- दीपक रावत की मेलाधिकारी पद पर पुन: पोस्टिंग बता रही नौकरशाही को लेकर पिछले मुख्यमंत्रियों की क़तार में ही खड़े हैं CM धामी
- उत्तराखंड की विडंबना है कि कमजोर सवार, नौकरशाही पर नकेल कसने में विफल रहते हैं और नौकरशाही पूरे राज्य को ही पहाड़ से नीचे लुढ़काने पर उतारू है !
- उत्तराखंड में चौथे साल में तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने बीती रात में अफसरों के तबादलों की एक सूची जारी की है। यह अफसरों की ट्रांस्फर लिस्ट कम मजबूरी सूची अधिक है।
देहरादून( इंद्रेश मैखुरी):,ऐसा लगता है कि जिन अफसरों का ट्रांस्फर ड्यू था, उसके अलावा सिर्फ आईएएस अफसर दीपक रावत को मनमाफिक पोस्टिंग देने के लिए यह ट्रांस्फर लिस्ट निकाली गयी है। यह दीपक रावत के मेलाधिकारी, हरिद्वार से हटाये जाने से लेकर पुनः मेलाधिकारी बनाए जाने के घटनाक्रम से स्पष्ट है। दीपक रावत को मेलाधिकारी, हरिद्वार से उत्तराखंड ऊर्जा निगमों के एमडी के पद पर ट्रांस्फर किया गया। एक हफ्ते तक उन्होंने ज्वाइन ही नहीं किया। जब ज्वाइन किया, उस दिन से चर्चा थी कि जल्दी ही दीपक रावत को उनकी मनमाफिक पोस्टिंग मिल जाएगी। चर्चा थी कि इस बात पर आश्वस्त होने के बाद ही उन्होंने एमडी पद पर ज्वाइन किया। हफ्ता पूरा होने से पहले यह बात सिद्ध हो गयी, जबकि दीपक रावत को उनकी पुरानी जगह भेज दिया गया।
दीपक रावत छापामारी के बेहतरीन तरीके से एडिटेड वीडियो यूट्यूब पर अपलोड करते रहते हैं। वीडियो क्वालिटी और एडिटिंग देख कर लगता है कि छापामारी करने से पहले उसका “शूट” प्लान किया जाता है।
लेकिन इतनी योजनाबद्ध शूटिंग और उसके जरिये गढ़ी गयी तेजतर्रार छवि, जहां असल कार्यवाही करनी होती है, वहां धरी रह जाती है। फरवरी 2019 में दीपक रावत, हरिद्वार जिले के जिलाधिकारी थे, जब वहां कच्ची शराब पीने से बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई। सत्ताधारी भाजपा के ही विधायक देशराज कर्णवाल ने उस समय बयान दिया कि हरिद्वार जिले में शराब माफिया का दबदबा है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में “छापामार” अफसर, जिलाधिकारी होने के बावजूद न जाने, किस खोह में गायब रहे, उनके किसी छापे का वीडियो उस दौरान किसी ने नहीं देखा।
हालिया कुंभ के दौरान दीपक रावत कुंभ के मेलाधिकारी थे। उसी दौरान फर्जी कोविड टेस्टिंग का प्रकरण राष्ट्रीय सुर्खियां बना। फर्जी लैब्स को ठेका मिला, फर्जी टेस्टिंग करके नोट छापे गए पर छापे वाले साहब पता नहीं कहां खोये रहे !
ये दो उदाहरण यूट्यूब वीडिओज के जरिये गढ़ी गयी छापामार छवि की पोल खोलने के लिए पर्याप्त हैं।
कुंभ निपट चुका फिर भी वे मेलाधिकारी बने रहना चाहते थे और बन भी गए। प्रश्न यह है कि उस हरिद्वार जिले में ऐसा क्या है कि वे वहां से कहीं और जाना ही नहीं चाहते। जिलाधिकारी पद से हटे तो मेलाधिकारी, हर हाल में हरिद्वार में रहना है !
हालांकि अपनी मनमाफिक पोस्टिंग न मिलने पर ज्वाइन न करने का कारनामा भी दीपक रावत पहली बार नहीं कर रहे हैं। काँग्रेस की सरकार के समय विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी चमोली के जिलाधिकारी पद पर पोस्टिंग हुई लेकिन उन्होंने ज्वाइन ही नहीं किया। कुछ दिन बाद उन्हें नैनीताल का जिलाधिकारी बना दिया गया।
इस पूरे घटनाक्रम में एक नौकरशाह और उसकी मनमर्जी का मसला तो है ही, लेकिन सत्ता में बैठे नेतृत्व की कमजोर प्रशासनिक पकड़ भी इससे उजागर होती है। आखिर किसी अफसर में इतना साहस कैसे और कहां से आता है कि वह राज्य के मुख्यमंत्री को कह दे कि मैं ज्वाइन नहीं करता ! अगर अफसरों की इतनी हिम्मत है तो मुख्यमंत्री ऐसे अफसरों से काम कैसे ले सकेंगे ?
