देहरादून: यूं तो तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के दिन से ये खबरें खूब सियासी फ़िज़ाओं में तैर रही या कि तैराने की कोशिशें हो रही कि सरकार के सूबेदार के लिए आधा दर्जन विधायक हैं जो सीट छोड़ने को बेक़रार हैं। सबसे पहले बद्रीनाथ विधायक महेन्द्र भट्ट ने सीएम तीरथ को न्यौता दिया कि वे उनकी सीट से लड़ें। फिर ये हल्ला उड़ाया गया कि सीट भाजपा विधायक क्यों छोड़ेंगे भला कांग्रेस की 11 की क्रिकेट टीम से ही एक और विकेट गिराया जाएगा। यानी सियासी सेंधमारी के किस्से टीपीएस पार्ट वन और मंडल पार्ट टू को सूबे में फिर दोहराया जाएगा। लेकिन ये चर्चा भी शांत हो गई। शायद मुख्यमंत्री तीरथ का मन अपनी पौड़ी लोकसभा सीट की चौबट्टाखाल विधानसभा में ही जो अटका था! आखिर चौबट्टाखाल सीट महाराज से पहले मुख्यमंत्री की ही तो थी। वो तो महाराज 2017 में आ धमके तो मन मारकर तीरथ दा को शांत बैठना पड़ा। लेकिन अब सीएम हैं तो उपचुनाव के लिए सीट भी सेफ चाहिए क्योंकि पहाड़ पॉलिटिक्स में कब क्या हो जाए किसे खबर! आखिर तीरथदा के सियासी गुरु इसी ग़लतफ़हमी और ओवर कॉंफ़्रिडेंस का शिकार होकर कोटद्वार में ‘खंडूरी है जरूरी’ के नारे तले दबकर ‘गैर-जरूरी’ जो हो चुके। इसलिए सीट तो सीएम को सेफ चाहिए न कि बगलगीर गुगलीबाजों के भरोसे कहीं से भी कूदकर फंस जाएँ। हरदा भी तो सत्रह में दो-दो जगह से सिटिंग सीएम रहते हिट विकेट हो चुके हैं।
अब महाराज तो खैर ठहरे महाराज! संघ से लेकर जाने किस किस के भरोसे रहे पर मुख्यमंत्री न 2017 में बनाए गए न लॉटरी 2021 में लग पाई। वैसे याद होगा ही महाराज ने नाराज होकर कांग्रेस से जाते-जाते कहा ही था न कि बीजेपी में जाकर पत्तल उठाएँगे। अब लगता है खाँटी संघ और भाजपाईयों ने महाराज के इसी मंत्र को सत्य मानकर उन्हें दो बार सरकार की सूबेदारी से महरूम कर दिया। खैर! हसरतें न समझें तो क्या महाराज कम थोड़े हैं। बोल चुके कि कुछ हो जाए चौबट्टाखाल की चौधर अपने पास ही रखेंगे। अब चर्चा सीएम के सियासी गुरु रहे जनरल खंडूरी की बेटी ऋतु खंडूरी की यमकेश्वर सीट को लेकर रहती हैं वो सीट मिल भी सकती है। लेकिन क्या ऋतु खंडूरी को संसद जाने का मार्गप्रशस्त होने दिया जाएगा! क्योंकि यहाँ से 2024 के समीकरण बनने-बिगड़ने लगेंगे कईयों के! वैस कोटद्वार से डॉ हरक सिंह रावत भी चाहते हैं कि सीएम तीरथ ताल ठोकें। बल, अब इसे टीम तीरथ किस अंदाज में लेगी देखते जाना होगा।
वैसे सीट तो गंगोत्री की खाली है। बीजेपी विधायक गोपाल रावत के निधन के बाद वहाँ भी उपचुनाव होना है। पर भला पहले कोई सीएम खाली सीट से उपचुनाव लड़ा जो तीरथ लड़ेंगे! हरदा भी तो डोईवाला छोड़कर धारचूला सीट खाली कराने पहुँचे थे। वैसे गंगोत्री में सीएम की भागदौड़ पूर्व सीएम त्रिवेंद्र की सक्रियता का जवाब थी या मुख्यमंत्री सियासी हवा-पानी भांपकर आ गए। अब एक पखवाड़े में बीजेपी चिंतन करने बैठेगी बाइस बैटल तो उम्मीद है लगे हाथ सीएम की सीट भी ढूँढ ली जाए!