- मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग को मुद्दा बनाकर उत्तराखंड चुनाव को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश से भाजपा को मिलेगा कितना फायदा?
- कांग्रेस नेता अकील अहमद ने दिया स्पष्टीकरण, मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग पर न हरीश रावत ने हामी भरी और न ही प्रभारी माने
- भाजपा की अंदरूनी कलह या सीएम धामी के साथ ‘खेला’ की तैयारी कि न केन्द्रीय मंत्री पांच उपलब्धि गिना पाए न बचाव में बलूनी के बोल फूटे!
- क्या सरकार की उपलब्धियां बताने का ज़िम्मा दिग्गजों ने छोड़ा सिर्फ सीएम धामी पर ही?
देहरादून: अब इसे ध्रुवीकरण की सियासी कोशिश नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे कि जिस पार्टी को 2017 में उत्तराखंड की जनता ने प्रचंड बहुमत देकर सत्ता सौंपी, वह दल चुनाव में जा रहा है तो केन्द्रीय नेता भरी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में सरकार की पांच उपलब्धियां तक नहीं गिना पा रहे! चलिए केन्द्रीय मंत्री और चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी तो कर्नाटक से ठहरे लेकिन राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी तो सूबे से ही आते हैं और भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी भी लेकिन त्रिवेंद्र-तीरथ से लेकर धामी सरकार की पांच उपलब्धियों पर उनके भी होंठ सिले रह गए।
हालाँकि अब सहसपुर से कांग्रेस के ऐसे नेता जिसे पार्टी ने लगातार तीसरे चुनाव में टिकट लायक नहीं समझा उसकी एक मांग से मानो सत्ताधारी दल की मुँह माँगी मुराद पूरी हो गई हो। निर्दलीय पर्चा वापस लेते मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग सहसपुर के कांग्रेस नेता अकील अहमद ने की जिसे म हरीश रावत न स्वीकार किया न ही प्रभारी या किसी दूसरे नेता ने लेकिन बकौल भाजपा के सिटिंग विधायक राजकुमार ठुकराल अजान के वक्त अपना भाषण रोक देने वाले युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी से लेकर तमाम नेताओं ने अकील अहमद की मांग को मानो कांग्रेस मेनिफेस्टो का मुद्दा मानकर हल्लाबोल कर दिया है।
विकास के एजेंडे पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस को पार्टी के सहसपुर के रूठे नेता अकील अहमद के बयान न मुसीबत में डाल दिया। अकील अहमद सहसपुर से चुनाव लड़ना चाह रहे थे लेकिन कांग्रेस ने आर्येन्द्र शर्मा को टिकट दे दिया। नाराज अकील अहमद ने निर्दलीय पर्चा भरकर चुनावी ताल ठोक दी जिसके बाद मान-मनौव्वल के बाद नामांकन वापस लेने को तैयार हुए अकील अहमद ने सात शर्तें रखी। सहसपुर में महिलाओं के लिए शौचालय, अस्पताल, ग्रामीण क्षेत्र में सड़कें, डिग्री कॉलेज बनाने जैसी सात माँगें रखी। अकील अहमद ने एक मांग क्षेत्र के बच्चों के लिए एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने की मांग भी रखी।
अब जब भाजपा ने इसी बयान के लपक लिया तो अकील अहमद ने स्पष्टीकरण दिया है कि उन्होंने मांग जरूर की थी लेकिन न तो पूर्व सीएम हरीश रावत और न ही प्रदेश प्रभारी या किसी नेता ने इस मांग पर हामी भरी है। लेकिन विकास के एजेंडे पर जब भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में केन्द्रीय मंत्री और उत्तराखंड के चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी से लेकर राज्यसभा सांसद व राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी तक प्रदेश सरकार की पांच उपलब्धियां तक नहीं पता पा रहे थे तब अकील अहमद के बयान ने हाथों में बड़ा मुद्दा थमा दिया।
उसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सीधे हरीश रावत को निशाने पर ले लिया। सीएम धामी ने हरदा पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस के ‘चार धाम – चार काम’ बस यही रह गए कि वह अब उत्तराखंड में मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनवाएंगे। धामी ने कहा कि कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति करती है और इससे एक बार फिर उसकी मामसिकता झलक गई है।
सीएम धामी के वार पर पलटवार करते हुए पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि जब हमने संस्कृत यूनिवर्सिटी बनाने की बात कही तब उस पर भाजपा ने ध्यान नहीं दिया लेकिन अब किसी नेता ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग भर की तो भाजपा वाले सोची समझी साजिश के तहत उस बयान को तूल दे रहे।