देहरादून: धामी सरकार 2.0 का पहला बजट वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने पेश कर दिया है। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए वित्त मंत्री अग्रवाल ने 65,571.49 करोड़ रुपए का बजट पेश किया है। इसी के साथ एक बार फिर सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर आय के संसाधनों के मुकाबले खर्च अधिक क्यों हो रहा। वह भी वेतन-भत्तों, पेंशन और कर्ज अदायगी पर ही खर्च हो रहा है, आधारभूत ढांचे के लिए सरकार की अपनी जेब मे कुछ खास नहीं बल्कि उसे केंद्र का मुंह देखना पड़ता है।
आइये जानते हैं आखिर उत्तराखंड सरकार की जेब मे पैसा कहां से आता है और जाता कहां है?
रुपया आता कहां से है?
मान लीजिए अगर उत्तराखंड सरकार की जेब में 100 रुपए आये तो उसे इसमें से स्वयं के कर राजस्व से 23.48 फीसदी रुपए मिले। करेत्तर राजस्व से राज्य सरकार ने 8.43 फीसदी रुपए की कमाई की। जबकि केंद्रीय करों में राज्य को अपने अंश के तौर पर 13.94 फीसदी रुपए हासिल हुए। वहीं केंद्र सरकार से 32.77 फीसदी रुपये सहायता अनुदान के रूप में मिला। लोक लेखा शुद्ध से 2.60 फीसदी रुपया, लोक ऋण से 18.75 फीसदी रुपए और ऋणों व अग्रिम वसूली से 0.4 फीसदी रुपया मिला।
यानी मौटे तौर पर देखा जाए तो राज्य सरकार को 100 रुपए की कमाई में सबसे अधिक सहायता करीब एक तिहाई केंद्रीय अनुदान के रूप में हासिल होती है। दूसरा जनता और औद्योगिक इकाइयों से कर संग्रह के जरिए होती है। फिर राज्य को वैट आदि में केंद्र से मिला हिस्सा आता है।
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अब बात कि आखिर सरकार की जेब से रुपया जाता कहां है।
मान लीजिए सरकार की जेब में 100 रुपए हैं तो उसे कुछ इस तरह वह खर्च करती है।
सरकार को वेतन, भत्ते, मजदूरी आदि पर 27.19 फीसदी यानी अपनी कमाई का एक चौथाई से भी अधिक रुपया कार्मिकों, पेंशनरों आदि पर ही खर्च करने पड़ रहे हैं। राज्य सरकार को निवेश ऋण के तौर पर करीब 10 फीसदी (9.06℅) अपनी कमाई लुटानी पड़ती है। जबकि 11.29 फीसदी कमाई का हिस्सा सरकार को सहायक अनुदान/ अंशदान आदि के रूप में खर्च करना पड़ता है। वहीं राज्य सरकार को अपनी कमाई से 9.18 फीसदी रूपया लिए खर्च के ब्याज के रूप में चुकाना पड़ता है। राज्य सरकार को 12.49 फीसदी कमाई का रुपया पेंशन/आनुतोषित मद में देना पड़ता है। सरकार को अन्य मदों में अपनी कमाई का 14.72 फीसदी रुपया खर्चना पड़ता है।
अब रहा विकास और अवस्थापना निर्माण कार्यो आदि यानि आपकी सड़क,स्कूल, अस्पताल आदि के निर्माण पर सरकार अपने बजट का कितना पैसा खर्च करती है। ध्यान दीजिए सरकार वृहद और लघु निर्माण कार्य पर अपनी आमदनी का मात्र 16.07 फीसदी रुपया ही खर्च कर पाती है। यानी निर्माण कार्य पर बजट का पांचवां हिस्सा भी खर्च नहीं कर पा रही है। कमोबेश यह हाल पिछली हर सरकार का हाल रहा है।
यही बड़ी चिंता का सबब है कि प्लान एक्सपेंडिचर के मुकाबले नॉन प्लान एक्सपेंडिचर का अनुपात लगातार बढ़ रहा है। सवाल है कि क्या धामी सरकार 2.0 में प्लान एक्सपेंडिचर वर्सेस नॉन प्लान एक्सपेंडिचर के बीच की बढ़ती खाई को पाटने का सार्थक प्रयास हो पाएगा।