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कांग्रेस में कब थमेगा कलह कुरुक्षेत्र! अब ‘नेतृत्व’ और ‘अगुआई’ में उलझ गए पंजे के पराक्रमी, हरीश रावत ने कह दी ये बड़ी बात

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देहरादून: एक तरफ उत्तराखंड कांग्रेस सत्ता में वापसी के ख़्वाब बुन रही है लेकिन दूसरी तरफ प्रदेश नेताओं के आपसी झगड़े हैं कि थमते नहीं दिख रहे। पिछले दिनों पूर्व सीएम और कांग्रेस कैपेन चीफ हरीश रावत ने ट्विटर पर अपनी नाराजगी का बम फाेड़ा तो राहुल गांधी के दरबार में तमाम नेताओं की पेशी हुई और फिर चुनाव हरीश रावत को लीड करने का मंत्र देकर सबको भेजा गया। लेकिन अब फिर से कांग्रेस नेता आपसी झगड़े में उलझ गए हैं।

दरअसल पूर्व सीएम हरीश रावत ने ट्विट कर शिकायत की है कि कुछ पार्टी के ‘वाणी वीर’ यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनको ‘नेतृत्व’ शब्द इस्तेमाल करने पर पार्टी नेतृत्व से डाँट पड़ी है जिसके बाद उन्होंने ‘अगुआई’ शब्द इस्तेमाल किया है। जबकि रावत का तर्क है कि नेतृत्व में घमंड झलक रहा था लिहाजा उत्तराखंडियत और हिमालय के आभूषण विनम्रता के द्योतक अगुआई शब्द को उन्होंने चुना।


दरअसल दिल्ली में केन्द्रीय नेताओं की उपस्थिति में सुलह-सफाई के बाद लौटे हरीश रावत का नारसन से लेकर देहरादून तक जगह-जगह स्वागत किया गया और उस दौरान भी उन्होंने नेतृत्व शब्द का इस्तेमाल किया लेकिन अगले दिन उन्होंने नेतृत्व शब्द को घमंड का परिचायक बताते हुए माफी माँगी और विनम्रता का संदेश देने वाले अगुआई शब्द को उपयुक्त बचाया था। इसी के बाद से कांग्रेसी कॉरिडोर्स में यह चर्चा चलने लगी कि हरदा वर्सेस प्रीतम जंग में कहीं न कहीं शिकायत दिल्ली तक पहुँची और आलाकमान तक यह मसला पहुँचा दिया गया।


अब खुद हरदा ने कह दिया है कि कुछ लोग देहरादून से लेकर दिल्ली तक यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि मुझे डाँट पड़ी है। जाहिर है जब नेताओं में परस्पर संवाद और विश्वास का यह स्तर हो चुका तब भाजपा से लड़ाई से पहले घर की लड़ाई के हालात समझे जा सकते हैं।

यहां हूबहू पढ़िए हरीश रावत ने क्या कहा

मुझे बचपन से लेकर अभी तक यह सीख मिली है कि विनम्रता, आभूषण है, हिमालय भी यही सिखाता है।पिछले दिनों दिल्ली में पार्टी के नेतृत्व में निर्णय लिया कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के अभियान का नेतृत्व पूर्णतः HarishRawat के हाथ में होगा। शब्द नेतृत्व का उपयोग किया और तदनुसार उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष और CLP के नेता ने प्रेस को कहा भी, वही छपा भी। क्योंकि शब्द बार-बार नेतृत्व आ रहा था तो मुझे लगा कि जनता कहीं इस शब्द को मेरा अहंकार न समझ ले कि मेरे नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा, तो मैंने नेतृत्व के बजाय अगुआई शब्द का उपयोग किया। अब कुछ लोग, देहरादून से लेकर दिल्ली तक यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि मुझे कोई डांट पड़ी है तो मैं उनसे कहना चाहता हूं “अगुआई” शब्द विनम्रता दर्शाता है और नेतृत्व शब्द कुछ बड़ा उद्बोध दिखाता है। इसलिये मैंने अगुआई शब्द का उपयोग किया। मगर अगुआई और नेतृत्व में अंतर क्या है! क्या ये मुझे, वाणी बहादुरों और कलम बहादुरों को समझाना पड़ेगा?

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