जो हालिया ट्रांस्फर सूची जारी हुई है, उसमें चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए हैं, चमोली जिले की जिलाधिकारी भी इसमें शामिल हैं. चमोली जिले में बीते कुछ दिनों से पत्रकारों और अन्य लोगों के प्रति जिस तरह बदले की भावना से जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया कार्यवाही कर रही थीं, वह कतई अनुचित और जिलाधिकारी पद की गरिमा के विपरीत थी। एक पत्रकार की बनाई खबर से नाराज होने पर उनकी शिक्षिका पत्नी को निलंबित करना निश्चित ही बदले की भावना से की गयी कार्यवाही थी। अपने विरुद्ध आवाज उठाने वालों को, सिर्फ इस आधार पर ठिकाने लगाने निकल पड़ना कि आप शक्तिशाली पद पर हैं, प्राप्त शक्तियों का बेजा इस्तेमाल है।
प्रत्यक्षदर्शियों ने तो यह भी देखा कि एक मौके पर चमोली जिले के विधायक, मुख्यमंत्री के सामने खड़े थे और त्रिवेंद्र रावत ने जिलाधिकारी को बैठने को कहा। ऐसे में कोई भी अफसर, सातवें आसमान पर पहुँच जाये तो हैरत कैसी !
जब मैं यह पंक्तियाँ लिख रहा हूं तो यह स्पष्ट कर दूँ कि व्यक्तिगत रूप से मेरा जिलाधिकारी रही स्वाति भदौरिया से कोई द्वेष या दुराग्रह नहीं है बल्कि त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री न रहने के बाद ही मेरा उनसे अधिकांश संवाद हुआ और मेरे लिखे/ बोले पर उन्होंने कार्यवाही भी की। लेकिन सार्वजनिक पद पर बैठे किसी अफसर या सार्वजनिक व्यक्ति के बारे में राय, सिर्फ मेरे साथ किए गए व्यवहार से निर्धारित करने का मैं कायल नहीं हूं।
इस प्रकरण के मूल में भी राजनीतिक नेतृत्व, उसकी अक्षमता और अफसर प्रियता ही थी। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत सार्वजनिक मंचों पर स्वाति भदौरिया को अपनी बेटी बताते रहे। प्रत्यक्षदर्शियों ने तो यह भी देखा कि एक मौके पर चमोली जिले के विधायक, मुख्यमंत्री के सामने खड़े थे और त्रिवेंद्र रावत ने जिलाधिकारी को बैठने को कहा। ऐसे में कोई भी अफसर, सातवें आसमान पर पहुँच जाये तो हैरत कैसी !
चमोली का यह प्रकरण पत्रकारों के लिए भी सबक है कि अफसरों को बिना वजह सिर चढ़ाएंगे तो ऐसा करना, किसी दिन आप पर भी भारी पड़ सकता है। अफसर के खेत में जा कर दराँती चलाने या पंगत में बैठ कर भात खाने से उसका मूल्यांकन मत करिए, न उसपर लहालोट होइए। उसके, आम जन से व्यवहार और जनहित के मामलों में लिए गए फैसलों से उसका मूल्यांकन करिए। तारीफ में बिछ मत जाइए और आलोचना में व्यक्तिगत मत हो जाइए. और हाँ अफसरों से उचित दूरी बना कर चलिये, न बहुत निकटता, न अत्याधिक दूरी।
अफसरों के तबादलों की सारी कवायद इस बात का संकेत है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के युवा होने का जितना भी ढोल पीटा जाये, लेकिन नौकरशाही के मामले में पुराने मुख्यमंत्रियों से वे ज्यादा अलग नहीं हैं। नौकरशाही उन पर भी भारी है। नौकरशाही के बारे में कहा जाता है कि वह ऐसा घोड़ा है, जो अपने सवार को पहचानता है। उत्तराखंड की विडंबना है कि कमजोर सवार, नौकरशाही पर नकेल कसने में विफल रहते हैं और नौकरशाही पूरे राज्य को ही पहाड़ से नीचे लुढ़काने पर उतारू है !
साभार एफ़बी वॉल
(लेखक एक्टिविस्ट और सीपीआई (एमएल) के गढ़वाल सचिव हैं)