
Uttarakhand Congress infighting continues: एक तरफ राहुल गांधी देश में 2024 में बदलाव की बयार बहे इसलिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक साढ़े तीन हजार किलोमीटर लंबी पदयात्रा पर निकले हुए हैं, तो दूसरी तरफ कहीं आठ आठ विधायक पार्टी छोड़कर सत्ता की मलाई खाने निकल पड़ रहे तो कहीं आपस में सिर फुटौव्वल ऐसे कर रहे कि अगर जनता भविष्य के किसी चुनाव में वोट करने की सोचे भी तो ना सोचे। उत्तराखंड में कांग्रेस कुछ इसी स्थिति से दो चार हो रही है।
ताजा कांग्रेसी कोहराम मचा है पीसीसी को लेकर। पहले, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और चकराता से विधायक प्रीतम सिंह के बेटे अभिषेक सिंह ने कांग्रेस प्रदेश कमेटी छोड़ी और अब खबर आई है कि पिथौरागढ़ से कांग्रेस विधायक मयूख महर ने भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी से इस्तीफा दे दिया है।
अभिषेक सिंह ने जिस तरह कहा था कि पार्टी में बड़े और जनाधार वाले नेताओं की उपेक्षा हो रही है लिहाजा उनकी जगह किसी बड़े नेता को प्रदेश कांग्रेस कमेटी में शामिल किया जाना चाहिए। कुछ इसी लाइन पर माहरा ने इस्तीफा दे दिया है।
दरअसल मयूख महर अपनी बात मजबूती से कहने के लिए जाने जाते रहे हैं और बहुगुणा से लेकर हरदा की कांग्रेस सरकार में अक्सर उनके बयान सुर्खियां बंटोरते रहते थे। अब पिथौरागढ़ विधायक महर ने पीसीसी सदस्य बनाने में कार्यकर्ताओं का हक मारकर पदों की बंदरबांट का आरोप लगाया है। महर ने कहा है कि एक तरफ पार्टी यह कहती है कि एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत मानती है लेकिन विधायकों को पद देकर कार्यकर्ताओं का हक मारा जा रहा है।
आसानी से समझा जा सकता है कि करन माहरा के अध्यक्ष बनने के बाद से कांग्रेस में ऑल इस वेल की स्थिति नहीं बन पाई है। एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी चाल और बिसात लेकर चल रहे हैं तो दूसरी तरफ पूर्व पीसीसी चीफ प्रीतम सिंह नेता प्रतिपक्ष की जंग में यशपाल आर्य से मात खाने के बाद से अलग थलग लाइन लिए चल रहे।
असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं का धड़ा अंतर्कलह का ठीकरा प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के सिर फोड़ रहा है। एक सीनियर नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि शशि थरूर पार्टी प्रेजिडेंट इलेक्शन को लेकर जिस तरह की पारदर्शिता की डिमांड कर रहे थे वैसी स्थिति यहां भी है लेकिन यहां कोई खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। इन कांग्रेस नेता ने कहा कि जो नाराजगी पहले अभिषेक सिंह और अब विधायक मयूख महर के जरिए बाहर आई है इसके जिम्मेदार कहीं ना कहीं प्रदेश प्रभारी ही हैं, जो अनुभवी और वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कराकर अनुभवहीन जूनियर लोगों को जिनका ब्लॉक स्तर का अनुभव भी नहीं उनको पीसीसी में शामिल करा दिया गया है।
बहरहाल चौबीस(2024) का चुनाव इसी अंदाज में लड़ा जाएगा या फिर करन माहरा हालात संभाल पाएंगे यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि खतरा पांच के पावर पंच में हार की हैट्रिक का सिर पर तलवार की तरह लटक रहा है। पंचायत चुनाव वापसी की हल्की उम्मीद जगाने का मौका हो सकता है बशर्ते सिर फुटौव्वल शांत होकर दे!