- दीपक बाली बनाए गए आम आदमी पार्टी के उत्तराखंड अध्यक्ष
- भाजपा-कांग्रेस का विकल्प बनने आई पार्टी बाली के बल पर काशीपुर से कितना आगे बढ़ पाएगी?
- अब कर्नल कब तक रहेंगे आम आदमी पार्टी के साथ?
देहरादून: बड़े ताम-झाम और तैयारी के साथ 2022 का देवभूमि दंगल जीत सत्ता का पहाड़ चढ़ने का सपना लेकर उत्तराखंड पहुँची आम आदमी पार्टी का दिल्ली मॉडल 10 मार्च को पूरी तरह फेल हो गया। AAP की हालत ऐसी रही कि न तो सीएम चेहरे कर्नल अजय कोठियाल और न ही कैंपेन कमेटी चीफ दीपक बाली की जमानत बच पाई। इतना ही नहीं कार्यकारी अध्यक्ष भूपेश उपाध्याय से लेकर जरनैल सिंह काली सहित 70 में से 67 प्रत्याशी जमानत बचाने में नाकाम रहे। पार्टी को उत्तराखंड में महज 3.31 फीसदी वोट पड़े। 33 प्रत्याशियों को हजार वोट भी नहीं मिल पाए और महज चार प्रत्याशी ही 10 हजार से अधिक वोट पा सके। यानी न कर्नल का चेहरा छाप छोड़ पाया और न ही केजरीवाल की चुनावी गारंटी लोगों को रास आई। जाहिर है कहीं न कहीं AAP की रणनीति में बड़ी चूक रही कि जब पंजाब में पार्टी ने तमाम विपक्षियों के बोरिया-बिस्तर बाँध दिए तब उत्तराखंड में उसका पूरी तरह से सफ़ाया हो गया।
ऐसे में जब पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा हो तब प्रदेश में पार्टी के मौजूदा ढांचे में बड़े बदलाव की दरकार थी ही। लेकिन कर्नल को किनारे लगाकर बाली के बल पर निर्भर होना आसमान से गिरकर खजूर पर अटकना नहीं तो और क्या है? वैसे भी पार्टी ने एसएस कलेर को अध्यक्ष बनाकर क्या हासिल कर लिया था जो दीपक बाली को कमान देने से करिश्मे की उम्मीद की जाए! वह भी तब जब कर्नल अजय कोठियाल चुनाव से काफी पहले पार्टी के फौजी चेहरे के तौर पर छाए रहे। अब अगर पार्टी नया प्रदेश अध्यक्ष बना रही है और प्रभारी दिनेश मोहनिया और दीपक बाली के साथ कर्नल अजय कोठियाल की मौजूदगी नहीं है तो यह AAP के लिए राजनीतिक संकट का सबब नहीं है तो और क्या है?
आम आदमी पार्टी के सूत्रों ने THE NEWS ADDA पर दावा किया है कि एक तबका चाहता था कि कर्नल अजय कोठियाल को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए लेकिन न तो प्रभारी दिनेश मोहनिया को यह मंजूर था और न ही करारी हार के बाद दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल के दिल में कर्नल के लिए कोई खास जगह बची है।
क्या कर्नल कोठियाल से दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने किनारा कर लिया है? या फिर उत्तराखंड चुनाव में करारी हार का ठीकरा अकेले कर्नल के सिर फोड़कर पार्टी आगे बढ़ जाना चाह रही है? कर्नल कोठियाल और प्रभारी मोहनिया ही AAP की चुनावी बिसात बिछा रहे थे फिर कर्नल को बलि का बकरा बनाया जा रहा तब प्रभारी की चुनावी परीक्षा में बुरी तरह फेल होने की सजा कब मुक़र्रर होगी? या फिर जब बाली के बल पर पार्टी आगे बढ़ने का मन बना चुकी तो गैर हाज़िर होकर कर्नल अजय कोठियाल ने अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है? अगर ऐसा है तो सबसे बड़ा सवाल यही कि कर्नल अब AAP में कितने दिन और बने रहेंगे?
यह सही है कि सीएम चेहरे के तौर पर कर्नल ने केजरीवाल को बड़ा निराश किया है लेकिन मैजिक तो न पहले वाले अध्यक्ष एसएस कलेर का चला और न कैपेन कमांडर बने दीपक बाली या कार्यकारी अध्यक्ष भूपेश उपाध्याय का! और प्रभारी दिनेश मोहनिया पूरी तरह जमीनी हालात से नावाक़िफ़ रहे। लेकिन हार के बावजूद कर्नल कोठियाल के सामने पहचान का संकट नहीं था। कर्नल कोठियाल को अध्यक्ष न बनाकर दीपक बाली को कमान सौंपने के बाद उनके लिए काशीपुर और ऊधमसिंहनगर से निकलते ही पहाड़ से हरिद्वार के मैदान तक सबसे बड़ा संकट पहचान का संकट ही होने वाला है। पर्वतीय अवधारणा के साथ अस्तित्व में आए उत्तराखंड में मैदानी चेहरे पर दांव लगाने से तो बीस-बाइस साल बाद भी भाजपा और कांग्रेस तक कतराती हैं फिर आप को तो अभी पहाड़ की ऊँची पगडंडियां नापना बाकी है।
बहरहाल काशीपुर-ऊधमसिंहनगर में अच्छा रसूख़ रखने वाले संसाधन संपन्न दीपक बाली को आगे कर अरविंद केजरीवाल ने मैसेज दे दिया कि पार्टी अगले चुनाव तक झंडे-डंडे की राजनीति में पिछड़ेगी नहीं। लेकिन अगर कर्नल की आज की अनुपस्थिति जल्दी ही पार्टी से विदाई में तब्दील हो जाती है तब AAP किस चेहरे के सहारे 2024 और फिर 2027 का सियासी पहाड़ चढ़ेगी, इस सवाल का जवाब खोजना आसान नहीं होगा!