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सीएम धामी खंडूरी सरकार से भी कड़ा भू-कानून ला रहे पर विपक्ष को क्यों दिख रहा ध्यान भटकाने का प्रयास? आर्य ने गिनाए कारण

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देहरादून: त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में पहाड़ों पर निवेशक और उद्योग चढ़ाने के नाम पर भू कानून में कई बदलाव किए गए थे। लेकिन इसका असर यह दिखा कि निवेश और रोजगार तो पहाड़ चढ़ा नहीं पर देशभर के धन्नासेठों ने अपने ऐशोआराम के लिए बड़ी जमीनें खरीद रिजॉर्ट और बंगले बनाना शुरू कर दिया। छूट के नाम पर मची इसी लूट के खिलाफ लोग सड़कों से लेकर सोशल मीडिया पर आक्रामक होने लगे और मामला मुख्यमंत्री दरबार पहुंचा तो पिछले साल जुलाई में शपथ लेते ही पुष्कर सिंह धामी ने भू कानून पर पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय कमेटी बना दी जिसने बीते सोमवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी।

समिति की जो सिफारिशें मीडिया में सामने आई हैं उनके मुताबिक भू कानून में संशोधन हुए तो जमीनों की बेरोकटोक लूट और बंदरबांट पर रोक लगेगी लेकिन ऐसा लगता है कि विपक्षी कांग्रेस को भू कानून पर धामी सरकार की कोशिशों में सच्चाई कम और असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश ज्यादा दिखती है। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कुछ इसी तर्ज पर सवाल उठाए हैं।

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने हमला बोला है कि भू-कानून में सुधार के लिए बनाई गई उच्च अधिकार प्राप्त समिति की संस्तुतियों से कोई नादान व्यक्ति भी निष्कर्ष निकाल सकता है कि राज्य सरकार उच्च अधिकार प्राप्त समिति के गठन के समय से लेकर रिपोर्ट पेश करने तक समिति के नाम पर जनता और मीडिया का ध्यान प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों से भटकाने की कोशिश कर रही है।

नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया, “भाजपा सरकार ने पिछले 40सालों से विभिन्न प्रयोजनों के लिए जमीन खरीदने की अनुमति देकर अपने खास लोगों को उत्तराखंड की बहुमूल्य भूमि की नीलामी की है । उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में जमीन की खुली नीलामी की छूट की संभावना और भूमि का अनियंत्रित क्रय–विक्रय 6 दिसंबर 2018 के बाद तब शुरू हुआ था जब पिछली भाजपा सरकार उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवम भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 143(क) और 154 (2) में संशोधन कर उत्तराखंड में औधोगिकीकरण ( उद्योग , पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य ) ,कृषि और उद्यानिकी के नाम पर किसी को भी, कहीं भी, कितनी ही मात्रा में जमीन खरीदने की छूट दे दी थी।

यशपाल आर्य ने दावा किया कि इन नियमों में बदलाव करने के बाद पिछले 4 सालों में भाजपा सरकार ने अपने चहेते उद्योगपतियों, धार्मिक और सामाजिक संगठनों को अरबों रुपए की जमीनें खरीदने की अनुमति दी है।

उन्होंने कहा कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने राज्य के सभी जिलाधिकारियों से जिलेवार विभिन्न उद्योगपतियों, सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को भूमि खरीदने की स्वीकृतियों का ब्यौरा भी मांगा था। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा, “राज्य की जनता को भी यह जानने का हक है कि 6 दिसंबर 2018 को उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवम भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की दो धाराओं में परिवर्तन के बाद उनकी सरकार या अधिकारियों ने किस- किस को कितनी जमीन खरीदने की अनुमति प्रदान की है ?”

नेता प्रतिपक्ष ने कहा,”पारदर्शिता का दावा करने वाली सरकार को इस बीच अपने चहेतों को दी गयी राज्य की बहुमूल्य भूमि का विवरण देना चाहिए।” यशपाल आर्य ने सरकार से प्रश्न किया ,”सरकार राज्य को ये भी बताए कि इन लोगों को भारी मात्रा में उत्तराखंड की बहुमूल्य जमीन उपहार में देने के बाद राज्य में कितना निवेश आया और कितने लोगों को इन निवेशों के द्वारा रोजगार मिला ?”

