
- वर्तमान में दो विधानसभा सीट विधायकों के निधन से हैं रिक्त
- मुख्यमंत्री को भी संवैधानिक बाध्यता के चलते 10 सितंबर से पहले विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी
- कोरोना हालात और सालभर के भीतर विधानसभा चुनाव फिर कैसे हो उपचुनाव
पंकज कुशवाल: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स दिल्ली के निदेशक डाॅ. रणदीप गुलेरिया का बयान लगातार सुर्खियोें में है जिसमें उन्होंने कहा है कि यदि सावधानी न बरती तो अक्टूबर-नवंबर तक कोरोना की तीसरी लहर देश में दस्तक दे देगी और से दूसरी लहर से ज्यादा खतरनाक होगी। कोरोना की दूसरी लहर ने जो तस्वीर दिखाई उसके बाद तीसरी लहर की आशंका से ही लोगों के मन में खौफ घर कर गया है। वहीं, कोरोना की दूसरी लहर के शुरूआती दिनों में पश्चिम बंगाल समेत छह राज्यों में विधानसभा चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग की खूब किरकिरी हुई। यहां तक कि मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने जैसी कड़ी टिप्पणी तक कर डाली थी। ऐसे में चुनाव आयोग भी कोरोना संकट को देखते हुए किसी भी तरह के चुनाव/उपचुनाव से परहेज करने की बात कह चुका है। लेकिन, उत्तराखंड इन सब के बीच संवैधानिक संकट में फंसा हुआ है।
मार्च में अप्रत्याशित ढंग से गढ़वाल संसदीय सीट से सांसद तीरथ सिंह रावत को त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्थान पर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई थी। राज्य में भाजपा सरकार के चार साल पूरे होने से सप्ताह भर पहले हुए इस नेतृत्व परिवर्तन से हर कोई सन्न था। खैर, तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले तीन महीने से अधिक का समय हो चुका है और अगले साठ से सत्तर दिनों में उन्हें संवैधानिक रूप से मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए विधानसभा का सदस्य बनना होगा। यूं सीएम तीरथ के विधानसभा उपचुनाव लड़ने के लिए छह विधायकों ने अपनी सीट की कुर्बानी देने से ऑफ़र पार्टी को कर दिया है। इसके अलावा असमय काल का ग्रास बने दो विधायकों की गंगोत्री और हल्द्वानी सीट भी उपचुनाव के लिए उपलब्ध हैं। लेकिन, राज्य में कोरोना संकट पूरी तरह से नियत्रंण में नहीं आया है, सरकार भी उत्तर प्रदेश की तरह अनलाॅक की प्रक्रिया शुरू करने से बच रही है। हालांकि कोरोना के मामलों में कमी आई है लेकिन राज्य में कोरोना मौतों का औसत देश में सबसे अधिक वाले टॉप तीन राज्यों में शुमार होने समेत स्वास्थ्य सुविधाओं की खराब हालत के चलते सरकार अनलाॅक से बचने की लगातार कोशिश करते हुए लगातार लाॅकडाउन को बढ़ाने का फैसला हर सप्ताह कर रही है।
यह लेख लिखे जाने तक राज्य सरकार ने कोविड लाॅकडाउन जून के आखिरी सप्ताह तक बढ़ाने का फैसला कर लिया गयाउत्तर और है। लेकिन, इन सबके बीच संवैधानिक मजबूरियों के बीच तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर से पहले विधानसभा सदस्य बनना होगा। ऐसे में चर्चा आम है कि वह अपने लिए किसी सुरक्षित विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचेंगे लेकिन मौजूदा हालात में राज्य में उपचुनाव होने की संभावना न्यून दिख रही है। इस पर एम्स दिल्ली के निदेशक की चेतावनी ने राज्य के निर्वाचन आयोग की पेशानी पर बल डाल दिए हैं।
संवैधानिक बाध्यता और पंजाब और हरियाणाउत्तर उत्तर उच्च न्यायालय के फैसले को आधार बनाते हुए तीरथ सिंह रावत के लिए उपचुनाव लड़कर विधानसभा सदस्य बनना जरूरी है। लेकिन कांग्रेस नेता व पूर्व विधायक नवप्रभात ने रविवार को बयान देकर सरकार को राहत जरूर दे दी है कि रिप्रजेंटेंशन ऑफ दी पीपुल एक्ट 1951 की धारा 151 ए के तहत छह महीनों में विधानसभा सदस्य बनने की बाध्यता जरूर है लेकिन जहां विधानसभा/लोकसभा चुनाव एक साल के भीतर होना है वहां चुनाव आयोग विवेक के आधार पर इस उपचुनाव की बाध्यता को खत्म कर सकता है। हालांकि, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार विधानसभा सदस्य बने बगैर अगला विधानसभा चुनाव लड़ना मुख्यमंत्री के लिए प्रतिबंधित किया गया है। लेकिन, भाजपा के सामने फिलहाल यह चुनौती नहीं दिखती है क्योंकि अब तक तीरथ सिंह रावत के कार्यकाल व वर्किंग स्टाइल को देखते हुए इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि 2022 में भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए बगैर ही चुनाव में उतरेगी।
मौजूदा हालातों को दृष्टिगत रखते हुए राज्य सरकार के फैसलों का परीक्षण किया जाए तो राज्य सरकार व स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह पर चुनाव आयोग फिलहाल नवंबर दिसंबर से पहले तक उपचुनाव या चुनाव करवाने का जोखिम तो नहीं ले सकता है। ऐसे में साफ है कि उत्तराखंड भी अगले छह महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उपचुनाव की परीक्षा से नहीं गुजरे!
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)