देहरादून: गुरुवार को सीएम तीरथ सिंह रावत ने कोविड की तीसरी लहर से निपटने के लिए राज्य सरकार की तैयारियों की जानकारी मीडिया से साझा की। उसी दौरान सीएम तीरथ ने कहा कि जरूरत पड़ेगी तो वे अपना मुख्यमंत्री आवास भी कोविड मरीजों के लिए दे देंगे। बड़ी अच्छी बात सीएम साहब ने कही आखिर जिस करोड़ों की लागत से बने मुख्यमंत्री आवास में रहने से हर मुख्यमंत्री को डर लगता हो और जो रहने की कोशिश करे उसकी कुर्सी ही छिन जाए भला ऐसे आवास में कोई मुख्यमंत्री रहे भी तो क्यों रहे!
वैसे कुर्सी तो उनकी भी कहां बची जो ‘मनहूस मुख्यमंत्री आवास’ समझकर वहाँ नहीं रहे! आखिर कुर्सी जनता के काम आकर तो बच सकती है किसी भवन में रहने न रहने से कहां कोई कुर्सी बचती या जाती है। ऐसा होता तो हरीश रावत की कुर्सी क्यों जाती भला और ऐसे कि दो-दो सीट से लड़कर एक अदद जीत को तरस जाएँ! खैर सीएम तीरथ ने ऐलान किया है तो चलिए कोविड मरीजों को हाँ सही समय पर बेड सीएम आवास में ही सही मिल जाए। वैसे हाईकोर्ट जाने क्यों सरकार की इन मनभावन-लोकलुभावन स्कीमों/बयानों/योजनाओं पर मुदित नहीं हो पाता!
सीएम ने गुरुवार को कोरोना तैयारियों के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि तीसरी लहर के समय राज्य में इलाज को लेकर कोई समस्या सामने नहीं आएगी राज्य सरकार अपने स्तर से इतनी तैयारियां कर चुकी है। सीएम तीरथ सिंह रावत ने कहा कि राज्य सरकार ने डीआरडीओ की सहायता से ऋषिकेश और हल्द्वानी में 500-500 बेड के अस्पताल तैयार करवाए हैं जिसमें केवल संक्रमित बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उनके तीमारदारों के लिए भी रहने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। साथ ही राज्य के कई अन्य अस्पतालों में भी इस तरह की व्यवस्था की गई है।
सीएम तीरथ सिंह रावत ने मीडिया को बताया की तीसरी लहर से निपटने के लिए मुख्यमंत्री आवास में भी संक्रमितों के इलाज की व्यवस्था की जाएगी। साथ ही सभी जिलाधिकारियों को उनके जिलों में होटल या अन्य प्रतिष्ठानों के भवनों को जरूरत पड़ने पर कोविड अस्पतालों के रूप में परिवर्तित करने के लिए कहा जा चुका है।
तीसरी लहर से निपटने के लिए सीएम तीरथ सिंह रावत के इन तमाम दावों से इतर अगर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों को देखें तो नैनीताल हाईकोर्ट स्वास्थ्य सचिव से लेकर मुख्य सचिव को तैयारियों के संबंध में फटकार लगा चुका है। हाल ये है कि कोविड से बचाव की तैयारियों के संबंध में दायर याचिका पर नैनीताल हाई कोर्ट द्वारा की गई सुनवाई के दौरान राज्य के मुख्य सचिव और स्वास्थ्य सचिव कोर्ट के सवालों का तर्कपूर्ण जवाब भी नहीं दे सके।