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जाति है कि जाती नहीं! देवभूमि में एक बार फिर जातिवाद का कुरूप चेहरा उजागर, सवर्ण जाति की युवती से शादी करने पर कर दी दलित प्रेमी की तालिबानी अंदाज में हत्या

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अल्मोड़ा: कहने को उत्तराखंड देवभूमि हैं। यहां चारधाम हैं और पतित पावनी गंगा का उद्गम स्थल भी उत्तराखंड ही है। 21वीं में आज भले दुनिया चांद पर पहुंच गई हो और उत्तराखंड के लोग राज्य से बाहर निकलकर न केवल देश बल्कि दुनिया में खूब नाम कमा रहे हैं लेकिन इस धरती से जाति है कि जाती नहीं दिख रही है। दलित खाना बनाने वाली के हाथ का खाना ठाकुर-ब्राह्मण बच्चों द्वारा न खाने वाली खबर अखबारों और मीडिया में बासी हुई भी नहीं है कि अल्मोड़ा जिले में झूठी जातीय शान के नाम पर हुए तालिबानी हत्याकांड ने सबकी रूह कँपा दी है। सवाल है कि चार दशक पुराने कफल्टा कांड से लेकर भिकियासैंण के जगदीश हत्याकांड तक समाज की सोच कितना बदल पाई या और तालिबानी होती गई?

दरअसल चुनावी राजनीति में सक्रिय और दो बार विधायक प्रत्याशी रह चुके दलित नेता जगदीश ने एक सवर्ण जाति की युवती से शादी कर ली थी। इसके बाद गुस्साए प्रेमिका के परिजनों ने बड़ी ही बेरहमी से दलित प्रेमी को मौत के घाट उतार दिया।

मामला अल्मोड़ा जिले भिंकियासैंण का है, जहां उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के दलित नेता जगदीश की अपहरण के बाद हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड के बाद पुलिस प्रशासन में हड़कम्प है। हालाँकि हत्यारोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है जिसके बाद खुलासा हुआ कि एक दलित द्वारा सवर्ण जाति की युवती से विकास करने को उसका घोर जातिवादी ससुराल पक्ष बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था लिहाजा एक साज़िश के साथ उसका अपहरण कर हत्या कर दी गई।

हत्यारों ने कितनी बेरहमी और तालिबानी दरिंदगी के साथ दलित प्रेमी की हत्या की उसकी तस्दीक़ पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुए सनसनीखेज ख़ुलासे से हो जाता है। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों के पैनल में शामिल डॉक्टर दीप प्रकाश कार्की ने मीडिया को बताया है कि सवर्ण युवती से विवाह करने वाले उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी नेता जगदीश चन्द्र के हत्यारों ने इस हत्याकांड में क्रूरता की सारी हदें पार कर दी। दलित जगदीश के पूरे शरीर में चोट पाई गई और 25-27 गहरी बाहरी चोटें मिली हैं।

हत्यारों ने जगदीश के जबड़े, छाती और बाएं हाथ की कलाई व दोनों ऐड़ी की हड्डियां तोड़ डाली थी। नाक की हड्डी भी टूटी हुई थी और सिर पर भी काफी चोट पहुँचाई गई। डॉक्टरों के अनुसार बहुत जाता चोट लगने के कारण जगदीश की मौत हुई थी।

हत्याकांड के बाद कानून व्यवस्था न बिगड़े इसके लिए भारी पुलिस बल तैनात किया गया है और खुद एसएसपी प्रदीप राय रानीखेत में ही कैंप कर रहे हैं। हालाँकि अगर प्रेमिका गीता की जान के खतरे की आशंका को गंभीरता से ले लिया गया होता तो शायद यह जघन्य हत्याकांड टाला जा सकता था। ज्ञात हो कि दलित नेता जगदीश से प्रेम विवाह करने से पहले ही प्रेमिका गीता ने वन स्टॉप सेंटर की केन्द्र प्रशासिका को प्रार्थनापत्र देकर जान का खतरा बताकर सुरक्षा की गुहार लगाई थी। इसके बाद प्रशासिका ने 17 अगस्त को जिला कार्यक्रम अधिकारी को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत करा दिया था।

दरअसल प्रेमिका गीता ने पुलिस प्रशासन को लिखे पत्र में कहा था कि जगदीश चन्द्र से प्रेम विवाह करने के लिए वह प्रमाणपत्र बनाने के सिलसिले में वह 26 मई को अल्मोड़ा गई थी। उस दौरान जगदीश भी उसके साथ था और कुछ दिन बाद 17 जून को गीता का सौतेला पिता जोगा सिंह उसे ज़बरन अपने साथ ले गया और मारपीट के बाद दोबारा जगदीश के साथ दिखने पर जान से मारने की धमकी दी थी। सात अगस्त को गीता भिकियासैंण आकर जददींस के साथ रहने लगी और फिर 21 अगस्त को दोनों ने मंदिर में जाकर शादी भी कर ली।

अन्तर्जातीय विवाह करने के बाद 27 अगस्त को गीता और जगदीश चन्द्र ने एसएसपी से जान की सुरक्षा की गुहार लगाते हुए ज्ञापन सौंपा था जिसमें गीता ने गुहार लगाई थी,’महोदय मुझे और मेरे पति को मेरे सौतेले पिता जाेगा सिंह, साैतेले भाई गोविंद सिंह आदि से जान का खतरा बना हुआ है। मेरे सौतेला पिता व भाई ने कहा है कि तुझे व जगदीश चंद्र को हम मार देंगे। महोदय हम छिप कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। अत: महोदय से निवेदन है कि मेरे सौतेले पिता व भाई के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर हमें सुरक्षा प्रदान करने की कृपा करें। तो आपकी अति कृपा होगी”। हत्याकांड के बाद अब पुलिस प्रशासन पर भी सवाल उठ रहे हैं।

हत्यारे जगदीश की हत्या के बाद प्रेमिका गीता को भी मार डालना चाहते थे। एक सितंबर को गीता के सौतेले पिता जोगा सिंह और गोविंद सिंह ने भिकियासैंण के पास से पहले जगदीश चन्द्र का मारपीट के बाद अपहरण कर लिया। उसके बाद दो लोग प्रेमिका गीता को ज़बरन लेने के लिए एडवोकेट नारायण राम के मकान आ धमकते हैं जहां वह रह रही थी लेकिन किसी तरह पुलिस को सूचना देने के चलते वे नहीं ले जा पाते हैं और उसकी जान बच जाती है।

उत्तराखंड में एक के बाद एक दलित उत्पीड़न के मामले सामने आ रहे हैं। अकेले अल्मोड़ा जिले में इस साल अब तक चार दलित उत्पीड़न की बड़ी घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। सवाल है कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाता हमारा समाज जातीय भेदभाव और नफरती बेड़ियों से खुद कब आजाद होना चाहेगा?

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