन नीति में प्राइवेट माइनिंग खोल दी है और बिना नीलामी के पहाड़ों में कटान की अनुमति भी दे दी है और यह बिना पर्यावरण क्षति पूर्ति आकलन के ही किया गया है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के आरोपों के बाद सरकार के पक्ष को भी सुना और उसके बाद खनन नीति पर रोक लगाते हुए धामी सरकार को चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

जाहिर है कॉम्पिटिटिव बिडिंग यानी प्रतिस्पर्धी बोली के बजाय सिफारिश आधार पर खनन की अनुमति देना शुरू से ही सवालों के घेरे में था। ठीक चुनाव आचार संहिता लगने से पहले हाईकोर्ट के आदेश से राज्य की धामी सरकार बैकफुट पर आ गई है।

ज्ञात हो कि धामी सरकार ने 28 अक्टूबर 2021 को खनन नीति का नोटिफिकेशन जारी किया था जिसके विरोध में हल्द्वानी निवासी सतेंद्र तोमर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस नीति को चुनौती दी थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि धामी सरकार हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में पारित आदेश का उल्लंघन कर सिफारिश के आधार पर खनन के पट्टे आवंटित कर रही है।

याचिकाकर्ता के मुताबिक़ उसे प्रति क्विंटल के लिए आधार मूल्य करीब 38 रुपये चुकाना पड़ रहा है जबकि सिफारिश से स्वीकृत निजी हितों के लिए खनन सामग्री का मूल्य उससे कम है। इससे व्यापार में नुकसान के साथ ही उसे अपना धंधा बंद होने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इस नीति के कारण धीरे-धीरे अपने सभी खरीदारों को खो रहा है।

याचिकाकर्ता के अनुसार पिछले साल 10 नवंबर को औद्योगिक विकास (खनन) जो प्रभावित आबादी और कृषि भूमि पर भी उचित प्रतिस्पर्धी ई-बोली का प्रावधान करता है, निजी खनन हितों को विशुद्ध रूप से सिफारिशों के आधार पर मनमाने ढंग से सौंपे जा रहे हैं।

दरअसल खनन के खुले ‘खेल’ को लेकर पहले भी धामी सरकार पर आरोप लगते रहे हैं। सबसे पहले कोटद्वार क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत ने ग्राउंड जीरो पर उतरकर अवैध खनन से नदियों कि सीना छलनी करने का आरोप लगाते हुए युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ‘खनन प्रिय मुख्यमंत्री’ ठहराया था। अब हाईकोर्ट द्वारा खनन नीति पर रोक लगा देना विपक्ष के आरोपों पर मुहर लगाने जैसा प्रतीत हो रहा है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने भी प्रेस कॉंफ़्रेंस कर खनन के अवैध खेल पर धामी सरकार पर हमला बोला था।
यहाँ तक कि धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने खुद खनन के खेल में अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करते कहा था कि उनके क्षेत्र में धड़ल्ले से अवैध खनन किया जा रहा है।

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