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क्या देहरादून डीएम बंसल ने लोकसभा स्पीकर बिरला के प्रोटोकॉल की कतई धज्जियां उड़ा दी! 

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  • देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार मामला लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के दौरे में समुचित प्रोटोकॉल फॉलो ना किए जाने की शिकायत से जुड़ा है। इसी विषय पर भाकपा (माले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी की फेसबुक वाल से साभार उनकी त्वरित टिप्पणी योर कॉलम में आपके समक्ष हुबहू प्रस्तुत है। 

Your Column ( Indresh Maikhuri):  उत्तराखंड में अफसरशाही किस कदर बेलगाम और मनमानेपन पर उतारू है, इसका नमूना देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल के संदर्भ में लोकसभा सचिवालय से भेजे गए पत्र से समझा जा सकता है। 

लोकसभा सचिवालय से राज्य के मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन को भेजे पत्र में कहा गया है कि देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रोटोकॉल की कतई धज्जियां उड़ा दी। 

लोकसभा सचिवालय के उपसचिव द्वारा भेजा गया पत्र कहता है कि 12 जून को हुए लोकसभा अध्यक्ष के मसूरी दौरे के संदर्भ में देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल को 10 जून को चार बार और 11 जून को तीन बार मोबाइल व लैंडलाइन पर फोन किया गया, लेकिन हर बार कहा गया कि जिलाधिकारी मीटिंग में हैं। फोन पर लोकसभा अध्यक्ष के दौरे के महत्व को बताया गया, फोन नंबर भी छोड़ा गया पर जिलाधिकारी ने वापस फोन नहीं किया। 

अंततः लोकसभा सचिवालय ने जब मुख्यमंत्री से संपर्क किया और जिलाधिकारी से संपर्क की जरूरत के बारे में बताया गया तब जा कर जिलाधिकारी सविन बंसल ने फोन किया। 

फोन के बावजूद वे लोकसभा अध्यक्ष को ना तो रिसीव करने और ना ही वापसी में छोड़ने के समय वे मौजूद रहे।

लोकसभा सचिवालय का पत्र तो यह भी कहता है कि अतीत में भी देहरादून के प्रशासन का रुख इसी तरह असहयोगी रहा और व्यवस्थाएं भी दुरुस्त नहीं थी। 

हो सकता है कि सविन बंसल को प्रोटोकॉल सामंती और चाटुकारितापूर्ण नज़र आता हो तो उन्हें घोषित करना चाहिए। लेकिन इसकी परीक्षा तो यहां से होगी कि वे स्वयं के लिए अफसरी प्रोटोकॉल चाहते हैं या नहीं ! अपनी कार, अपने दफ्तर का दरवाजा खोलते हैं या नहीं, अपना छाता खुद पकड़ते हैं या नहीं!  अगर वो स्वयं अफसरी प्रोटोकॉल नुमा चोंचलों और अफसरी गुमान से मुक्त हैं तो फिर तो उनको दूसरे को प्रोटोकॉल न देना समझा जा सकता है। लेकिन अगर स्वयं सब अफसरी चोंचलों के पूरे होने पर ही उन्हें अफसर होने की सार्थकता लगती है तो फिर उन्हें पदानुक्रम वाले प्रोटोकॉल के चोंचलों का खुद भी निबाह करना ही चाहिए। 

लोकसभा सचिवालय से आए पत्र से लगता है कि धाकड़ – हैंडसम धामी के प्यारे- मुंह लगे अफसर या तो सिर्फ उन्हें ही सलामी देना जरूरी समझते होंगे, उनके मुंह लगे अफसरों के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष सब कुछ भैया हैंडसम- धाकड़ धामी होंगे या फिर उन्हें भरोसा होगा कि पदारूढ़ होने का जो रास्ता है, वो इतना मजबूत है कि वो जो भी करें, कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है ! 

लोकसभा अध्यक्ष के प्रोटोकॉल के उल्लंघन का तो जो हो पर इतने ही गरूर और अवज्ञा के भाव से सविन बाबू जनता से भी पेश आते होंगे तो बेचारी जनता कहां शिकायत करेगी, उसके प्रोटोकॉल या मान-सम्मान, गरिमा के उल्लंघन की ना तो कहीं शिकायत होती है, ना सुनवाई !

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