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में हिमाचल टेनेंसी एक्ट की धारा-118 लागू है। वहां कोई भी बाहरी व्यक्ति जमीन नही खरीद सकता है। निवेश करने वाला व्यक्ति भले ही पार्टनर बन जाये परंतु भूमि हिमाचल के निवासी के ही नाम रहती है। सरकार को बताना चाहिए क्या समिति ने उत्तराखंड में भी ऐसा कोई प्रावधान करने की संस्तुति की है ?

उन्होंने बताया कि समिति ने भूमि खरीदने की अनुमति देने के माध्यम को बदल कर मासूम जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश मात्र की है। वर्तमान में उत्तराखंड में प्रचलित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) में जन भावनाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश की तरह परिवर्तन करने की बात करती है जबकि रिपोर्ट के विभिन्न बिंदुओं से साफ पता चलता है कि बड़े और प्रभावशाली लोगों को जो भूमि खरीदने की अनुमति पहले जिला अधिकारी देते थे अब वह अनुमति शासन देगा।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा,”रिपोर्ट में स्वीकारा गया है कि अभी तक जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है। कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि/औद्यानिक प्रयोजन न करके रिसोर्ट/ निजी बंगले बनाकर दुरुपयोग हो रहा है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग भूमिहीन हो रहे हैं और रोजगार सृजन भी नहीं हो रहा है।

आर्य ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि सरकार द्वारा गठित उच्च अधिकार प्राप्त समिति जो स्वयं स्वीकार कर रही है कि जमीन खरीदने की अनुमतियों का दुरुपयोग हुआ है तो उन जमीनों को कानूनन राज्य सरकार में निहित किया जाना चाहिए था। उन्होंने आशंका व्यक्त की, “अब क्या गारंटी होगी कि ऐसी अनुमतियां जिलाधिकारी स्तर के बजाय शासन से अनुमति देने के प्रावधान के बाद उन अनुमतियों का दुरुपयोग नही होगा ? “

नेता प्रतिपक्ष ने कहा, “सरकार को विभिन्न जिलों और मुख्यतः चारधाम और धार्मिक महत्व के जिलों में धार्मिक प्रयोजन के लिए विभिन्न धर्मों और संप्रदायों द्वारा अनुमति के बाद ली गयी भूमि का ब्यौरा भी समिति ने मंगवाया था। सरकार को यह भी सार्वजनिक करना चाहिए कि उसके अधिकारियों ने किस-किस धर्म और संप्रदाय को किन जगहों पर धार्मिक कार्यों हेतु जमीन खरीदने की अनुमति दी है।”

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि प्रदेश में 60-65 सालों से भू-बन्दोबस्त नहीं हुआ है, समिति ने इसकी संस्तुति की है लिहाजा राज्य सरकार को इस संस्तुति को मानते हुए शीघ्र भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।
यशपाल आर्य ने कहा, “समिति की रिपोर्ट में नया कुछ भी नहीं है। सरकार की नियत उत्तराखंड की जमीन बचाने की नही है, बाहरी और बड़े लोगों द्वारा जमीन खरीदने की अनुमति देने के स्तर को जिले से बदल कर शासन कर दिया है। “

साफ है विपक्ष अक्रामक होकर भू कानून के मोर्चे पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को यूं ही हीरो नहीं बनने देना चाहता बल्कि भू कानून पर बनी समिति की सिफारिशों पर ही सवाल खड़े कर सरकार को निशाने पर लेना चाह रही है। यह अलग बात है कि आधार नंबर को राजस्व विभाग से लिंक कर एक ही परिवार के लोगों द्वारा बाहरी होने के बावजूद 250 वर्ग मीटर से कहीं ज्यादा जमीन खरीद लेने के फर्जीवाड़े पर रोक लग सकेगी। लीज पर जमीन लेकर उद्योग लगाने पर 70फीसदी रोजगार स्थानीय युवाओं को मिले ऐसी भी सिफारिश की गई है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि उत्तराखंड में जमीनों का दुरुपयोग न हो और उद्योग तथा निवेश भी प्रभावित न हो कानून में इसकी व्यवस्था की जाएगी। धामी ने कहा है कि आर्थिक गतिविधियां बनी रहें और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी करना सरकार का उद्देश्य है।

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